रायबरेली: ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगरी डलमऊ का खो रहा वैभव, यहीं के घाटों पर बैठकर कभी महाकवि ‘निराला’ ने रचीं कई कालजयी रचनाएं
रायबरेली। ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को संजोए रायबरेली की छोटी काशी कही जाने वाली डलमऊ का गौरव और वैभव खोता जा रहा है। डलमऊ नगर प्राचीन समय से ही एक आकर्षण का केंद्र रहा है। प्राचीन आख्यानों से लेकर आधुनिक साहित्य तक के अनेक संदर्भ डलमऊ के महत्व को प्रदर्शित करते है।गंगा के किनारे स्तिथ …
रायबरेली। ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को संजोए रायबरेली की छोटी काशी कही जाने वाली डलमऊ का गौरव और वैभव खोता जा रहा है। डलमऊ नगर प्राचीन समय से ही एक आकर्षण का केंद्र रहा है।
प्राचीन आख्यानों से लेकर आधुनिक साहित्य तक के अनेक संदर्भ डलमऊ के महत्व को प्रदर्शित करते है।गंगा के किनारे स्तिथ डलमऊ न केवल एक प्राचीन नगरी रही है बल्कि बाद के मुग़ल और अंग्रेजो के काल मे भी इसका अपना महत्व रहा है। दाल्भ्य ऋषि से लेकर राजा डल, इब्राहिम शर्की, मौलाना दाऊद सहित कई सूफ़ी संतो और निराला आदि ने यहां के इतिहास को गढ़ा है, लेकिन छोटी काशी के नाम से विख्यात कई मठ, मंदिरों के इस नगर की पहचान धीरे धीरे कम होती जा रही है।
रायबरेली के इस सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल होने के बावजूद आज तक यह प्रदेश के पर्यटन स्थल में कही नही है। करीब 20 हजार की जनसंख्या का यह नगर आज भी अपनी पहचान को लेकर बेकरार है।
डलमऊ की पहचान और नामकरण ऋषि दाल्भ्य से मानी जाती है।दाल्भ्य ऋषि की तपस्थली होने से इस क्षेत्र का नाम पहले दाल्भ्य और बाद में अपभ्रंश होकर डलमऊ हुआ।इसका विस्तार से उल्लेख छन्दोग्यउपनिषद में मिलता है।बड़ा मठ के गीतानंद गिरी कहते है दाल्भ्य ऋषि के आश्रम में ही यहां एक संत सभा हुई थी जिसमे उस समय के सभी प्रमुख संतो ने हिस्सा लिया था और संतो की रक्षा के लिए योजना बनी थी।
जिसकी कमान विश्वामित्र को सौंपी गई थी।इसी योजना के आधार पर विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण को इस कार्य को पूरा करने का जिम्मा सौंपा था।गीतानंद गिरी के अनुसार इसका उल्लेख विस्तार से स्वामी बद्री नारायण ने किया है।
पौराणिक महत्व के अलावा डलमऊ ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण रहा है।15 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में भारशिवों ने अपनी मजबूत सत्ता स्थापित कर ली थी जो कि तत्कालीन मुसलमान शासकों की आंख का कांटा थी।यहां के शासक राजा डल काफी शक्तिशाली थे।
तत्कालीन जौनपुर के शासक इब्राहिम शर्की इस क्षेत्र को जीतने की जुगत में था। रायबरेली गजेटियर के अनुसार बाबा हाजी के कहने पर इब्राहिम शर्की ने राजा डल पर आक्रमण कर दिया।जनश्रुतियों के अनुसार होली के दिन जब राजा उत्सव मना रहे थे तब चुपके से शर्की की सेनाओं ने हमला कर दिया।
नगर से चार किमी दूर पखरौली में भीषण युद्ध हुआ जिसमें राजा डल की भाइयो सहित मौत हो गई।रायबरेली गजेटियर के पेज 247 में शर्की की सेनाओं के अत्याचारों का उल्लेख मिलता है।इस स्थान पर राजा डल की आशीश मूर्ति है जिसपर सावन के महीने में भरोटिया अहीर दूध चढ़ाते है। आज भी इस क्षेत्र के लोग राजा के शोक में होली के दिन होली नहीमनाते हैं,एक सप्ताह के शोक के बाद इस क्षेत्र में होली मनाई जाती है|
डलमऊ में कई ऐसे स्थल ऐसे है जो लोगो को सम्मोहित करते है। धार्मिक स्थलों में समय समय पर बने कई ऐसे पक्के घाट है जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है। मुगल और स्थानीय शिल्पकला की नक्काशी से सजे ये घाट आपको निश्चित ही पसंद आएंगे। राजा टिकैत राय,रेवती राम,जनाना घाट,रानी का शिवाला,महावीर घाट आदि कई ऐसे पक्के घाट और उनके पास बने मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र है।
घाटों के पीछे बनी प्राचीन महलनुमा भवन यहां की सुंदरता में चार चांद लगाते है। घाट पर ही प्राचीन संकटमोचन मंदिर और शिव मंदिर है,जहां आस्थावान लोगो की भीड़ उमड़ती है। ऐतिहासक स्थलों की बात करे तो इब्राहिम शर्की के नबाब शुजाउद्दौला का किला,शाह शर्की की दरगाह, हाजी जाहिद की मस्जिद, आल्हा की बैठक आदि सम्मोहन का केंद्र है।
डलमऊ साहित्य सृजन का भी केंद्र रहा है। प्राचीन काल से ही यहां कई साहित्य रचे गए है। 14वीं शती के सूफी कवि मुल्ला दाऊद ने ही यही रहकर अवधी भाषा मे प्रसिद्ध किताब चंदायन की रचना की। आधुनिक युग मे हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि सूर्यकांत त्रिपाठी’निराला’ ने यही के पक्के घाट पर बैठकर कई कालजयी रचना की,जिनमे ‘सरोज स्मृति’ प्रमुख है। इसके अलावा बाबा ललन शाह,मिरान शाह आदि की रचनाओं ने यही आकार लिया।
डलमऊ में एक पर्यटन के लिए जरूरी आकर्षण बहुत है,लेकिन समय के साथ वैभवशाली इस नगर का लगातार पतन ही हुआ है।आज तक इस नगर का यूपी के पर्यटन नक्शे में कहीं उल्लेख भी नही है।सामान्य जरूरत की चीजें भी उपलब्ध नही है।देखरेख के अभाव में ज्यादातर दर्शनीय स्थल जीर्ण शीर्ण हो रहे है।हालांकि नमामि गंगे योजना के तहत यहां के पांच पक्के घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है।
16 करोड़ की इस परियोजना से घाटों का सुंदरीकरण किया जाएगा।घाटों पर हाई मास्क लाईट, रेलिंग सहित बेहतरीन पत्थर लगाए जा रहे है।कई स्थानों को बागवानी के माध्यम से भी सजाया गया है।जल्दी ही इसके पूरा होने की उम्मीद है।बावजूद इसके अभी भी बहुत करने की जरूरत हैं।
डलमऊ को संवारने का हो रहा प्रयास
नगर पंचायत अध्यक्ष बृजेश दत्त गौड़ के अनुसार डलमऊ के महत्व को देखते हुए प्रदेश सरकार को इस ओर धयान देना चाहिए।मुख्य विकास अधिकारी ने कहा कि डलमऊ में नमामि गंगे से घाटों को सुंदर और सुज्जित किया जा रहा है,आवश्यकतानुसार अन्य कार्य भी कराए जाएंगे।
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