World Nursing Day: डॉक्टर और मरीज के हर सवाल का जवाब हैं ''सिस्टर'', मां तो नहीं, मगर मां से कम भी नहीं है
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पंकज द्विवेदी, लखनऊ, अमृत विचार: अस्पताल के वार्ड से लेकर इमरजेंसी तक शायद ही कोई ऐसा बेड जहां सिस्टर...सिस्टर की आवाज न सुनाई देती हो। मरीज हो या फिर तीमारदार...सिस्टर देखिए ड्रिप नहीं चल रही, मरीज को सांस लेने में दिक्कत आ रही है। समय हो गया है इंजेक्शन देना है जल्दी चलिए...दवा फिर से बता दीजिए सिस्टर...।
सिस्टर गर्भ में रखकर जिंदगी देने वाली मां भले ही नहीं होती लेकिन सेवाभाव से मरीज को नई जिंदगी जरूर देती हैं। मरीज को स्वस्थ कर उनके परिवार के लोगों के जीवन में भी खुशियां भर देती हैं। परिवार के साथ मरीजों और तीमारदारों से भी अपनापन, लावारिसों की मां से बढ़कर सेवा उन्हें अलग पहचान दिलाता है। ''अमृत विचार'' ने ''विश्व नर्सिंग दिवस'' पर शहर की कुछ ऐसी ही नर्सों से बात की। सभी ने मरीजों की सेवा को एक व्रत की तरह पूरा करने की बात कही।
घर और अस्पताल के बीच संतुलन जरूरी
हजरतगंज चौराहा स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की नर्सिंग आफीसर पुष्पांजलि कहती हैं कि मरीज है तभी नौकरी है। नौकरी हमारी जरूरतों को पूरा करती है। इसलिए घर और अस्पताल के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। इस पेशे में मरीजों और तीमारदारों से अच्छा व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि, वह पूरे विश्वास के साथ अपना जीवन आपको समर्पित कर देते हैं। यदि उनके तीमारदारी में कुछ थोड़ा बहुत खर्च भी हो जाये तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
मरीजों और तीमारदारों के साथ करें मित्रवत व्यवहार
हजरतगंज स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल (सिविल) की अजरा हसन का मानना है कि मरीज और तीमारदारों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। मरीज की हालत गंभीर होने पर भी उसे या फिर तीमारदार को डराएं नहीं। भावनात्मक सपोर्ट करें। इससे मरीज घबराएगा नहीं। आपके द्वारा किया गया व्यवहार मरीज-तीमारदार हमेशा याद रखेंगे। कभी कभी मरीज-तीमारदार चिकित्सक से बात नहीं कर पाते हैं, लेकिन यदि आपका व्यवहार अच्छा है तो उन्हें बात करने में परेशानी नहीं होगी।
102 टीबी मरीजों की निभा रहे जिम्मेदारी
केजीएमयू के अधीक्षक प्रदीप गंगवार 15 साल पहले केजीएमयू में नर्सिंग ऑफिसर के रूप में तैनात हुए थे। उस समय उनकी तैनाती पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में ही थी, जहां पर टीबी रोगियों का इलाज किया जाता था। मरीजों के इलाज के दौरान वह भी टीबी से ग्रसित हो गए। हालांकि उन्हें समय पर अपने रोग की जानकारी हो गई और उन्होंने इलाज शुरू कर दिया, लेकिन इलाज के दौरान उन्हें एक महीने तक शारीरिक कमजोरी महसूस की। इसके बाद उन्होंने टीबी रोगियों को गोद लेने की मुहिम शुरू की। 40 दिनों के अभियान में वह 102 मरीजों को गोद ले चुके हैं, उनका कहना है यह अभियान चलता रहेगा। उनके इस प्रयास की उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक भी सराहना कर चुके हैं।
नर्सें अस्पताल की रीढ़
एसजीपीजीआई में नर्सिंग संघ की पूर्व अध्यक्ष सीमा शुक्ला का कहना है कि नर्सिंग सेवाओं में आने वाले लोगों का उद्देश्य पद,प्रतिष्ठा व पैसे कमाना नहीं बल्कि मानवता व इंसानियत की सेवा करना होता है, नर्सिंग को विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में देखा जाता है, आज देश में स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ बन चुकी नर्सेस को कई तरह की शारीरिक ,मानसिक व आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है अपनी सेवाओं के दौरान उन्हें कई विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। इनकी जिम्मेदारी मरीज के प्रति ज्यादा होती हैं। मरीजों से केवल दो शब्द अच्छे से बोल ले तो सारी बीमारी मरीज भूल जाता है।
एक सामान मिले वेतन भत्ता
राजकीय नर्सेज संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सत्येंद्र कुमार का कहना है पूरे देश में नर्सिंग की एक ही पढ़ाई कर अलग-अलग संस्थानों,मेडिकल कॉलेजों एवं स्वास्थ्य केंद्रों पर कार्य कर रही सरकार द्वारा नियुक्त नर्सेज के वेतन-भत्तों में एक बड़ी असमानता बनी हुई है। प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियुक्त नर्सेज उच्च चिकित्सा संस्थानों लगभग 15 हजार रुपये कम वेतन पर कार्य कर रही हैं, साथ ही उन्हें बच्चों की फीस प्रतिपूर्ति, न्यूज़ पेपर भत्ता, इंटरनेट भत्ता आदि से वंचित रखा जा रहा है। वर्तमान में लोक सेवा आयोग से चयनित नर्सेज चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं दोनों में कार्य कर रही हैं एक ही स्थान से चयनित होने के बाद भी उनके वेतन-भत्तों में काफी अंतर आ रहा है। भारत सरकार को चाहिए की एक देश,एक विधान, एक संविधान की तर्ज पर पूरे देश में नर्सेज के लिये समान वेतन भत्ते और सुविधाओं का नियम लागू करे।
हॉस्पिटल में ऑन ड्यूटी हिंसा पर लगे रोक
केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग की कल्पना वर्मा उप नर्सिंग अधीक्षिका के पद पर कार्यरत है। उन्हें विभाग द्वारा बेस्ट नर्सिंग ऑफिसर अवार्ड भी मिल चुका है। उनका कहना है बिना नर्सों के किसी भी अस्पताल का संचालन करना नामुमकिन है। उन्हें अपनी मां से नर्सिंग सेवा की प्रेरणा मिली। कल्पना बताती हैं कि उनके पति भी नर्सिंग में हैं। अब वह दो बच्चों के साथ घर और अस्पताल की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। उनकी मांग है कि हॉस्पिटल में ऑन ड्यूटी हिंसा पर रोक लगे, बच्चों के लिए पालना घर, परिजनों के लिए आरक्षित बेड, कर्मचारियों एवं भर्ती मरीजों के लिए आवश्यक पर्याप्त दवा की आपूर्ति सर्कार को सुनिश्चित करना चाहिए।