चुनाव 2022 : नवाब खानदान के बिना अधूरी रामपुर की सियासत
अखिलेश शर्मा/रामपुर, अमृत विचार। जिले की राजनीति में रामपुर रियासत की हनक 73 साल बाद भी कम नहीं हुई है। भले ही सपा के कद्दावर नेता आजम खां ने नवाब परिवार का वर्चस्व तोड़ने की तमाम कोशिशें कीं। लेकिन, नवाब खानदान का कुछ नहीं बिगाड़ सके। वजह नवाब खानदान से जुड़ाव रखने वाला अपना वोट …
अखिलेश शर्मा/रामपुर, अमृत विचार। जिले की राजनीति में रामपुर रियासत की हनक 73 साल बाद भी कम नहीं हुई है। भले ही सपा के कद्दावर नेता आजम खां ने नवाब परिवार का वर्चस्व तोड़ने की तमाम कोशिशें कीं। लेकिन, नवाब खानदान का कुछ नहीं बिगाड़ सके। वजह नवाब खानदान से जुड़ाव रखने वाला अपना वोट बैंक है। पहले नवाब जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां की दखल थी, इसके बाद उनकी पत्नी बेगम नूरबानो और बेटे नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां का जिले की सियासत में खासी दखल है। इस बार तीसरी पीढ़ी नवेद मियां के बेटे हैदर अली खां उर्फ हमजा मियां भी स्वार-टांडा क्षेत्र से राजनीति की बिसात पर कदम रख रहे हैं।
रामपुर के नवाब परिवार से सबसे पहले जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां ने सियासत में कदम रखा और कांग्रेस से राजनीतिक पारी की शुरुआत की। वह 1967 में रामपुर से संसद में पहुंचे। उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि कोई अगर उनके खिलाफ कुछ बोलता तो अवाम उसके खिलाफ खड़ी हो जाती थी। वह रामपुर से पांच बार सांसद रहे, 1977 में उन्हें हार मिली। हालांकि, इसके बाद फिर जीते। 1991 में उनका निधन हो गया।
इसके बाद उनकी राजनीतिक विरासत को पत्नी नूरबानो ने आगे बढ़ाया और रामपुर से दो बार सांसद चुनी गईं। नूरबानो सियासत में राष्ट्रीय राजनीति करती रही हैं तो उनके बेटे नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने स्वार-टांडा सीट को कर्मभूमि बनाया। यहां से वह कांग्रेस से लेकर बसपा तक के विधायक रहे। लेकिन, 2017 में आजम खान के बेटे के आगे मात खा गए। ऐसे में अब उनकी राजनीतिक पारी को लेकर सियासत में नवेद मियां के बेटे हमजा मियां की एंट्री हुई है।
अदालत ने लगाई थी किला तोड़ने पर रोक
किला नवाबों की धरोहर है इसलिए इसे बचाने के लिए नवाब खानदान ने अदालत की शरण ली। पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया तब अदालत ने इसे तोड़ने पर रोक लगा दी। सपा शासनकाल में किले के अंदर दीवारों से सटाकर 61 दुकानें बनवा दी गई थीं ताकि मार्केट के लिए किले की दीवारें तोड़ी जा सकें। इस मामले में भाजपा की सरकार बनने पर जांच कराई गई तो सरकारी धन का दुरुपयोग पाया गया। इसके लिए तत्कालीन पालिकाध्यक्ष और आजम खां के खास अजहर खां के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। उनसे 1.31 करोड़ की वसूली के लिए भी कार्रवाई की गई। उनके खिलाफ और भी कई मुकदमे दर्ज हुए। इस समय वह फरार हैं और उनकी गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपये का इनाम घोषित है। पुलिस उनके घर की कुर्की भी कर चुकी है।
आजम ने ऐतिहासिक किला तोड़ने के लिए लिखा था पत्र
सांसद आजम खां इस समय अपने बेटे अब्दुल्ला के साथ सीतापुर जेल में बंद हैं। आजम को नवाबों से इतनी खुन्नस थी कि सपा शासन में जब वह कैबिनेट मंत्री थे तो नवाबों के बनवाए तमाम गेट उन्होंने तुड़वा दिए थे। उनके किले को भी तुड़वाने पर आमादा थे। नवाबों से खुन्नस के प्रमाण उनके द्वारा विभिन्न मंचों से कहे गए बोल देते हैं। मंच से वह किले को गुलामी की निशानी बताते हुए कहा करते थे कि नवाब जुल्म ढाते थे। आजम ने 22 नवंबर 2013 को सपा शासन में एक पत्र डीएम को लिखा था कि शहर के बीचोबीच बना किला रामपुर वालों के लिए प्रकोप के तौर पर महसूस किया जा रहा है। यह धूप और हवा रोक रहा है। इसके दोनों गेट जर्जर हैं, जिससे बड़े हादसे का अंदेशा है। आम लोगों की जान-माल का नुकसान हो, इससे पहले ही लोक निर्माण विभाग से जांच कराकर यदि इसे गिराया जाना आवश्यक हो तो इसमें कोई देर न लगाई जाए। उन्होंने यह भी लिखा था कि इस प्रकार की इमारतें अपराध का कारण भी होती हैं। इनके दरवाजों में बनी कोठरियां कुकर्म के लिए जानी जाती हैं।
ऐतिहासिक धरोहर है यहां का किला
नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां कहते हैं कि किला रामपुर की ऐतिहासिक धरोहर है। इसी में हामिद मंजिल है, जिसमें रजा लाइब्रेरी है। इसे संरक्षित करने के लिए जिला प्रशासन ने पुरातत्व विभाग को भी लिखा है। ऐसा होने से रामपुर में पर्यटक भी खूब आने लगेंगे। किला तुड़वाने वालों की मानसिकता उजागर हो चुकी है। उनका हश्र सबके सामने है।
रामपुर की सभी सीटों पर है नवाब खानदान का वोट बैंक
नवाब परिवार के वंशज नवेद मियां स्वार-टांडा व बिलासपुर सीटों पर जीतकर कई बार विधायक बने हैं। प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं। मिलक-शाहबाद के अलावा, चमरौआ सीटें परिसीमन के बाद बदली हैं। लेकिन, सभी सीटों पर नवाब परिवार का अपना वोट बैंक आज भी मौजूद है। इस बार नवेद मियां रामपुर शहर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पहली बार किस्मत आजमाएंगे। 1973 में नवाब मुर्तजा अली खां के बाद पहली बार नवाब खानदान का कोई शख्स चुनाव मैदान में होगा और स्पष्ट संकेत हैं कि वह कद्दावर नेता आजम खां से मुकाबला करेगा।
