मुरादाबाद : 125 साल से बन रहा असली सरसों का ताजिया, ज्यारत को आते हैं सभी धर्मों के लोग

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Published By Bhawna
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वारसी बिल्डिंग में रखा जाता है चांदी का ताजिया, ताजियों का सरदार है कंबल का ताजिया

सलमान खान, अमृत विचार। हजरत इमाम हुसैन की शहादत का महीना मुहर्रम में 10 तारीख को जुलूस निकाला जाता है। जुलूस में शामिल होने के लिए महानगर के अलग-अलग इलाकों में ताजिए तैयार किए जाते हैं। मुहर्रम के महीने में ताजिए बनाने की परम्परा सालों से चली आ रही है। वहीं ताजिया रखने वालों में ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो कई पीढ़ियों से ताजिए बना रहे हैं। जिसमें एक ताजिया खास है। यह ताजिया असली सरसों से बनाया जाता है और पिछले 125 साल से बनता आ रहा है। इस ताजिए की ज्यारत के लिए सभी धर्मों के लोग आते हैं।

महानगर के किसरौल कप्तान साहब की फर्म चौक में रहने वाले साजिद हुसैन वारसी पिछले आठ साल से असली सरसों के ताजिए को अपनी टीम के साथ बना रहे हैं। साजिद हुसैन वारसी ने बताया कि 125 साल पहले शकूर सिद्दीकी ने मुरादाबाद जिले के सबसे पहले असली सरसों के ताजिए को बनाया था। उनके बाद शवकत हुसैन वारसी इस ताजिए को बनाते थे। काफी सालों तक शवकत हुसैन वारसी ने यह ताजिया बनाया। उनके इंतकाल के बाद उनके बेटे साजिद हुसैन वारसी इस परम्परा को जिंदा रखे हुए हैं। साजिद ने बताया कि लगभग 20 दिन पहले से इसका निर्माण शुरू किया जाता है। इस ताजिए में कर्बला का नक्शा बनाया जाता है। तैयार होने के बाद कर्बला का पूरा दृश्य दिखाई देता है। 

उन्होंने बताया कि पुरानी परम्परा है कि यह ताजिया तैयार होने के बाद नवीं मुहर्रम को झब्बू का नाला चौराहे पर रखा जाता है। जहां सभी धर्मों के लोग असली सरसों के ताजिए की ज्यारत करने आते हैं। ज्यादातर हिंदू समाज के लोग इस पर चढ़ावा चढ़ाते हैं और अपने बच्चों को ताजिए के नीचे से निकालते हैं। साजिद हुसैन वारसी अपने सहयोगी मोहम्मद काशिफ, मोहम्मद जुनैद, नासिर खान, लईक अन्सारी, अयान वारसी, रय्यान वारसी, मोहम्मद शारिक व मोहम्मद अदनान वारसी के साथ ताजिया तैयार करने में लगे हैं। उनका कहना है कि नवीं मुहर्रम तक ताजिया तैयार होकर अपने परम्परागत स्थान पर रखा जाएगा। जिसके बाद दसवीं मुहर्रम को जुलूस में शामिल होगा।

नवीं मुहर्रम को कराई जाती है चांदी के ताजिया की ज्यारत
मुहर्रम की नवीं तारीख को थाना नागफनी क्षेत्र के मोहल्ला किसरौल स्थित वारसी बिल्डिंग में पिछले 100 सालों से चांदी का ताजिया रखा जाता है। इसके लिए कई दिन पहले से तैयारी की जाती है। मुहर्रम की नवीं तारीख में हजारों लोग चांदी के ताजिए की ज्यारत करने के आते हैं। इसकी व्यवस्था के लिए प्रशासन की ओर से पुलिस फोर्स भी तैनात की जाती है। चांदी के ताजिए की ज्यारत करने के लिए आने वाली महिला व पुरुषों को अलग-अलग लाइन में लगाकर अंदर भेजा जाता है। यहां मुस्लिमों के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोग भी चांदी के ताजिए की ज्यारत करने आते हैं। 100 सालों से नवीं मोहर्रम पर रखे जाने वाले चांदी के ताजिए की ज्यारत कर लोग अपनी मन्नतें मांगते हैं।

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