प्रयागराज : कोर्ट प्रत्येक प्रश्न–उत्तर की जांच करने वाला विशेषज्ञ निकाय नहीं

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर के छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए एलएलबी प्रथम सेमेस्टर में 500 में से 499 अंक देने की मांग करने वाली एक विधि छात्रा की याचिका को 20 हजार रुपये की लागत के साथ खारिज कर दिया। 

कोर्ट ने याची को “दीर्घकालिक वादी” बताते हुए कहा कि उसने 2021 और 2022 के बीच कम से कम दस याचिकाएं दाखिल की हैं, जिनमें रिट, समीक्षा और विशेष अपीलें शामिल हैं। याची ने दावा किया था कि विश्वविद्यालय ने उसे कम अंक दिए हैं और कोर्ट से प्रत्येक विषय में उसे 100 अंक देने का निर्देश देने को कहा, लेकिन पुनर्मूल्यांकन के बाद विश्वविद्यालय ने बताया कि छात्रा को 499 नहीं, बल्कि मात्र 181 अंक प्राप्त हुए हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि छात्रा का दावा “पूर्णत: आधारहीन धारणा” पर आधारित है। उसने अपने हलफनामे में प्रश्नों और उत्तरों का उल्लेख किया है, लेकिन उनका स्रोत स्पष्ट नहीं है और यह भी नहीं बताया गया कि ओएमआर शीट में कौन से प्रश्न सही अंकित किए गए थे। कोर्ट ने कहा कि स्रोत की पुष्टि किए बिना केवल दस्तावेज दाखिल करने से याची का मामला मजबूत नहीं होता, बल्कि और कमजोर हो जाता है।कोर्ट रिट क्षेत्राधिकार में बैठकर प्रत्येक प्रश्न–उत्तर की जांच करने वाला विशेषज्ञ निकाय नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने संतोष कुमारी की याचिका को 20 हजार रुपये की लागत सहित खारिज करते हुए पारित किया, साथ ही यह राशि 15 दिनों के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा अधिकरण के खाते में जमा करने का निर्देश दिया। इसके अलावा 

कोर्ट ने पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया में किसी अनियमितता या अवैधता के प्रमाण न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट के ‘विकेश कुमार गुप्ता बनाम राजस्थान राज्य’ के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि शैक्षिक मामलों में न्यायालय को सीमित हस्तक्षेप करना चाहिए। इसके साथ ही सुनवाई के दौरान चेतावनी के बावजूद छात्रा द्वारा बार-बार व्यवधान डालने और न्यायालय से स्वयं को मामले से अलग करने की मांग पर न्यायमूर्ति ने कठोर शब्दों में फटकार लगाई। अंत में कोर्ट ने छात्रा को कड़े शब्दों में नसीहत देते हुए कहा कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करें, जिससे ईमानदार तैयारी से बेहतर अंक प्राप्त हों और दोबारा इस न्यायालय का दरवाजा न खटखटाना पड़े।

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