Kanpur: काकोरी कांड का हर पन्ना खोलेंगे ऐतिहासिक दस्तावेज, शताब्दी वर्ष पर शहर में अगले माह प्रदर्शनी की तैयारी

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Published By Deepak Shukla
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विशेष संवाददाता, कानपुर। आजादी की लड़ाई में महती भूमिका निभाने वाले काकोरी कांड के शताब्दी वर्ष पर कानपुर में विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। इसमें दुर्लभ दस्तावेजों के साथ इस केस से जुड़ी हर खास-ओ-आम घटनाओं का विवरण सामने रखा जाएगा। इस मौके पर संगोष्ठी, चित्रकला प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी। शताब्दी वर्ष 8 अगस्त 2024 से शुरू हुआ था। समापन इस वर्ष 8 अगस्त को लखनऊ में होगा। कानपुर में आयोजन मार्च माह में संभावित है। 

काकोरी शताब्दी वर्ष आयोजन से जुड़े शाह आलम ने बताया कि चंबल म्यूजियम में काकोरी कांड से जुड़े दुर्लभ दस्तावेज संग्रहित हैं। क्रांतिकारी इतिहास से नयी पीढ़ी को अवगत कराने के लिए गोरखपुर, अयोध्या, गोण्डा, बरेली, शाहजहांपुर, कानपुर, फर्रुखाबाद, सुलतानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, औरैया, मेरठ, मुरैना में आयोजन होंगे। काकोरी कांड से कानपुर का गहरा नाता है। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद इसका नेतृत्व कर रहे थे। उनके गुप्त दौरे कानपुर में होते थे। 

इस कांड में शहर के रामदुलारे त्रिवेदी को पांच वर्ष का सश्रम कारावास मिला था। उनकी मृत्यु 11 मई 1975 को हुई थी। वर्ष 1921 से 45 तक वह कई बार जेल गए। कानपुर इतिहास समिति के महासचिव अनूप कुमार शुक्ला का कहना है कि राम दुलारे त्रिवेदी ने काकोरी के दिलजले किताब लिखी थी, जो 1939 में छपते ही जब्त हो गयी थी। उन्नाव में जन्में रामदुलारे त्रिवेदी को गणेश शंकर विद्यार्थी ने स्काउट मास्टर की नौकरी कानपुर में दिलाई थी। क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में उनका बड़ा योगदान था। काकोरी कांड में उनके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं मिले थे। 

इस कारण पांच साल में ही छोड़ दिए गए थे। जेल से छूटने के बाद उन्होंने पहले प्रताप में काम किया फ़िर अपना अखबार टंकार निकाला। इतिहासकार अनूप शुक्ला ने बताया कि काकोरी कांड में लिप्त रहे कानपुर के फीलखाना में जन्मे दूसरे क्रांतिकारी राजकुमार सिन्हा की शिक्षा बनारस में हुई। वहां योगेश चटर्जी ने उन्हें क्रांतिकारी दल का सदस्य बनाया था। बनारस में उनके कमरे में बरामद हुए विंचेस्टर राइफल के संबंध में पुलिस ने साबित किया कि यही राइफल मैनपुरी षडयंत्र में भी इस्तेमाल की गई थी। गिरफ्तारी के बाद राज कुमार सिन्हा कुछ दिनों तक कानपुर की जेल में रहे। यहां उन पर दबाव डाला गया कि वह जुर्म कबूल कर लें, पर वह नहीं झुके। काकोरी षड्यंत्र केस 2 वर्ष तक चला 1927 में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, राजेंद्र लाहिड़ी तथा रोशन सिंह को फांसी की सजा हुई। सिन्हा को 10 वर्ष का कठोर दंड मिला।

क्या था काकोरी कांड

काकोरी कांड को काकोरी षड्यंत्र या काकोरी ट्रेन डकैती के नाम से भी जाना जाता है। यह घटना 9 अगस्त 1925 को लखनऊ से 16 किमी दूर काकोरी में हुई थी। यह एक सशस्त्र डकैती थी, जिसने अंग्रेजों को सकते में डाल दिया था।

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