केंद्रीय संस्कृत विविः पालि में शुरू होगा शोध संस्थान, 13 परिसरों में प्रस्तावित, देश-विदेश के लोग हो सकते हैं शामिल

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचार: केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर में दीक्षारम्भ-कार्यक्रम के तहत बौद्धदर्शन एवं पालि विद्याशाखा के लिए दस दिवसीय ‘व्यावहारिक पालि व्याकरण शिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यशाला आठ जुलाई से शुरू हुई है, जो 18 जुलाई तक चलेगी। जल्द ही विवि में स्थायी आदर्श पालि शोध संस्थान की स्थापना होगी। 13 परिसरों में प्रस्तावित शोध संस्थान में एक लखनऊ में देश-विदेश के काम करने वालों को बीए-एम स्तर पर पालि के पाठ्यक्रम से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

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निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने बताया कि आने वाले दिनों में परिसर में स्थायी आदर्श पालि शोध संस्थान की स्थापना प्रस्तावित है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली 13 परिसरों में एक-एक विशिष्ट संस्थान या केन्द्र की स्थापना कर रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा पालि के विकास के लिए लखनऊ परिसर को आदर्श पालि शोध संस्थान आरम्भ करने के लिए चयनित किया है। इससे देश-विदेश के काम करने वाले, महिलाएं, किसान, कर्मचारी-अधिकारी वर्ग आदि के लिए ओडीएल के माध्यम से बीए तथा एमए के स्तर पर पालि के पाठ्यक्रम आरम्भ किये जायेंगे। संस्थागत स्तर पर पालि शिक्षक मानदेय, छात्रवृत्ति, सेमीनार, संगोष्ठी, प्रकाशन इत्यादि के लिए विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर आवेदन किया जा सकता है।

व्यवहारिक पालि व्याकरण शिक्षण कार्यशाला 

विवि में दीक्षारम्भ-कार्यक्रम के तहत बौद्धदर्शन एवं पालि विद्याशाखा द्वारा व्यवहारिक पालि व्याकरण शिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. राम नन्दन सिंह ने की। प्रो. सिंह ने बताया कि दक्षिण-एशियाई देशों में पालि धार्मिक एवं राष्ट्रीय भाषा के तौर पर स्थान प्राप्त कर चुकी है। बौद्धदर्शन एवं पालि विद्याशाखा के संयोजक प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी ने बताया कि विवि में पालि से एमए का पाठ्यक्रम संचालित हो रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को भी इस पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाने के लिए प्रयास चल रहे हैं। कार्यशाला संयोजक डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल ने बताया कि प्रचलित कार्यशाला के माध्यम से एमए (पालि) में प्रविष्ट विद्यार्थियों को व्यावहारिक पालि व्याकरण सिखाया जायेगा, क्योंकि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। इस अवसर पर असिस्टेंट प्रो. डॉ. कृष्णा कुमारी, डॉ. जयवन्त खण्डारे, रिसर्च एसोसिएट डॉ. प्रियंका त्रिपाठी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।

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