बरेली: डलावघरों के प्लास्टिक वेस्ट से बने ब्रिक से बनेगी सड़क
विश्वदीपक त्रिपाठी, बरेली। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत प्लास्टिक वेस्ट को कम करने के लिए बोतल क्रशर का प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। जिसके जरिए पानी, जूस, शीतल पेय, दूध आदि के लिए इस्तेमाल हो रही प्लास्टिक की बोतलों को डलावघरों में लगी मशीने ब्रिक बना देंगी। जिससे ब्रिक उपयोग भी हो सकेगा और वातावरण …
विश्वदीपक त्रिपाठी, बरेली। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत प्लास्टिक वेस्ट को कम करने के लिए बोतल क्रशर का प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। जिसके जरिए पानी, जूस, शीतल पेय, दूध आदि के लिए इस्तेमाल हो रही प्लास्टिक की बोतलों को डलावघरों में लगी मशीने ब्रिक बना देंगी। जिससे ब्रिक उपयोग भी हो सकेगा और वातावरण के लिए बेहतर साबित होगा। इसे शहर के सभी डलावघरों में लगाया जा रहा है। सबसे पहले प्रयोग के तौर पर नगर निगम के पास स्थित डलावघर में इस मशीन को लगाया गया है।
अब शहर में निकलने वाले प्लास्टिक कचरे से ईंट बनेगी। ईंट भी ऐसी, जो मजबूत भी होगा और जिसकी उम्र 100 साल होगी। इस योजना पर काम कर रही एक निजी कंपनीहै। प्लास्टिक ईंटों (फेवर ब्लॉक) का इस्तेमाल फिलहाल शहर के फुटपाथों को बनाने में होगा। बाद में इनसे सड़कें बनाई जाएंगी। योजना की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी को दिया गया है। जिसका ट्रायल इसी सप्ताह हो जाना है।
निगम के पर्यावरण अभियंता संजीव कुमार ने बताया कि ईंट बनने से कचरा प्लास्टिक का उपयोग हो जाएगा। इस विधि से बनने वाली ईंट में 70 फीसदी प्लास्टिक और 30 प्रतिशत गिट्टी का इस्तेमाल किया जाएगा। इनसे बनीं सड़कें टिकाऊ होंगी। इसके साथ ही भविष्य में योजना है कि प्लास्टिक का दाना बना कर अन्य कार्यों में उपयोग किया जाएगा।
यहा होगा उपयोग
फुटपाथ, पार्क का पाथ, सड़क निर्माण, पाथ-वे, वाकिंग ट्रैक निर्माण ईंट लगाई जाएंगी।
यह होंगे फायदे
- पर्यावरण का संरक्षण होगा।
- सड़क टिकाऊ होगी, मरम्मत की खर्च बचेगी।
- प्लास्टिक कचरे से मुक्ति मिलेगी।
- 100 साल तक मजबूत रहेंगी प्लास्टिक ईंट।
- 300 टन तक दबाव झेल सकती है ईंट।
- 230 डिग्री से. तापमान में होता है निर्माण
