बरेली: अधूरी विवेचनाओं का बयान... दोषी और निर्दोष में फर्क करने की बरेली पुलिस को फुर्सत नहीं

बरेली: अधूरी विवेचनाओं का बयान... दोषी और निर्दोष में फर्क करने की बरेली पुलिस को फुर्सत नहीं

बरेली, अमृत विचार। कहने को बरेली शहर पुलिस का जोनल मुख्यालय है लेकिन इसी शहर के थाने आधी-अधूरी पुलिसिंग के सहारे चल रहे हैं। पुलिस पकड़-धकड़ करने के साथ आरोपियों को जेल तो भेज रही है लेकिन विवेचना से हाथ खींच लिया है जिसकी वजह से लिए न्यायिक प्रक्रिया में उसकी भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे हैं।

नौबत यह है कि विवेचनाएं पूरी करने के लिए अभियान चलाने पड़ रहे हैं। अगस्त तक इन थानों में लंबित मुकदमों की संख्या एक हजार के पार थी जो अभियान के बाद 726 रह गई है। महत्वपूर्ण यह है कि इस अभियान में करीब 40 फीसदी विवेचनाओं को फाइनल रिपोर्ट लगाकर बंद कर दिया गया।

मुकदमों की विवेचना सीधे-सीधे न्याय तंत्र से जुड़ी हुई है और इसी काम में बरेली की पुलिस फिसड्डी साबित हो रही है। भारी संख्या विवेचनाएं लंबित होने से साफ है कि पुलिस की कार्यप्रणाली न्याय आधारित नहीं रह गई है। हालत यह है कि तमाम विवेचनाएं तय समयसीमा से कई गुना ज्यादा समय से लंबित पड़ी हैं लेकिन फिर भी पुलिस उन्हें पूरा करने का समय नहीं निकाल पा रही है।

बता दें कि पुलिस को महिला अपराध के मामलों में 60 दिन और शेष आपराधिक मामलों में 90 दिन के अंदर विवेचना पूरी करके कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी होती है ताकि मुकदमे की सुनवाई शुरू हो सके लेकिन शहर के सभी नौ थानों में इसका पालन नहीं हो पा रहा है।

पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अगस्त तक इन नौ थानों में 1020 मुकदमों की विवेचना लंबित थी। अफसरों के निर्देश पर 10 जुलाई से 15 दिन का अभियान शुरू कर इनमें से 294 विवेचनाओं का निस्तारण कर दिया गया।

इनमें से करीब 40 फीसदी मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगाई गई है जिससे उनकी गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस के अफसर यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि ताबड़तोड़ ढंग से जिन मामलों की विवेचना पूरी की गई है, अदालत में उनका क्या हश्र होगा। 726 मुकदमों की विवेचना अब भी लंबित है।

थाना बारादरी में सबसे ज्यादा विवेचना लंबित
शहर के नौ थानों में से थाना बारादरी में सबसे ज्यादा विवेचना लंबित है। 726 लंबित मामलों में से अकेले थाना बारादरी में ही 166 लंबित हैं। थाने की पुलिस इसके पीछे जुलाई में जोगीनवादा में हुए बवाल को वजह बता रही है।

जोगीनवादा में 23 और 30 जुलाई को कांवड़ यात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच टकराव के बाद बवाल हुआ था। इस दौरान कांवड़ियों पर लाठीचार्ज किया गया था। करीब दो महीने तक थाने की पुलिस इसी इलाके में व्यस्त रही थी।

हाल ही में 15 दिन का अभियान चलाकर 294 मुकदमों की विवेचना पूरी की गई है। लंबित विवेचनाओं को जल्द खत्म करने के लिए सभी थाना प्रभारियों को निर्देश दिए गए हैं। जल्द बाकी विवेचना पूरी कर ली जाएंगी। - राहुल भाटी, एसपी सिटी

इतनी विवेचनाओं का लंबित होना साफ करता है कि मुकदमों के निस्तारण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए आपराधिक मुकदमों में सम्यक और ठोस कार्रवाई नितांत आवश्यक है। ज्यादा संख्या में विवेचना लंबित होना हर स्तर पर ढिलाई का संकेत है, जो आपत्तिजनक और दुखद है। - अमिताभ ठाकुर, पूर्व आईजी

विवेचना में देरी से आरोपियों को कानून से खिलवाड़ करने का पूरा समय मिलता है। वे वादी पक्ष और गवाहों को डराने-धमकाने के साथ कई और तरीकों से कानून को प्रभावित करने में कामयाब हो जाते हैं। इससे पीड़ितों को न्याय मिलने में समस्याएं आती हैं, और कोर्ट में देरी से चार्जशीट दाखिल होने पर केस के निपटारे में भी देरी होती है। - अनुज अग्रवाल, अधिवक्ता बरेली

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टूटता न्याय चक्र...
सीआरपीसी की धारा-173 के मुताबिक पुलिस को 60 और 90 दिन के भीतर अपराध की जांच करके चार्जशीट दाखिल करनी होती है। सीआरपीसी की धारा-169 में प्रावधान है कि इस समयसीमा के अंदर चार्जशीट दाखिल न होने पर अभियुक्त को जमानत मिलने का कानूनी अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी

सुप्रीम कोर्ट ने करीब नौ साल पहले थानों में कानून व्यवस्था और विवेचना के लिए अलग-अलग विंग बनाने का आदेश दिया था। मायावती सरकार में इस पर क्रियान्वयन शुरू हुआ था लेकिन बाद में पुलिस बल की कमी का हवाला देकर इसे रोक दिया गया।

विवेचकों पर अत्यधिक का दबाव

सीआईडी में एक विवेचक को साल में अधिकतम पांच विवेचनाओं को पूरा करना होता है जबकि उत्तर प्रदेश पुलिस के विवेचकों के ऊपर साल में 60 से 70 मामलों की विवेचना का दबाव होता है। राजनीतिक दखलंदाजी उन्हें और उलझा देती है।
आरोपियों से साठगांठ का खेल

कानून के जानकार और वकील विवेचनाओं के अत्यधिक देरी तक खिंचने के पीछे पुलिस में भ्रष्टाचार को भी वजह मानते हैं। उनका कहना है कि आरोपियों को फायदा पहुंचाने के लिए कई बार विवेचक ही उन्हें टालते रहते हैं।

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