माफी न मांगी तो हो सकता है लखनऊ विश्वविद्यालय से निष्कासन, छात्रों ने गढ़ा नारा... ''ऐसे प्रोफेसरों से हमें चाहिए आजादी''

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Published By Muskan Dixit
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दो असिस्टेंट प्रोफसर को कारण बताओ नोटिस हुआ जारी, बिगाड़ रहे सामाजिक सौहाद्र

लखनऊ, अमृत विचार: लखनऊ विश्वविद्यालय की भाषा विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर माद्री काकोटी और प्रबंध विज्ञान संस्थान के डॉ. सौरव बनर्जी की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। जेएनयू के ‘टुकड़े गैंग’ कहे जाने वाले वामपंथी नारे की तर्ज पर विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों ने नारा गढ़ा ऐसे प्रोफेसरों से हमें चाहिए आजादी…। गुरुवार को यह नारा परिसर में खूब गूंजा। दोनों शिक्षकों को विश्वविद्यालय की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है। प्रो. माद्री काकोटी (मेडुसा) के खिलाफ तो कई गंभीर धाराओं में मुकदमा भी दर्ज किया जा चुका है।

पहलगाम में 28 भारतीय नागरिकों की आतंकियों द्वारा हत्या के गम में जब पूरा देश डूबा है। वहीं, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक राय ने वीडियो जारी कर पहलगाम में मारे गए परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट की और कहा कि इन परिवारों से कोई भी लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाई करना चाहे तो उसे नि:शुल्क शिक्षा, आवास और भोजन सहित समस्त खर्च विश्वविद्यालय उठाएगा। ऐसे वक्त में विश्वविद्यालय के दो शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर ऐसा राग छेड़ा जिसे लेकर बवाल शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। विश्वविद्यालय सूत्रों का कहना है कि नोटिस का संतोषजनक उत्तर न मिलने पर विश्वविद्यालय अनुशासनिक कार्रवाही करेगा। ऐसी स्थिति में इन शिक्षकों की सेवा पर भी संकट छा सकता है। दूसरी तरफ भाषा विज्ञान के ही एक शिक्षक ने काकोटी के समर्थन में विश्वविद्यालय एथलेटिक्स एसोसिएशन से त्याग पत्र दे दिया।

सोशल मीडिया पोस्ट को नत्थी कर थमाया प्रो. सौरव बनर्जी को नोटिस

प्रबंध विज्ञान संस्थान के प्रो. सौरव बनर्जी को भेजे गए नोटिस में विश्वविद्यालय ने उनके तीन सोशल मीडिया पोस्ट को नत्थी किया है। जिसमें बेहद आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हुए बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ इशारा करके संघी गद्दार, दोगले, माफीवीर, मौत के सौदागर जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए पहलगाम हमले पर गृहमंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग करने की बात लिखी गई है। दूसरे पोस्ट में पुलवामा की आतंकी घटना को चुनावी फायदे के लिए बताया गया है उसी प्रकार पहलगाम को भी खूनीखेल कहा गया है। जिसे बेहद आपत्तिजनक शब्दावली में लिया गया है।

काकोटी के पोस्ट पाक को खूब आए रास

भाषा विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर माद्री काकोटी (मेडुसा) की पोस्ट को पाकिस्तान में साझा किया गया। पाकिस्तान की पीटीसी हैंडल ने उसे शेयर करते हुए काकोटी की सराहना की है। लेकिन जो मामले कानूनी रूप से दर्ज हो चुके हैं उस पर न्यायालयी प्रक्रिया आगे बढ़नी तय है। यदि उनके वीडियो और पोस्ट प्रयोगशाला में पुलिस की जांच के बाद सही पाए जाते हैं तो भारी मुसीबत होना तय है।

सीमाएं हैं अभिव्यक्ति की आजादी की

उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक मिश्र बताते हैं कि वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। लेकिन इसकी कुछ सीमाएं अनुच्छेद 19(2) में निर्धारित की गई हैं। जिसमें देश की अखंडता, देश की सुरक्षा, संप्रभुता को चुनौती, मित्र देशों के खिलाफ बोलना, मानहानि, किसी को अपराध के लिए उकसाना अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता आशुतोष श्रीवास्तव कहते है कि नागरिकों के ऐसे पोस्ट या विचार दुश्मन देश को फायदा पहुंचाते हैं। वह इसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय जांच में अपने फायदे के लिए कर सकते हैं।

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