टोक्यो कांस्य पदक का महत्व अधिक, हमें पेरिस में स्वर्ण पदक जीतना चाहिए था : पीआर श्रीजेश

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Published By Bhawna
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नई दिल्ली। लगातार दो ओलंपिक पदक जीतने वाले भारतीय हॉकी स्टार पीआर श्रीजेश ने कहा कि टोक्यो में जीता गया कांस्य पदक पेरिस में जीते गए पदक से ज्यादा उनके दिल के करीब है क्योंकि तीन साल पहले ऐसा लगा कि दशकों तक सुनने के बाद कोई पौराणिक कहानी सच हो गई। पेरिस में भारत के अभियान के अंत के साथ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को अलविदा कहने वाले 36 वर्षीय गोलकीपर श्रीजेश इस बार पदक के रंग से थोड़े निराश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि टीम को बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए था।

मंगलवार को श्रीजेश से जब यह मुश्किल फैसला करने के लिए कहा गया तो उन्होंने संपादकों से कहा, 'निश्चित रूप से तोक्यो क्योंकि हमने लंबे समय के बाद ओलंपिक पदक जीता था। पहले हम सुनते थे कि ओलंपिक पदक का क्या मतलब होता है क्योंकि हॉकी में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक का समृद्ध इतिहास रहा है लेकिन यह कभी हमारे हाथ में नहीं आया। इसलिए जब हमने इसे पहली बार जीता तो वह एक शानदार पल था। 

उन्होंने अंतर स्पष्ट करते हुए कहा, उस समय हम पदक जीतने को लेकर सुनिश्चित नहीं थे लेकिन इस बार हम शीर्ष छह में थे और किसी भी टीम को हराने में सक्षम थे। लेकिन (तोक्यो में) पदक विजेता बनना एक सपना था। टोक्यो खेलों के लिए जाने से पहले भारत की हॉकी टीम ने 41 वर्षों में कोई ओलंपिक पदक नहीं जीता था। पेरिस में टीम के शीर्ष दो में रहने की उम्मीद थी जिसके कारण टीम के तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य पदक जीतने के बावजूद थोड़ी निराशा हुई और श्रीजेश इससे सहमत थे। 

श्रीजेश ने कहा, '...इस बार हमें उम्मीद थी कि हम (नंबर) एक होंगे। मुझे लगता है कि यह एक बड़ी निराशा है (स्वर्ण नहीं जीतना), यह स्वर्ण पदक होना चाहिए था। बड़ा अंतर यह है कि वहां (तोक्यो में) मैं खुश था लेकिन यहां मैं ऐसा था...' श्रीजेश ने कंधे उचकाते हुए कहा क्योंकि वह पेरिस में प्रदर्शन को लेकर अपनी भावनाओं को सही शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ थे। वह पेरिस ओलंपिक के समापन समारोह में भारतीय दल के ध्वजवाहक भी बने। पेरिस खेलों का कांस्य भारत का हॉकी में 13वां ओलंपिक पदक है। 1972 के बाद यह पहला मौका था जब देश ने हॉकी में लगातार दो पदक जीते। 

करिश्माई गोलकीपर श्रीजेश पेरिस ओलंपिक में पूरे समय अपनी भूमिका को लेकर दृढ़ थे और उन्हें यादगार विदाई मिली। श्रीजेश ने उन पलों को भी याद किया जब वह पदक जीतने के बाद गोलपोस्ट पर बैठे थे और उनके साथी उनके आगे झुक रहे थे और फिर कप्तान हरमनप्रीत सिंह उन्हें कंधे पर उठाकर मैदान में घूमे। भारत के लिए 336 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वाले श्रीजेश अपने साथियों द्वारा दी गई विदाई से अभिभूत थे और फ्रांस की राजधानी में टीम के पोडियम पर पहुंचने के बाद उनकी आंखों में आंसू थे। 

उन्होंने कहा, ‘‘वह एक शानदार पल था। जब भी कोई खिलाड़ी संन्यास लेता है तो मैंने कभी नहीं देखा कि हर कोई उसे मैदान से बाहर ले जाए। वह एक गर्व का पल था। जब भी मैं अपने संन्यास के बारे में सोचता था तो मैं खिलाड़ियों से कहता था ‘तुम लोग दो लाइनें बनाना और मैं तुम्हारे बीच में चलूंगा’। चार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले श्रीजेश ने कहा, ‘‘यह उससे कहीं बेहतर था। आप जश्न मना रहे हैं और सभी युवा आपके साथ हैं, आप गोलपोस्ट के ऊपर बैठे हैं। जीत के बाद हरमनप्रीत ने कहा कि मेरे कंधों पर चढ़ जाओ लेकिन मैंने कहा कि तुम मुझे नहीं उठा सकते। फिर वह मुझे उठाकर ले जा रहा था और मुझे लगा कि मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘तब मुझे पता चला कि मैं (समापन समारोह के लिए) ध्वजवाहक हूं। यह सोने पर सुहागे की तरह था।’’ यह पूछे जाने पर कि अब भी अच्छे प्रदर्शन के बावजूद उन्होंने संन्यास लेने का विकल्प क्यों चुना तो केरल के इस प्रभावशाली गोलकीपर ने जवाब दिया, ‘‘पिछले ओलंपिक के दौरान मेरे एक कोच ने कहा था कि जब आप संन्यास लेते हैं तो लोगों को पूछना चाहिए ‘क्यों’, उन्हें ‘क्यों नहीं’ नहीं पूछना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह बात मेरे दिमाग में थी और मैंने सोचा कि यही समय है, अपना सर्वश्रेष्ठ दो... अब मैं बहुत खुश हूं और मुझे लगता है कि संन्यास लेने का यह सही समय है।

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