
चाइना ने ठप कर दिया बरेली के मांझे का कारोबार, 30% से भी कम बचा सूती धागों का काम, कारीगरों की रोटी पर संकट
बरेली, अमृत विचार। बरेली का मांझा देश-प्रदेश में बहुत लोकप्रिय है। 200 सालों से अधिक पुराना मांझा बाजार पर चीन के माल ने कब्जा कर लिया है। जिसका असर साफ दिखाई दे रहा है। चाइना दिन पर दिन शहर में मांझे की कारीगरी और कारोबार दोनों को ही ठप कर रहा है।
पहले शहर में बनी पतंगों से आसमान रंग-बिरंगा नजर आता था। लेकिन अब ये भी ईद के चांद जैसी हो गई हैं। अब शहर में बनी पंतगों की जगह फैंसी पतंगों ने ले ली है। जिससे अब शहर में बनी पतंगों का कारोबार और कारीगरी दोनों ही बिल्कुल खत्म सी हो चुकी है।
बरेली में बनने वाली पतंगों की डोर की जगह अब चाइना हथिया रहा है। जिससे अब शहर के कारोबारी और कारीगरों को बेहद नुकसान हो रहा है। जहां पहले माझा और पतंग बनाने से कई कारीगरों को रोजगार मिल रहा था। अब वह भी न मात्र ही बचा है शहर में चीनी माल के वजह से माझें के कारीगरों की रोटी पर बेहद असर पड़ा है। पहले जहां माझा और पतंगों की कारीगरी के लिए कई परिवारों को रोजगार मिल जाता था। अब ये रोजगार भी नाम मात्र लोगों को ही मिल रहा है।
माझे का कारोबार शहर में बड़ी मात्रा में बाकरगंज, नवदिया, स्वालेनगर, अशरफ खां की छावनी समेत कई अन्य इलाकों में किया जा रहा है। वहीं अगर बात पतंगो की करें तो इसका कारोबार भी शहर में जखीरा, मलूकपुर पुलिस चौकी के पास, अलखनाथ मंदिर के पास मोती लाल की बजरिया, बिहारीपुर, रेती, जसौली और किला आदि स्थानों पर हो रहा है।
मांझे के कारोबारी नत्थू अंसारी बताते है कि वह 30 सालों से यह काम कर रहे हैं। अब इस काम को पीटने वाला चाइना का माझा है जोकि लाइलॉन का है। जिसकी वजह से उनका काम बिल्कुल ठप हो गया है। इस कारोबार से शहर के 2 लाख से अधिक कारोबारी जुड़े है, जिनका घर खर्च सिर्फ इसी काम से चल रहा है। लेकिन अब उनका घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है। इस कारोबार से कई महिलाएं भी जुड़ी हैं जो पत्थर पीसने का काम करती हैं। लेकिन अब उनका भी काम नहीं हो रहा है क्योंकि अब ये काम ही कम हो गया है।
अमृतसर में चाइना का माल पूरी तरह से बैन होने की वजह से बरेली में कारोबार थोड़ा बहुत चल पा रहा है। लेकिन ऐसा ही पूरे देश में बैन कर दिया जाए तो 20 लाख से अधिक लोग इस काम से अपना घर चला पाएंगे। मजदूरी की अगर बात करें तो वह भी अब केवल 250 रुपए रोजाना के हिसाब से मिल पाती है। जिससे वह सही से घर तक नहीं चला पा रहा है। वहीं अगर बात करें राजमिस्त्री की मजदूरी की तो वह भी एक दिन में 700-800 तक कमा लेता है। ऐसे में वह काम इस कारीगरी से बेहद अच्छा साबित हो रहा है।
बरेली के सभी कारीगर इतने कर्जदार हैं कि वह घर भी बेच दें तब भी कर्जदार ही रह जाएगें। कारोबारी इस लिए भी कारीगरों को इतना पैसा दे रही है क्योंकि उसे अपनी सरकार पर भरोसा है कि वह कल को अगर चाइना माल बंद करवा देगी। तो यह कारीगर आराम से कर्जमुक्त हो सकते हैं। बता दें कि चाइनीज माझा बैन होने के बाद भी शहर में बिकता है। इस विषय पर कई बार मुद्दा उठा, लेकिन बिकना बंद नहीं हुआ।
मोहम्मद तौफीक बताते हैं कि 120 से 360 रुपये में सूती धागे से बनी मांझा चरखी मिल जाती है। लेकिन नायलान मांझा 80 से 180 रुपये में आता है। सूती धागा पानी से खराब हो जाता है, जबकि नाइलॉन खराब नहीं होता, लेकिन चाइनीज मांझा जानलेवा है।
पतंग कारोबारी समीर खान बताते हैं कि इस समय कारोबार बहुत हल्का चल रहा है। क्योंकि इस समय अजंता कागज न आने की वजह से कारोबार पर भारी असर पड़ रहा है। पहले के मुकाबले कारीगरों की संख्या भी कम हुई है। पहले 10-12 कारीगर मिलकर ये काम करते थे। लेकिन अब केवल 5-6 लोगों का ही काम बचा है।
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