Special News: फर्रुखाबाद में संगीन अपराध को उठे हाथ… LED बल्ब बना जेल से फैला रहे उजाला, बंदियों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

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Published By Nitesh Mishra
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फर्रुखाबाद में संगीन अपराध को उठे हाथ अब एलईडी बल्ब बना जेल से फैला रहे उजाला।

फर्रुखाबाद में संगीन अपराध को उठे हाथ अब एलईडी बल्ब बना जेल से फैला रहे उजाला। जेल अधीक्षक ने युवा बंदियों को प्रशिक्षण दिला बदली दिशा व दशा।

फर्रुखाबाद, [चन्द्रपाल सिंह सेंगर]। संगीन अपराधों में जिला जेल फतेहगढ़ में बंद दर्जन भर बंदियों की जेल अधीक्षक भीमसेन मुकुंद ने दशा और दिशा दोनों बदल दी हैं। अंधेरा कायम रखने की राह पर चले यह बंदी अब एलईडी बल्ब बना कर जेल से उजाला फैला रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि जेल में बंद यह बंदी 200 से तीन सौ रुपये प्रति दिन कमा रहे हैं।

संगीन अपराधों में न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेजे गए नव युवकों की दिशा बदलने के लिए जेल अधीक्षक भीमसेन मुकुंद ने बंदियों की ऊर्जा को रोजगार देकर सृजन की ओर रूपान्तरित कर दिया। उन्होंने बंदी सचिन, अतुल, गुड्डू, जगने, जावेद, रामसेवक, मनोहर सहित दर्जन भर को एलईडी बल्ब बनाने का प्रशिक्षण दिलवाया। इसके बाद इनको कच्चा माल उपलब्ध करा कर जेल में ही एलईडी बल्ब बनवाना शुरू कर दिया।

जेल अधीक्षक ने इस कार्य मे लगे बंदियों को 20 रुपये प्रति बल्ब मेहनताना देना शुरू कर दिया। जिससे युवा बंदी पूरे मनोयोग के साथ बल्ब बनाने में जुट गए। जेल में बंद सचिन (20) अतुल (21 )गुड्डू (25)  ने बताया कि वह प्रति दिन 15 -15 बल्ब बना कर तैयार कर लेते है। जिसका मेहनताना उन्हें प्रति दिन 300-300 रुपये मिल रहा है। कुछ साथी 10 ही बल्ब एक दिन में बना पाते हैं। उन्हें 200 रुपये प्रति दिन मेहनताना जेल प्रशासन दे रहा है।

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बंदियों ने बताया कि जेल अधीक्षक भीमसेन ने अब उनकी दिशा ही बदल दी है। पहले जाने अनजाने में जो अपराध किया उससे उन्होंने तौबा कर ली है। अब उनका चित्त अपराधों की दुनियां की तरफ नही जाता। अब तो बल्ब बना कर पैसा कमाने में लग गया है। बंदियों ने बताया कि बल्ब बना कर मिलने वाले रुपये को वह अपने परिजनों को भेज देते हैं। जेल में उन्हें पैसे की कोई जरूरत नही है।

सबसे खास बात यह है कि बंदियों द्वारा बनाये जा रहे एलईडी बल्ब की बिक्री जिला जेल में ही हो जाती है। सादा एलईडी 150 रुपये ओर इन्वर्टर वाले एलईडी बल्ब की कीमत 350 रुपये जेल प्रशासन को मिल रही है। सरकारी दफ्तरों और स्कूलों में सबसे ज्यादा बंदियों के हाथ से बने बल्ब की खपत हो रही है।

ऐसे किया ऊर्जा का रूपांतरण

जेल अधीक्षक भीमसेन मुकुंद का कहना है  कि कोयला का रूपांतरण जब हीरा हो सकता है तो बंदियों की ऊर्जा का रूपांतरण सृजन की तरफ कैसे नही हो सकता। आग एक शक्ति है आग पागल को पकड़ा दी जाए तो पूरा गांव जलाने में उसे देर नही लगेगी। वही आग जब एक बैज्ञानिक के हाथ लगी तो उसने रेल चला दी।यह सोच कर बंदियों की दिशा बदलने का प्रयास किया जिसमें वह सफल हो गए।

जेल अधीक्षक का कहना है कि इस लधु उद्योग से वह ऐसे बंदियों को जोड़ रहे है जिनकी उम्र 20 से 25 के बीच की है। जेल अधीक्षक का कहना है कि उनके इस प्रयास की डीजी जेल एसएन सावत प्रशंसा कर चुके हैं।

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