केजीएमयू कार्य परिषद में एससी-एसटी व पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व घटने से असंतोष

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। केजीएमयू में सर्वशक्तिमान 22 सदस्यीय कार्य परिषद में दो सदस्य आरक्षित वर्ग यानी एससी, एसटी व पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करेंगे। जबकि 2014 तक पूर्व में चार सदस्य प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। राज्य सरकार के इस फैसले से आरक्षित वर्ग के शिक्षक संतुष्ट नहीं हैं। शिक्षकों का कहना है कि अगर केजीएमयू में आरक्षित वर्ग के अधिकारों को सुरक्षित रखना है तो कार्यपरिषद में केजीएमयू के अधिनियम के अनुसार कम से कम आठ सदस्य तो रखने ही चाहिए। वो शिक्षक भी कुलपति से नामित न हो, बल्कि शिक्षक वर्ग स्वयं चयनित करे और कार्य परिषद में प्रतिनिधित्व को भेजा जाए।

एससी-एसटी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन, उप्र. का कहना है कि केजीएमयू की प्रथम परिनियमावली के अनुसार कार्य परिषद में सभी वर्ग को प्रतिनिधित्व देय आरक्षण के अनुसार किया जाएगा। केजीएमयू कार्य परिषद में अध्यक्ष समेत 22 सदस्य बनाए जाने की व्यवस्था है, जिसमें उपबंधित आरक्षण के अनुसार कम से कम अनुसूचित जाति के चार एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के छह सदस्य होने चाहिए,यानी कुल 10 सदस्य होने चाहिए, लेकिन कैबिनेट से पारित संसोधन बिल में कुल दो शिक्षकों पर ही मुहर लगी है, जबकि केजीएमयू में अब मेडिकल, दंत, पैरामेडिकल व नर्सिंग कुल चार संकाय हैं। चारों विभाग में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। इसके लिए सत्ता पक्ष के अनुसूचित जाति व पिछड़े वर्ग के कई मत्रियों, सांसद, विधायकों व उप मुख्यमंत्री की ओर से लिखित में अनुरोध भी किया गया, लेकिन राज्य सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।

आरोपों के क्रम में एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि कार्य परिषद के लिए सदस्य कुलपति की ओर से नामित किए जाने हैं, अगर आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के अधिकारों को सुरक्षित रखना है तो कार्य परिषद के सदस्य का चुनाव करने का अधिकार भी, अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग के शिक्षकों को होना चाहिए। शिक्षकों द्वारा चयनित सदस्य आरक्षित वर्ग के अधिकारों को संरक्षित कर सकता है।

10 साल पूर्व तक कार्यपरिषद में थे चार शिक्षक

केजीएमयू अधिनियम में सन् 2003 में संसोधन अध्यादेश के माध्यम से मेडिकल संकाय तथा दंत संकाय से एक-एक एससी और ओबीसी कुल चार शिक्षकों को कार्य परिषद में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए नामित किया गया था। उक्त क्रम में मेडिकल संकाय से डॉ. एसएन कुरील, डॉ. श्रद्धा सिंह, दंत संकाय से डॉ.हरिराम व डॉ. शादाब मोहम्मद 10-11 वर्षों तक कार्य परिषद में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। शिक्षकों का कहना है कि आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व होने से आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के प्रमोशन व अन्य किसी कार्रवाई में सुनवाई का मौका मिलता है।

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