मर्जी से जीवन साथी चुनना शिल्पा की बड़ी भूल, बेटी का शव लेने नहीं गया परिवार, पुलिस और चंद ग्रामीणों ने किया अंतिम संस्कार
बाराबंकी, अमृत विचार। किसी ने सही कहा है, कुछ प्रेम कहानियां अधूरी नहीं, अभिशप्त होती हैं। शिल्पा यादव की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही। मौत के बाद शिल्पा का शव तन्हा पोस्टमार्टम गृह में 72 घंटों तक पड़ा रहा। कोई अपना सामने नहीं आया तो शनिवार को पुलिस व चंद ग्रामीणों ने सहयोग कर शव का अंतिम संस्कार कर दिया।
मसौली थाना क्षेत्र के ग्राम लालपुर मजरे भरथीपुर में गत 5 मई को शादी के मंडप से प्रेमी भानुप्रताप सिंह संग भागी शिल्पा ने अगली सुबह आम के बाग में फांसी लगाकर जान दे दी। मौत शायद अंतिम फैसला था, लेकिन अपनों की बेरुख़ी उस फैसले से भी ज़्यादा सज़ा बन गई। पिता ने कहा, “जिस दिन वह भागी, उसी दिन मर गई हमारे लिए और फिर सचमुच, जब वह मरी, तो उसके लिए कोई आया ही नहीं। 72 घंटे तक उसकी लाश मर्चरी हाउस में रही। शिल्पा की आंखें तो बंद थीं, मगर शायद रूह हर आहट पर ये सोचती रही कि क्या कोई अपना आएगा? शिल्पा का गुनाह बस इतना था कि उसने अपनी मर्ज़ी से जीवन साथी चुना, लेकिन यही मर्ज़ी उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल बन गई। समाज की तथाकथित मर्यादा ने एक लड़की को पहले बागी कहा, फिर लावारिस। कानूनी नियम कायदे के तहत आखिर 72 घंटों की मियाद पूरी हुई और कमरियाबाग स्थित शमशानघाट में शिल्पा के मृत शरीर को आखिरकार अंतिम संस्कार नसीब हुआ, लेकिन वह भी क्षेत्रीय पुलिस और गांव के बीडीसी व डा. सत्यनाम चौहान, इंद्रसेन चौहान, रामकुमार, संजय, त्रिलोक जैसे कुछ संवेदनशील लोगों के हाथों से।
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