जनहित याचिका में हलफनामा दाखिल करने के निर्देश 'अपील योग्य आदेश' नहीं: हाईकोर्ट

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Published By Vinay Shukla
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खंडपीठ ने विशेष अपील को किया खारिज, कहा– न तो मौलिक अधिकार प्रभावित हुए, न ही अंतिम निष्कर्ष निकाला गया

प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाओं में अंतरिम आदेशों के विरुद्ध विशेष अपील की सीमा रेखा स्पष्ट करते हुए कहा है कि ऐसे आदेश जो केवल प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से दिए गए हों, वे अपील योग्य नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने कहा कि जब तक कोई आदेश प्रत्यक्ष रूप से किसी पक्ष के मौलिक अधिकारों को प्रभावित न करे या मामले के किसी मुख्य पहलू का अंतिम निस्तारण न करे, तब तक उसके विरुद्ध विशेष अपील नहीं की जा सकती।

खंडपीठ ने की स्पष्ट व्याख्या : न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने यह टिप्पणी जनहित याचिका में दिए गए एकल न्यायाधीश के आदेश के विरुद्ध दाखिल विशेष अपील को खारिज करते हुए की। अपील केसर सिंह द्वारा दायर की गई थी, जबकि मूल याचिका किसी और ने दायर की थी।

प्रशासनिक जांच के आदेश थे, अंतिम फैसला नहीं : खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने याचिका में लगे गंभीर आरोपों के दृष्टिगत याचिका को वापस लेने की अनुमति नहीं दी थी। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि विपक्षी द्वारा दबाव और धमकी दिए जाने के कारण याचिका वापस ली जा रही थी। आरोप विपक्षी की आपराधिक पृष्ठभूमि और ग्रामसभा की भूमि पर अवैध कब्जे से संबंधित थे।

इसलिए कोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारियों से रिपोर्ट तलब करने और विपक्षी को प्रति-शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश सिर्फ तथ्यों की जांच और रिकॉर्ड की स्पष्टता हेतु था — इसमें न तो किसी के अधिकारों का अंतिम निर्धारण किया गया, और न ही इससे किसी पक्ष को कोई विधिक हानि हुई।

विशेष अपील भी गलत पक्ष द्वारा दायर : कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विशेष अपील स्वयं याची ने नहीं, बल्कि उस विपक्षी व्यक्ति ने दाखिल की थी, जिस पर याचिका में गंभीर आरोप लगे थे। ऐसे में अपील की पोषणीयता (maintainability) भी संदेह के घेरे में थी।

निर्देश: निर्धारित समय में दाखिल करें प्रति-शपथपत्र : खंडपीठ ने विशेष अपील को पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया और विपक्षी को निर्देश दिया कि वह निर्धारित समयावधि में अपना प्रति-शपथपत्र दाखिल करे, ताकि जनहित याचिका में आगे की सुनवाई की जा सके।

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