बाराबंकी: सूद पर कर्ज लेना, पूरी जिंदगी का रोना, जान का भी जोखिम

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Published By Deepak Mishra
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सूदखोरों के चक्रव्यूह में फंसे तो जीवन भर की कमाई के साथ जान का भी जोखिम

कवेन्द्र नाथ पाण्डेय/ बाराबंकी,अमृत विचार। जिले में सूदखोरी का चलन लोगों की खुशहाल जिंदगी में कोढ़ का रूप ले रहा है। सूदखोरी के फेर में जो एक बार फंस गया, वह कभी मुक्त ही नहीं हो सकता। कर्ज में डूबने वाले लोग दिन रात मेहनत कर जो पूंजी परिवार के भरण पोषण के लिए जमा करते हैं। वह पूंजी पहले से ही घात लगाकर बैठे साहूकारों के सागिर्द लेकर चले जाते हैं। 

जिससे कर्ज में डूबे लोगो को इससे निजात पाने का कोई रास्ता नहीं सूझता और उन्हें जान देकर इससे निजात पाने की राह आसान दिखती है। दरअसल बीते गुरुवार को शहर के व्यापारी और भाजपा नेता हर्ष टंडन ने लखनऊ के अपने आवास में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। जानकारी के मुताबिक वह भी ऐसे ही एक सूदखोर से आजिज आ चुके थे। वहीं जिला प्रशासन अब ऐसे सूदखोरों के खिलाफ कार्रवाई की बात कर रहा है।

हालांकि सूदखोरी को लेकर मारपीट और आत्महत्या के मामले प्रकाश में आने के बाद भी पुलिस प्रशासन इधर ध्यान नहीं देता। उलटे ऐसी वारदातो की पुनरावृति होने पर उस पर पर्दा डालना प्रशासनिक अमले को बेहतर लगता है। जिले में बड़े पैमाने पर अवैध रुप से सूदखोरी का जाल फ़ैला हुआ है। इस कारोबार से साहूकार मालामाल हो रहे हैं। वहीं सूदखोरों के चंगुल में एक बार फंसने के बाद आम आदमी कभी इससे उबर नहीं पाता। 

सूदखोर ब्याज पर ब्याज लगाकर कर्जदार को ऐसा फंसाते हैं कि वह कर्ज अदा करते करते टूट जाता है। आखिर में मौत के सिवा और कोई रास्ता नहीं दिखता। सूदखोरो के चंगुल में फंसने वालो में सबसे बड़ी संख्या तो युवाओं की है। जो अपनी ऐसी अवस्यकता जरुरते जिनका जिक्र परिवार व अपने अभिवाहक से नहीं कर पाते। वह इसी ही आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सूदखोरों के चंगुल में फंस जाते हैं। 

फिर कर्ज की अदायगी को लेकर मारपीट के मामले सामने आते हैं तो इसकी पुष्टि होती है। एक दशक पहले शहर के कानून गोयन मोहल्ले में हत्या के प्रयास के मामले में इस धंधे की बात सामने आई। पुलिस ने मामला दफा दफा किया। इसकी शिकायत तत्कालीन एसपी आलोक सिंह को हुई तो नगर कोतवाली में तीन सूदखोरों पर कार्रवाई हुई। 

इसके बाद अवैध रूप से सूदखोरी के कारोबार से जुड़े साहूकार सकते में आ गए। मगर उनके जाने के बाद फिर यह कारोबार फलने फूलने लगा। गुरूवार को लखनऊ के बीबीडी थाना क्षेत्र में भाजपा प्रकोष्ठ के व्यापारी नेता हर्ष टंडन के आत्महत्या की भी वजह सूदखोरी के चंगुल में फंसने का ज्वलंत उदाहरण है।

सूदखोरी का नया ट्रेंड बना रोजही

सूदखोरों ने ठेला व खोमचा लगाने वालों को रोजाना सुबह कर्ज की रकम देकर शाम को ब्याज सहित लौटने का एक नया ट्रेंड बना रखा है। इस नए ट्रेंड के तहत सूदखोर जरूरतमंद लोगों को इस शर्त पर कर्ज बाटते हैं कि सब्जी व फल का कारोबार है तो सब्जी व फल के साथ शाम के रोजगार के लिए दी गई गज की रकम का ब्याज 25 से 50% चुकाना होगा। अगर बिक्री नहीं हुई तो दूसरे दिन पहले की रकम में ब्याज की रकम को जोड़कर उसे पर काज वसूल किया जाता है। सूदखोर ठेले व खोमचे वालों को अपने मनमाने क्षेत्र में ही धंधा करने के लिए बाध्य भी करते हैं।

शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी मजबूत हो चुकी हैं जड़ें

शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में सूदखोर जरूरतमंद को कर्ज तो देते हैं, मगर आवाज में कर्ज की रकम से अधिक की कीमत के आभूषण कीमती सामान व भूमि को गारंटी के तौर पर अपने कब्जे में ले लेते हैं। कर्ज लेने वाले पर दबाव बनाने के लिए इस बात का लिखित प्रमाण पत्र भी ले लेते हैं कि ब्याज सहित कर्ज की रकम चुकता ना कर अपने की दशा में गारंटी के तौर पर रखा गया सामान जप्त कर लिया जाएगा। वही जरूरतमंद को 10 से 20% का ब्याज भी चुकाना पड़ता है।

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