हाईकोर्ट : आरोपी की मृत्यु सिद्ध होने पर ही रद्द हो सकता है गैर-जमानती वारंट

Amrit Vichar Network
Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 41 साल पुराने मामले में सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) केवल दो स्थितियों में ही बिना तामील के लौटाया जा सकता है, जब आरोपी की मृत्यु सिद्ध हो जाए या जब ठोस प्रमाणों के साथ यह स्थापित हो कि वह देश छोड़कर भाग गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने प्रयागराज पुलिस आयुक्त की उस रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार करते हुए दिया, जिसमें वर्षों पुराने एक मामले के दोषी को “बिना किसी सुराग” लापता बताया गया था।

कोर्ट ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस महज़ यह दावा नहीं कर सकती कि भगोड़ा मिल नहीं रहा। यह पुलिस का दायित्व है कि वह पता लगाए कि न्याय से भागने वाला व्यक्ति कहां छिपा है, चाहे वह देश के किसी भी हिस्से में क्यों न हो। वर्ष 1984 में एकमात्र अपीलकर्ता-दोषी मौलाना खुर्शीद जमाल कादरी, जो उस समय प्रयागराज में निजी ट्यूटर थे, अप्रैल 1984 में जमानत पर रिहा हुए थे, लेकिन दशकों बाद सुनवाई के समय गायब पाए गए।

इस वर्ष कोर्ट ने उनके विरुद्ध सीआरपीसी की धारा 82 की कार्यवाही शुरू की। इसके बाद मुजफ्फरपुर व दरभंगा में की गई पूछताछ और प्रयागराज पुलिस आयुक्त की विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट में उनके ठिकाने का कोई विश्वसनीय संकेत नहीं मिला। रिपोर्ट में बताया गया कि मामले में अन्य दोनों ज़मानती काफी पहले मर चुके हैं और प्रयागराज में अपीलकर्ता का कोई स्थायी पता नहीं था।

स्थानीय सूचनाओं के आधार पर बिहार में भी खोजबीन की गई, लेकिन कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिला। रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि पुलिस के प्रयास “असंतोषजनक” हैं। कोर्ट ने दोहराया कि एनबीडब्ल्यू केवल मृत्यु या स्थापित विदेश-प्रवास की स्थिति में ही लौट सकता है, अन्य किसी भी हाल में नहीं। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि प्रयागराज पुलिस आयुक्त नई और ठोस रिपोर्ट प्रस्तुत करें और भगोड़े को किसी भी हाल में कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। मामले की अगली सुनवाई आगामी 11 दिसंबर को होगी।

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