Exclusive: 'सॉरी, बच्चे ने दुनिया देखने से पहले पेट में दम तोड़ दिया है' ..प्रसव से पहले कोख में हो रही 20 फीसदी बच्चों की मौत, जानें क्यों...

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Published By Nitesh Mishra
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कानपुर में प्रसव से पहले कोख में ही 20 फीसदी बच्चों की मौत हो रही है।

कानपुर में प्रसव से पहले कोख में ही 20 फीसदी बच्चों की मौत हो रही है। जच्चा-बच्चा अस्पताल में हर माह करीब 200 गर्भवती संतान सुख से वंचित रह जातीं हैं।

कानपुर, (विकास कुमार)। जाने-अनजाने कई बार गर्भवतियों को गर्भ में बच्चे की सही स्थिति नहीं पता चल पाती है, कई बार वह समस्या को नजरअंदाज कर देती हैं। यह लापरवाही जान का जोखिम बढ़ाने के साथ संतान सुख से वंचित कर सकती है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल में प्रतिदिन 20 से 25 गर्भवती के प्रसव कराए जाते हैं, इनमें चार से पांच महिलाएं मां नहीं बन पाती हैं।

गर्भ में ही उनके बच्चे की मौत हो जाती है। इसकी मुख्य वजह गर्भाशय का पानी सूखना, थैली का फटना होता है। इससे बच्चे को रक्त और आक्सीजन की सप्लाई बाधित हो जाती है। पहली बार गर्भ धारण करने वाली महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है। 

चिकित्सकों के मुताबिक पहली बार गर्भधारण करने वाली महिलाएं अक्सर गर्भ में बच्चे का हिलना-डुलना बंद होने की अवस्था को समझ नहीं पाती हैं। वह इसे गर्भावस्था का दर्द समझकर नजरअंदाज कर देती हैं। जब बच्चा काफी देर तक मूवमेंट नहीं करता है, तब गर्भवती को बेचैनी व परेशानी होने के साथ हालत खराब होने लगती है।

ऐसे में गर्भवती जब अस्पताल पहुंचती है तो बच्चा मृत अवस्था में जन्म लेता है। इससे मां को स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक तनाव और अवसाद से जूझना पड़ता है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल में प्रतिमाह करीब 200 महिलाएं इस वजह से मां नहीं बन जाती है। 

बीमारी और कुपोषण से समस्या ज्यादा बढ़ रही

स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की कार्यवाहक विभागाध्यक्ष प्रो. सीमा द्विवेदी ने बताया कि गर्भवती अगर ब्लड प्रेशर, किडनी, मधुमेह, एनीमिया रोग से पीड़ित है। पोषण युक्त आहार नहीं लिया है, तो गर्भाशय का पानी सूख सकता है। बच्चा इसी पानी से घिरा होता है। पानी सूखने से बच्चे की मौत हो जाती है। इसलिए बच्चे की मूवमेंट का ध्यान हर गर्भवती को रखना चाहिए।

दरअसल, एमनियोटिक फ्लूड से भरी थैली गर्भ में बच्चे के आसपास गर्म, सुरक्षित,  आरामदायक वातावरण का निर्माण करती है और बच्चे के विकास व मूवमेंट्स में मदद करती है। यह थैली अम्बिलिकल कॉर्ड यानी गर्भनाल के लिए भी कुशन की तरह काम करती है, ताकि उसे कोई नुकसान न पहुंचे। बच्चा इस पानी में तैरते हुए अपनी स्थिति बदलता और हाथ-पैर चलाता रहता है। इसलिए इस थैली का बने रहना और उसमें पानी होना जरूरी होता है। 

नौ माह बाद कन्हाई हो जाती बूढ़ी 

हर गर्भवती में कन्हाई की उम्र नौ माह की होती है, इसके बाद वह बूढ़ी यानी कमजोर होने लगती है। कई ऐसे मामले भी देखने में आते हैं  नौ माह पूरे होने पर भी प्रसव नहीं हो पाता। ऐसे में संक्रमण और रक्तस्त्राव का खतरा अधिक हो जाता है। जिस वजह से भी बच्चे की मौत की आशंका रहती है।

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