जो जैसा है, वैसा ही देखना और समझना है विपश्यना

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Published By Muskan Dixit
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विपश्यना आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्म शुद्धि की प्राचीन साधना विधि है। बौद्ध ध्यान की इस प्रक्रिया में जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखने और समझने की सीख दी जाती है। ध्यन साधना की इस विधि में किसी शांत जगह पर सहज स्थिति में बैठकर साधक को अपनी नासिका से आने-जाने वाली सांसों का अनुभव करना होता है। इसके बाद धीरे-धीरे शरीर में होने वाली संवेदनाओं को बिना किसी प्रतिक्रिया के तटस्थ तरीके से देखना तथा समझना होता है। यही नहीं, मन में आने वाले विचारों और भावनाओं को भी बस आते-जाते महसूस करना होता है।

गौतम बुद्ध ने अनुसंधान के बाद सामने रखा सरल रूप

विपश्यना शब्द भारत की प्राचीन पाली भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है अंतर्दृष्टि या स्पष्ट दृष्टि। इस ध्यान विधि को हजारों साल से योगी करते आए हैं। गौतम बुद्ध ने इसी ध्यान पद्धति को अनुसंधान करने के बाद सरलतम रूप में लोगों के सामने रखा था। उन्होंने इस ध्यान विधि को रोगों के इलाज, जीवन जीने की कला के रूप में स्थापित किया। इसके पीछे उद्देश्य इस विधि के जरिए लोगों के विकारों का संपूर्ण निर्मूलन करके उन्हें परम विमुक्ति का उच्च आनंद प्राप्त कराना था।

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प्रेम तथा करुणा से भरा संतुलित मन तैयार होता

वास्तव में विपश्यना आत्म अवलोकन के माध्यम से आत्म-परिवर्तन का तरीका है। यह मन और शरीर के बीच गहरे अंतर संबंध पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसे शरीर के चेतना का निर्माण करने वाली भौतिक संवेदनाओं पर सीधे ध्यान देकर अनुभव किया जा सकता है। यह मन की चेतना की गतिविधि को लगातार परस्पर संबंध और स्थिति में रखती है। मन और शरीर की सर्वसामान्य जड़ की यह अवलोकन आधारित, आत्म खोजात्मक यात्रा है, जो मानसिक अशुद्धता को पिघलाती है, जिसके परिणामस्वरूप एक संतुलित, प्रेम तथा करुणा से भरा मन तैयार होता है।

प्राणायाम व साक्षी भाव का मिलाजुला योग जैसी पद्धति

भगवान बुद्ध के समय से विपश्यना की पीढ़ी दर पीढ़ी यात्रा अब तक जारी है। यह पद्धति प्राणायाम और साक्षी भाव का मिलाजुला योग जैसी है। इसके पांच सिद्धांतों में जीव हिंसा से दूरी, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य पालन, अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं करना तथा नशे का त्याग है, तो पांच नियमों में परिश्रम, श्रद्धा, मन की सरलता, आरोग्य एवं प्रज्ञा को शामिल किया गया है।

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चिंता व तनाव से छुटकारा सकरात्मक ऊर्जा का भंडार 

विपश्यना को लेकर मान्यता है कि एक बार जब आप बुनियादी आसन और श्वास प्रश्वास की प्रक्रिया सीख लेते हैं, तो यह बहुत आसान हो जाता है। इसका उपयोग समस्याओं को दूर करने, मन को शांत और स्वस्थ बनाने, शरीर निरोगी रखने तथा सकरात्मक ऊर्जा से सराबोर रहने के लिए किया जाता है। विपश्यना ध्यान विधि तनाव से छुटकारा दिलाती है, चिंताओं को नियंत्रित करके अवसाद से दूर रखती है।

विपश्यना ध्यान का तरीका

- एक शांत स्थान खोजकर आराम से सहज मुद्रा में बैठ जाएं।
-     आंखें बंद करके सामान्य रूप से सांस लेना शुरू करें।
- नासिका और फेफड़ों जैसे श्वास के भागों पर ध्यान केंद्रित करें।
-     स्वभाविक रूप से सांस लेते हुए  श्वांस के आरंभ, मध्य और अंत पर फोकस करें।
-     विचारों, भावनाओं, शारीरिक संवेदनाओं का अवलोकन करें।
-     ध्यान भटकना स्वभाविक है, ऐसा होने पर पुन: सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।

धम्म गिरी दुनिया का सबसे बड़ा विपश्यना ध्यान केंद्र

दुनिया का सबसे बड़ा विपश्यना ध्यान केंद्र धम्मगिरी, महाराष्ट्र के इगतपुरी में स्थित है। बोधगया, बिहार में स्थित धम्म बोधि ध्यान केंद्र भी काफी खूबसूरत है। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में सिखरा धम्म केंद्र पहाड़ों और देवदार के वृक्षों के बीच अलग ही अनुभव देता है। देहरादून के समीप बना धम्म सलिला भी विपश्यना ध्यान केंद्र भी नदी के किनारे मनोरम स्थान है। 

- लेखिका: नमिता त्रिपाठी, जबलपुर

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