यातायात माह में पिछले साल से ज्यादा हादसे-मौतें: कानपुर में चौंकाने वाले आंकड़े, अफसरों की लापरवाही सवालों के घेरे में
कानपुर, अमृत विचार। शहर में नवंबर में यातायात माह के दौरान हादसों की संख्या में हर बार की अपेक्षा और बढ़ोतरी हुई जिसने पुलिस और प्रशासन की चिंता को और बढ़ा दिया। सड़क सुरक्षा और नियमों का पालन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हर साल नवंबर में यातायात माह मनाया जाता है, लेकिन इस वर्ष कानपुर में सड़कों पर हादसों का आंकड़ा लगातार बढ़ा। 30 दिन में 103 हादसों में 82 लोगों की मौत हो गई। वहीं 35 लोग घायल हुए। पिछले वर्ष नवंबर में हादसे में मौतों की संख्या 50 से नीचे थी। दिसंबर माह में भी सात दिन में 10 लोग जान गवां चुके हैं।
रफ्तार के कारण बढ़ते हादसे
सड़कों पर वाहन चालक अक्सर नियमों को नजरअंदाज करते हुए तेज गति से गाड़ी चलाते हैं। हाल ही में हुए कई बड़े हादसों में तेज रफ्तार को ही मुख्य कारण माना गया। यह दुर्घटनाएं न केवल पैदल चलने वालों, बल्कि अन्य वाहन चालकों की भी जान ले रही हैं। कई बार तो सड़क पर अचानक से आए मोड़ या खराब सड़क स्थितियों के कारण वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।
आटो-टेंपो, ई-रिक्शा बने मुसीबत
शहर में लाखों आटो-टेंपो, ईरिक्शा यातायात व्यवस्था के लिए मुसीबत बने हुए हैं। वाहनों की संख्या बढ़ने और अराजकता से चलने के कारण ट्रैफिक लोड लगातार बढ़ता जा रहा है। हर चौराहे और बीच सड़क पर आटो-टेंपो, ईरिक्शों का कब्जा रहता है। ये वाहन बीच सड़क पर वाहन खड़े करके सवारियां बैठाते और उतारते हैं जिससे यातायात बाधित होता है। कई बार इन पर लगाम लगाने की बात कही गई लेकिन हुआ कुछ नहीं।
सड़कें वही, वाहन कई गुना बढ़ गए
सड़क हादसों का एक बड़ा कारण वाहनों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी होना और सड़कों का संकरा होना है। शहर की आबादी लगातार बढ़ रही है और वाहनों की संख्या भी। इसके अनुपात में सड़कें वही पुरानी हैं। सड़कों का चौड़ीकरण और सुधार कार्य न के बराबर है। इसके अलावा सड़कों पर अतिक्रमण भारी समस्या है। हर सड़क के फुटपाथों पर ठेली-खोमचे वालों का कब्जा है जिससे सड़कें और संकरी होती जा रही हैं। दुकानों का सामान फुटपाथ तो दूर, सड़कों तक सजा रहता है। आगे सड़क पर ग्राहकों के वाहन खड़े हो जाते हैं। आफिस टाइम में सड़कों से गुजरना दूभर है।
मेट्रो के कारण से यातायात में बाधा
शहर में जगह-जगह मेट्रो का काम चल रहा है जिस कारण सड़कें बंद की गई हैं और कई जगह बेरीकेडिंग करके रास्ता आधा कर दिया गया है। डायवर्जन किया गया है लेकिन सड़के पुरानी और संकरी होने के कारण बढ़े ट्रैफिक लोड को संभाल नहीं पा रही हैं। इस वजह से बेरीकेडिंग वाले इलाकों में दिनभर जान लगता है।
अफसरों की लापरवाही सवालों के घेरे में
शहर में यातायात माह सात दिन पहले ही समाप्त हुआ। इस दौरान यातायात पुलिस और प्रशासन की लापरवाही भी सवालों के घेरे में है। पुलिस प्रशासन चालान काटकर अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करता रहा, लेकिन सड़कों पर असल स्थिति में सुधार लाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए।
जन जागरूकता की कमी
जन जागरूकता की भी कमी देखी जाती है। आम नागरिकों को सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करने की आदत नहीं है। बगैर हेलमेट के बाइक चलाना, सीट बेल्ट न लगाना और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना जैसे नियमों का उल्लंघन आम बात हो गई है।
एक नजर इधर भी डालिए :
30 दिन में 103 हादसे 82 की मौत
बिना हेलमेट चालान - 2812
नो पार्किंग चालान - 1442
विपरीत दिशा चालान - 1380
तीन सवारी चालान - 577
हाईवे पर चालान - 1249
हाईवे पर हटाए वाहन - 1852
जागरुकता कार्यक्रम -28
ट्रैफिक चौपाल – 32
नुक्कड़ नाटक – 14
जागरुकता के लिए बैठकें – 19
लोगों को यातायात पुलिस अलग-अलग तरीकों से जागरूक कर नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित कर रही है। लेकिन लोगों को खुद भी जागरूक होना पड़ेगा। बाइक, स्कूटी पर हेलमेट और कार में सीट बेल्ट जरूर बांधे। तीन सवारी बैठाकर बाइक न चलाएं। शराब पीकर वाहन चलाएं।- अर्चना सिंह, एडीसीपी यातायात