आजादी की लड़ाई का निर्णायक मोड़ था चौरी चौरा कांड
गोरखपुर। स्वतंत्रता संग्राम में चौरी-चौरा कांड एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था जिसने न सिर्फ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को स्थगित करने पर विवश कर दिया था बल्कि इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत की उल्टी गिनती भी शुरू हो गयी थी। 4 फरवरी 1922 को घटित इतिहास की इस महत्वपूर्ण घटना के सौ …
गोरखपुर। स्वतंत्रता संग्राम में चौरी-चौरा कांड एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ था जिसने न सिर्फ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को स्थगित करने पर विवश कर दिया था बल्कि इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत की उल्टी गिनती भी शुरू हो गयी थी। 4 फरवरी 1922 को घटित इतिहास की इस महत्वपूर्ण घटना के सौ वर्ष पूरे होने पर देश में शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है।
गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग ले रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने गोली चला दी थी, जिससे कई आंदोलनकारी मारे गये थे। इससे क्रुद्ध होकर प्रदर्शनकारियों ने 4 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा थाने पर हमला करके उसे आग के हवाले कर दिया था। इससे थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों की जल जाने से मौत हो गयी थी। बाद में आंदोलनकारियों में से अनेक को अंग्रेज़ों ने फांसी दे दी थी।

अग्निकांड में मारे गये पुलिसकर्मियों की याद में यहां एक स्मारक बनवाया गया था, जिस पर आज़ादी के बाद भी लोग श्रद्धांजलि देने जाते रहे, लेकिन बाद में यहां उन आंदोलनकारियों की स्मृति में एक नया शहीद स्मारक बना है, जहां हर वर्ष 4 फरवरी को लोग अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने जाते हैं। रेलगाड़ी से गुज़रते समय चौरी-चौरा स्टेशन से थोड़ी दूरी पर रेलवे लाइन के दोनो ओर दोनों स्मारक दिखाई पड़ते हैं।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1919 में असहयोग आन्दोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गोरखपुर में स्थित बाले मियां के मैदान में एक जन सैलाब को सम्बोधित किया था जिसके बाद उनसे प्रभावित होकर मुंशी प्रेमचन्द अपनी लेखनी से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का प्रमाण दिया तो यहां के फिराक गोरखपुरी आईसीएस से त्याग पत्र देकर गांधी जी के नेतृत्त्व में इस आन्दोलन में कूद पडे थे। 21 जनवरी 1919 को चौरी चौरा में साप्ताहिक बाजार लगा तो थानेदार ने लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
इस घटना के विरोध में पूरे क्षेत्र में लोग उग्र हो गये और 4 फरवरी 1922 को चौरी चौरा थाने में आग लगा दी गयी। इस घटना में 30 पुलिस कर्मियों सहित कई लोग मारे गये और फिर अंग्रेज सरकार ने 232 लोगों के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई के बाद 172 लोगों को मृत्युदंड दिया मगर पन्डित मदन मोहन मालवीय और जवाहर लाल नेहरू द्वारा की गयी कानूनी पैरवी के बाद सजा पाने वालों की संख्या 38 हो गयी जिसमें 14 लोगों को आजीवन कारावास और 19 लोगों को मृत्यु दंड दिया गया।

