इलाहाबाद हाईकोर्ट: एफआईआर दर्ज करने के आदेश को नहीं दी जा सकती पूर्व-चुनौती"

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि 'भावी अभियुक्त' को एफआईआर दर्ज करने और जांच के आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है, जब तक उसके खिलाफ संज्ञान नहीं लिया गया हो।

यह निर्णय न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की एकलपीठ ने कामलेश मीणा व अन्य द्वारा दाखिल याचिका पर सुनाया। याचियों ने आगरा की एससी/एसटी विशेष अदालत द्वारा 5 जुलाई 2025 को एफआईआर दर्ज करने और जांच शुरू करने के आदेश को चुनौती दी थी। मामले में शिकायतकर्ता वीरेंद्र सिंह, बैंक ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त मैनेजर और अनुसूचित जाति वर्ग के सदस्य हैं, जिन्होंने आरोप लगाया कि याची कर्मचारियों ने उन्हें बदनाम करने की साजिश रची, जाली शिकायतें भेजीं और यात्रा बिलों को फर्जी बताया।

शिकायतकर्ता को पुलिस से राहत न मिलने पर उन्होंने बीएनएसएस की धारा 173(4) के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दिया। मजिस्ट्रेट ने एफआईआर और जांच के आदेश दिए, जिसे याचिकाकर्ताओं ने धारा 528 के तहत चुनौती दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जब तक मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता, तब तक संभावित अभियुक्त को जांच आदेश चुनौती देने का अधिकार नहीं है। इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका को अमान्य मानते हुए खारिज कर दिया।

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