Exclusive: कांग्रेस ने सपा के साथ चुनाव अभियान को दी गति, लेकिन माकपा और भाकपा के साथ मंत्रणा अभी बाकी

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Published By Deepak Shukla
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नामांकन के साथ नजर आएगी वाम दलों की सहभागिता

महेश शर्मा, कानपुर। इंडिया गठबंधन से कांग्रेस के प्रत्याशी आलोक मिश्रा ने सपा के साथ साझा चुनाव अभियान को तो गति प्रदान कर दी है, लेकिन गठबंधन के घटक वाम दलों के साथ अभी तक एक भी समन्वय बैठक नहीं हो पायी है। इसे देखते हुए माना जा रहा है कि नामांकन के साथ ही सभी दलों की सहभागिता चुनाव अभियान में नजर आएगी। 

माकपा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी और भाकपा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) का कानपुर में कभी प्रभावशाली वर्चस्व हुआ करता था। कई चुनावों में कांग्रेस और वामदलों में खासा तालमेल रहा है। इसे लेकर वामपंथी नेताओं का कहना है कि यह सही है कि स्वाभाविक रूप से उनका वोट भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के आलोक मिश्रा को ही जाएगा, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि साझा प्रचार अभियान से जनता के बीच जीत का माहौल बनाने में मदद मिलेगी। 

कानपुर में कभी सूती मिलों के कारण लाखों प्रत्यक्ष व परोक्ष मजदूरों की रोजी-रोटी चलती थी। मजदूरों के हक की लड़ाई माकपा की ट्रेड यूनियन सीटू और भाकपा की एटक लड़ा करती थी। 1957 के चुनाव में भाकपा के समर्थन से कांग्रेस को हराकर निर्दलीय प्रत्याशी एसएम बनर्जी लोकसभा में पहुंचे थे। इस चुनाव में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनावी सभा करने आए थे, इसके बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी हार गया था। 

भाकपा के राज्य सचिव अरविंदराज स्वरूप ने बताया कि एमएम बनर्जी भाकपा के प्रत्याशी थे। उनका चुनाव चिह्न शेर था। 1962 व 1967 के चुनाव में भाकपा के समर्थन से ही बनर्जी जीते थे। लेकिन भाकपा के विभाजन से बनी माकपा ने बनर्जी के खिलाफ 1967 में राम आसरे को प्रत्याशी बना दिया था। कांग्रेस से गणेश दत्त वाजपेयी मैदान में थे। यह चुनाव बनर्जी पांच हजार से वोटों से ही जीत सके थे। 

1971 में कांग्रेस व वामदलों में सीटों के समझौते में कानपुर सीट कांग्रेस के खाते में चली गई थी। लेकिन कांग्रेस ने प्रत्याशी न उतारकर एसएम बनर्जी को ही समर्थन देने का निर्णय लिया। नतीजतन वह चौथी बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद माकपा की पोलिट ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली सहगल 1989 में कानपुर से सांसद चुनी गई थीं। 

अभी नहीं हुई चुनावी मंत्रणा : अरविंदराज 
 
भाकपा के राज्य सचिव कॉमरेड अरविंदराज स्वरूप बताते हैं कि कानपुर से कांग्रेस ने प्रत्याशी तो घोषित कर दिया है, लेकिन अब तक कांग्रेस और सपा ने चुनावी रणनीति पर कोई मंत्रणा नहीं की है। भाकपा काडर बेस पार्टी है। कानपुर में पार्टी का वोट है। आलोक मिश्रा करीब तीन महीने पहले मिलने आए थे,  तब बताया था कि वह चुनाव लड़ रहे हैं। शायद अभी व्यस्तता में समय नहीं निकाल पाए हैं। 

माकपा का अभी है वोट बैंक : सुभाषिनी
 
माकपा पोलिट ब्यूरो की सदस्य कानपुर की पूर्व सांसद सुभाषिनीअली सहगल ने कहा कि कानपुर से प्रत्याशी घोषित हो चुका है, लेकिन  अभी तक किसी ने उन्हें फोन तक नहीं किया है। बातचीत करनी चाहिए थी। इंडिया गठबंधन का घटक दल माकपा भी है। कारखाने बंद होने के बावजूद अभी भी माकपा का शहर में वोट है। वह तीन अप्रैल को कानपुर में रहेंगी। संभव है कि तब मुलाकात और मंत्रणा हो सकेगी। 

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