नीट यूजी : हाईकोर्ट ने पुनर्मूल्यांकन के दिये निर्देश, कहा - कानून में मानवीय त्रुटि में सुधार के हैं प्रावधान, जानिये पूरा मामला
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट [यूजी]-2025 के एक अभ्यर्थी की ऑप्टिकल मार्क्स रिकॉग्निशन (ओएमआर) शीट के पुनर्मूल्यांकन का निर्देश देते हुए कहा कि उम्मीदवार की उम्र केवल 20 वर्ष है और उसने अन्य उम्मीदवारों की तरह परीक्षा देने की तैयारी की थी। गलती करना मानवीय स्वभाव है।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में, लिपिकीय त्रुटियों में सुधार का प्रावधान है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि परीक्षा का उद्देश्य सबसे योग्य व्यक्ति का चयन करना है। वर्तमान मामले में याची द्वारा की गई त्रुटि के कारण उसकी योग्यता का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है। अतः अगर उसकी योग्यता का पुनर्मूल्यांकन किया जाता है और इस प्रकार वह किसी कम योग्यता वाले व्यक्ति को हटा देती है, तो पुनर्मूल्यांकन में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने आगे माना कि याची ने जानबूझकर गलत पुस्तिका संख्या का उल्लेख नहीं किया। इसे जानबूझकर किया गया कार्य नहीं कहा जा सकता है।
अंत में कोर्ट ने राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) को निर्देश दिया कि वह उत्तर पुस्तिका 47 के आधार पर याची के ओएमआर का पुनर्मूल्यांकन करे तथा परिणाम से न्यायालय को अवगत कराए। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अक्षिता सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। हालांकि कोर्ट ने याची को उसकी चयन स्थिति के संबंध में कोई अंतरिम राहत नहीं दी।
मामले के अनुसार याची ने ओएमआर शीट पर प्रश्न पुस्तिका संख्या 47 के बजाय 46 लिख दी थी, जिसके कारण उसके ओएमआर का मूल्यांकन अलग प्रश्नों की श्रृंखला के आधार पर किया गया। याची का दावा है कि अगर यह गलती न होती, तो उसे 720 अंकों में से 589 अंक मिलते और वह चयन के लिए कट-ऑफ में जगह बना लेती। वर्तमान याचिका में याची ने संबंधित अधिकारियों को उसकी ओएमआर शीट का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश देने की मांग की थी, जिस पर एनटीए के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि मूल्यांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब इसमें हस्तक्षेप करने की कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन कोर्ट ने उपरोक्त तर्क को न मानते हुए पुनर्मूल्यांकन के निर्देश दिए।
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