फर्जी याचिका दाखिल करने की प्रवृत्ति पर हाईकोर्ट ने जताई चिंता, जानें क्या कहा...

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक झूठे मामले को आधार बनाकर दाखिल की गई याचिका पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इस मामले की निष्पक्ष और गहन जांच होनी चाहिए, क्योंकि अपराधियों ने न्यायालय के साथ धोखाधड़ी करने का प्रयास किया है। अगर षड्यंत्रकारी अपने मंसूबे में सफल हो जाते हैं तो यह न केवल न्याय का उपहास होगा बल्कि इससे आपराधिक न्याय प्रणाली पर एक दाग भी लगेगा। 

न्यायिक संस्थाओं की अखंडता को भी नष्ट करने वाली इस प्रवृत्ति को अत्यंत सतर्कता और संकल्प के साथ रोका जाना चाहिए। उक्त टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकलपीठ ने माना कि कोर्ट के साथ ऐसी धोखाधड़ी किसी गुप्त उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए की गई है। इस तरह की धोखाधड़ी न्यायालय की कार्यवाही से अच्छी तरह परिचित किसी व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी के बिना नहीं की जा सकती है। 

कोर्ट ने पुलिस आयुक्त, प्रयागराज को एक स्वतंत्र तथा निष्पक्ष जांच करने का निर्देश दिया, जिससे सभी षड्यंत्रकारियों और धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए सहायता प्रदान करने वाले व्यक्तियों को न्याय के सामने लाया जा सके। कथित याचिका में महिला और विनोद पांडेय को कानूनी रूप से विवाहित बताया गया है, जिन्होंने 22 फरवरी 2022 को मऊ में एक मंदिर में हिंदू रीति-रिवाज के साथ विवाह किया है। 

याचिका में आरोप लगाया गया है कि शादी के बाद याची पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं, लेकिन अपने माता-पिता से जान का खतरा होने के कारण महिला अपने पैतृक घर नहीं जा पा रही हैं जबकि 27 अप्रैल 2024 को मामले की सुनवाई के दौरान महिला ने अपने भाई के साथ व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होकर यह बताया कि वर्तमान याचिका किसी छद्म व्यक्ति द्वारा उनकी जानकारी तथा सहमति के बिना किसी गुप्त उद्देश्य से दाखिल की गई है। 

इसके अलावा महिला ने यह भी दावा किया कि वर्तमान याचिका और हलफनामे पर हस्ताक्षर उनके नहीं है और इस प्रक्रिया में उनके आधार कार्ड का दुरुपयोग किया गया है। याची महिला ने आशंका जताई है कि वर्तमान याचिका उनके पति द्वारा तलाक के लिए आधार बनाने हेतु किसी अधिवक्ता के साथ मिलीभगत करके दाखिल की गई होगी। 

इसी प्रकार दूसरे याची विनोद पांडेय ने अपने हलफनामे में कोई भी याचिका दाखिल न करने का दावा किया है, साथ ही उन्होंने महिला याची के साथ किसी भी तरह के विवाह से भी इनकार किया है। जब वर्तमान याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता लल्लन चौबे को कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया तो उन्होंने भी उनके नाम और हस्ताक्षर के दुरुपयोग की बात दोहराई।

 मौजूदा मामले में कोर्ट ने प्रथम दृष्टया शपथ आयुक्त द्वारा कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही बरतने की बात स्वीकार की। दूसरी ओर महिला के पति ने अपने जवाबी हलफनामे में कोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी दूसरे याची के साथ व्यभिचारी संबंध में थी और उसने अपने ससुराल लौटने से इनकार कर दिया था। अंत में मामले की तथ्यों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पुलिस जांच के आदेश देते हुए सुरक्षा याचिका खारिज कर दी।

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