इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कैट की आपत्तिजनक टिप्पणी पर लगाई फटकार, जानें क्या कहा...
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण द्वारा एक आदेश में की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को अनुचित ठहराते हुए कहा कि कोर्ट कर्मचारी के पक्ष में कानून के आधार पर उसके पक्ष में फैसला सुनाती है, इसमें कोई एहसान नहीं करती। जो आदेश अधिकरण अथवा कोर्ट देती है, वह कानून के मुताबिक होता है। उक्त टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने रेलवे कर्मी अविनाशी प्रसाद की याचिका को स्वीकार करते हुए की।
याचिका कैट द्वारा आक्षेपित आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की गई थी। आदेश के माध्यम से कैट ने याची को पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल करने से इस आधार पर इनकार कर दिया था कि नौकरी मिल गई उसे धन्यवाद देना चाहिए, वरना सैकड़ों लोग कोर्ट में नौकरी के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याची की पदोन्नति 3 फरवरी 1990 की बनी वरिष्ठता सूची के आधार पर हुई थी। इस कारण याची को सभी सेवाजनित परिणामी लाभ उसी तिथि से मिलने चाहिए, लेकिन कैट ने उसे देने से मना कर दिया।
दरअसल याची रेलवे में ट्रैकमैन ग्रुप (डी) पद पर कार्यरत था। उसका सीनियर सेक्शन इंजीनियर पद पर कर दिया गया। याची की मांग थी कि उसकी नौकरी को देखते हुए उसे पुरानी पेंशन योजना में शामिल कर लिया जाए। हाईकोर्ट ने उक्त याचिका को स्वीकार कर कैट के आदेश को रद्द कर दिया और याची को पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल करने का निर्देश दिया।
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