हाईकोर्ट ने कहा- अग्रिम जमानत पाने का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना है

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत से जुड़े एक मामले में राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि अग्रिम जमानत की राहत का उद्देश्य व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना है। यह गिरफ्तारी की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष व्यक्तियों को उत्पीड़न से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है। यह कानून के सामने व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और सार्वजनिक हित की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती प्रस्तुत करता है। मामले की योग्यता के अनुसार ही अग्रिम जमानत आवेदन स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है। उपरोक्त के मद्देनजर वर्तमान अग्रिम जमानत आवेदन योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दिया गया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति कृष्णा पहल की पीठ ने रंजीत की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। 

मामले के अनुसार याची ने अपना नाम और माता-पिता का नाम बदलकर तीन बार पासपोर्ट के लिए आवेदन किया, जिसके कारण आईपीसी और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धाराओं के तहत थाना बड़हलगंज, गोरखपुर में याची के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। हालांकि याची के अधिवक्ता का तर्क है कि पासपोर्ट उचित पूछताछ और जांच के बाद जारी किए गए थे। पुलिस ने याची से रिश्वत की मांग की और याची के मना करने पर प्राथमिकी दर्ज कर दी गई, जबकि पासपोर्ट अधिनियम की धारा 15 के तहत केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है। जिस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 197 के अनुसार किसी लोक सेवक के खिलाफ भी पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है। यही शर्त समान रूप से पासपोर्ट अधिनियम में भी लागू होती है, जिसके तहत आरोपी के खिलाफ कार्यवाही की गई।

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