केजीएमयू: छोटी गर्दन वाले मरीजों की नली निकालने में लापरवाही ले सकती है जान

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। हादसे में जख्मी मरीज को अत्यधिक रक्तस्राव के साथ-साथ दांत टूट सकते हैं। इस स्थिति में सांस प्रबंधन के लिए नली डालनी पड़ती है। कई स्थितियों में नली निकालना बहुत जटिल होता है। लापरवाही से मरीज की जान भी जा सकती है। यह जानकारी डॉ. मोनिका कोहली ने दी। वह किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग में एयरवे मैनेजमेंट फाउंडेशन (एएमएफ) के सहयोग से आयोजित एयरवे कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं।

एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख एवं आयोजन अध्यक्ष डॉ. मोनिका कोहली ने बताया कि नली निकालते समय मोटे लोग, छोटी गर्दन वाले लोग, छोटे बच्चे, जिनमें किसी कारण मुंह या गर्दन की सर्जरी हुई हो, और कैंसर रोगियों का विशेष ध्यान देना होता है। ऐसे में नली से निकले पदार्थ सांस के रास्ते में प्रवेश कर जाते हैं। इससे मृत्यु हो जाती है। इससे पहले कार्यशाला का उद्घाटन केजीएमयू की कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने किया। इस मौके पर डीन प्रो. अमिता जैन, एएमएफ के निदेशक डॉ. राकेश कुमार, आरएमएलआईएमएस के एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ. पीके दास, प्रो. ममता हरजाई मौजूद रहे।

जबड़े की चोट में फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोप बचा सकता है जान

आयोजन सचिव डॉ. प्रेम राज ने बताया कि चोटिल व्यक्ति में मुंह से नली डालकर सामान्यतः सांस का प्रबंध किया जाता है। किंतु जबड़े की चोट में जबड़ा इस नली का भार नहीं उठा सकता। ऐसी स्थिति में फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोप तकनीक बहुत कारगर है। इसमें नाक के सहारे छोटी नली सांस के रास्ते में डाल दी जाती है। इसमें लगा कैमरा पूरा रास्ता देखने में सहायक है। इसको मॉनिटर से भी जोड़ा जा सकता है। यह फाइबर का बना होने से किसी भी जांच को प्रभावित नहीं कर सकता। इसके अलावा चोटिल रोगियों में लैरिंगोस्कोपी विधि भी कारगर होती है। इसमें वीडियो के माध्यम से रास्ता साफ दिखता है। तरल पदार्थ, रुकावट या खून के थक्के को आसानी से निकाला जा सकता है। उच्च दबाव जेट वेंटिलेशन से रोगी को शीघ्रता से ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है, जो गंभीर रोगियों के दिमाग को ऑक्सीजन की कमी से होने वाली चोट से बचाता है।

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