बरेली: 2010 के दंगे में 25 दिन कर्फ्यू झेला, अब आरोपी बरी हो गए

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विधि संवाददाता, बरेली, अमृत विचार। 2 मार्च 2010 को हुए दंगे का जिक्र आते ही शहर वासियों की रूह कांप उठती है। इस दंगे ने हजारों लोगों को ऐसे जख्म दिए, जो कभी नहीं भर सकते। करीब 25 दिन तक शहर में कर्फ्यू लगा था। जुलूस-ए-मोहम्मदी के रूट को लेकर हुए साम्प्रदायिक बवाल ने पूरे …

विधि संवाददाता, बरेली, अमृत विचार। 2 मार्च 2010 को हुए दंगे का जिक्र आते ही शहर वासियों की रूह कांप उठती है। इस दंगे ने हजारों लोगों को ऐसे जख्म दिए, जो कभी नहीं भर सकते। करीब 25 दिन तक शहर में कर्फ्यू लगा था। जुलूस-ए-मोहम्मदी के रूट को लेकर हुए साम्प्रदायिक बवाल ने पूरे शहर को दंगे की आग में झोंक दिया था। कई क्षेत्रों में दुकानों में तोड़फोड़, पथराव की घटनाओं के बीच फायरिंग ने लोगों को घरों में कैद कर लिया था। ऐसे चर्चित दंगे के सात आरोपी संदेह का लाभ पाते हुए कोर्ट से बरी हो गए।

सभी आरोपियों के विरुद्ध बाजार में पथराव, बलवा करने, लोगों को जान से मारने की नियत से असलहों से फायरिंग करने समेत अन्य धाराओं में रिपोर्ट दर्ज थी लेकिन प्रकरण में सिर्फ तीन पुलिस कर्मियों की ही गवाही हुई। पब्लिक से कोई गवाह सामने नहीं आया। कोतवाली क्षेत्र के आजमनगर निवासी राजा, शब्बू कुरैशी, फैसल, साजिद बेग, कमर, अब्दुल सलाम व शास्त्री मार्केट निवासी कैफी को सत्र परीक्षण के बाद संदेह का लाभ देते हुए एडीजे-14 हरिप्रसाद की कोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया।

बचाव पक्ष के अधिवक्ता संजीव शर्मा ने बताया कि कोतवाली थाने में तैनात तत्कालीन एसआई आरके शर्मा ने कोतवाली में तहरीर देकर बताया था कि 2 मार्च 2010 को जुलूस-ए-मोहम्मदी की ड्यूटी पर तैनात था। जुलूस मनिहारन चौक से बासमंडी रोड पर आ रहा था। इसी समय दूसरे सम्प्रदाय के लोग कटी कुईयां की तरफ से आकर गणेश मंदिर के सामने एकत्र हो गये। उस जुलूस को आगे बढ़ने से यह कहकर रोकने लगे कि तुम्हारा जुलूस गुलजार रोड से निकलेगा।

इसी बात पर दोनों समुदायों में विवाद शुरू हो गया। एक दूसरे को जान से मारने की नियत से अवैध असलहों से फायर करने लगे एवं पत्थर फेंके। जिससे बाजार में दहशत फैल गयी। बाजार में भगदड़ मची। इसी दौरान एक समुदाय के लोगों ने दो दुकानों में आग लगा दी। दूसरे पक्ष के लोगों ने भी अनवर की लकड़ी की टाल में आग लगा दी थी। इसी दौरान कुछ लोग घरों में घुसकर महिलाओं व बच्चों के साथ भी अभद्र व्यवहार करने लगे।

ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों ने अपनी जान की परवाह किये बगैर सूझ-बूझ व हिम्मत से दोनों पक्षों को भगाया। तहरीर पर पुलिस ने आरोपियों के विरुद्ध दंगा, बलवा, हत्या का प्रयास समेत गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की थी। अभियोजन ने तीन गवाहों को परीक्षित कराया था।

2012 के श्यामगंज के दंगे में पुलिस के गोली चलाने का रहस्य आज भी दफन
22 जुलाई, 2012 को श्यामगंज क्षेत्र में जो साम्प्रदायिक घटनाक्रम (फायरिंग व आगजनी) हुआ था। उसमें बवालियों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिये पुलिस ने गोलियां चलायी थीं। गोली किसके कहने पर चलायीं?। इसका खुलासा 9 साल के बाद भी नहीं हुआ है। इससे ‘सच’ फाइल में दबा हुआ है।

इस प्रकरण में गोली चलाने के आदेश देने का ढीकरा तत्कालीन अपर जिला मजिस्ट्रेट नगर के सिर फोड़ा जा रहा है। 23 अगस्त, 2017 को बारादरी थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर ने अपर जिला मजिस्ट्रेट वित्त एवं राजस्व को जो आख्या भेजी थी, उसमें साफ लिखा कि एडीएम सिटी के आदेश पर गोली चलायी है लेकिन आख्या के साथ आदेश की प्रमाणित कॉपी नहीं भेजी। आख्या आने के अगले दिन 24 अगस्त, 2017 को तत्कालीन अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व जगत पाल सिंह ने एसएसपी को पत्र लिखा और आदेश की प्रमाणित कॉपी मांगी थी। इस बात को तीन साल गुजर गए लेकिन पुलिस की ओर से कॉपी आज तक नहीं भेजी गयी।

इसके बाद तत्कालीन अपर जिला मजिस्ट्रेट वित्त एवं राजस्व मनोज कुमार पांडेय की ओर से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सात रिमाइंडर भेजे गए, लेकिन पत्र का जवाब लौटकर नहीं आया है। पुलिस की आख्या पर सवाल उठ रहे हैं। मामले की अभी तक मजिस्ट्रेटी जांच चल रही है।

इस घटनाक्रम में 23 जुलाई, 2012 को रबड़ी टोला निवासी हसीन मियां ने बारादरी थाने में दर्ज कराये मुकदमे में बताया था कि 22 जुलाई को करीब 11 बजे मेरा बेटा इमरान कुछ सामान लेकर बाजार से घर लौट रहा था। इमामबाड़े के पास बहुत भीड़ एकत्र थी। दोनों सम्प्रदाय आमने-सामने आए। दोनों ओर से फायरिंग और आगजनी हुई। उसी बीच एक फायर उसके बेटे इमरान को लगा। जिससे उसकी मौत हो गयी थी।

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