HC ने पुलिस को फटकारा: गवाह नहीं लाए तो मुक़दमों में देरी सहनीय नहीं, ट्रायल एक साल में पूरा करें

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में गवाहों की अनुपस्थिति पर पुलिस अधिकारियों की लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि समय पर समन न जारी करने और गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित न करने से मुक़दमों में अनावश्यक देरी हो रही है, जो न्याय व्यवस्था के लिए चिंताजनक है।

न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने यह टिप्पणी मुनीर की दूसरी जमानत याचिका खारिज करते हुए की। मुनीर पर नाबालिग से दुष्कर्म और अन्य गंभीर आरोप हैं और वह 2022 से जेल में बंद है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस द्वारा वैधानिक आदेशों की अवमानना करने से ट्रायल में देरी होती है। ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया गया है कि संबंधित मुकदमों की सुनवाई आदेश की प्राप्ति की तिथि से अधिकतम एक वर्ष के भीतर पूरी कर ली जाए। लगातार कोर्ट में न आने वाले गवाहों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी और उनकी अनुपस्थिति पर जिम्मेदार पक्षों की पहचान कर संबंधित कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया गया।

मामला और आरोप : मुनीर पर थाना छरथावल (मुजफ्फरनगर) में आईपीसी की धाराएँ 363, 366, 376, 384, पॉक्सो एक्ट की धारा 5/6 तथा आईटी एक्ट की धारा 67A के तहत मामला दर्ज है। अदालत ने कहा कि देरी का एक बड़ा कारण गवाहों की अनुपस्थिति तथा समय पर समन की तामील न होना है।

कोर्ट ने पहले के आदेशों का हवाला दिया : हाईकोर्ट ने भंवर सिंह उर्फ करमवीर बनाम उत्तर प्रदेश और जितेंद्र बनाम उत्तर प्रदेश के अपने पहले के आदेशों का भी हवाला देते हुए बताया कि उन आदेशों में भी गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने और ट्रायल की गति बढ़ाने संबंधी निर्देश थे, जिनका सतत पालन होना चाहिए।

न्यायिक चिंता- त्वरित कार्रवाई जरूरी : कोर्ट ने कहा कि न सिर्फ पुलिस बल्कि जिन विभागों/अधिकारियों की जिम्मेदारी है, उन्हें भी अपने दायित्व समझकर गवाहों को पेश कराने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। न्यायपालिका की चिंता यह भी है कि लंबित ट्रायल से पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता और दोषियों को भी नियत समय पर सजा नहीं मिल पाती।

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