बरेली : जीरो बजट खेती... किसान के पास न देसी गाय न कोई और उपाय

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Published By Vishal Singh
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रासायनिक खाद और कीटनाशक की जरूरत खत्म कर देता है देसी गायों का गोबर-मूत्र

बरेली, अमृत विचार। देसी गायों के बलबूते जीरो बजट प्राकृतिक खेती कराने की योजना ख्याली पुलाव भर बनकर रह गई है। सरकार का इस पर काफी जोर होने के बावजूद किसानों को इस दिशा में आगे बढ़ने का कोई रास्ता ही नहीं मिल रहा है। उनके पास न देसी गाय है, न उसे खरीदने का कोई आसान रास्ता। मंडल भर में ऐसा कोई फार्म नहीं है, जहां से देसी गाय खरीदकर लाई जा सके। एकमात्र विकल्प पंजाब या हरियाणा से लाने का है लेकिन रास्ते में खतरे इतने हैं कि किसान इसकी भी हिम्मत नहीं जुटा पाते।

पशुपालन विभाग के अफसरों काकहना है कि कृषि के लिहाज से देसी गायों का गोबर और मूत्र दूसरी गायों की तुलना में काफी उपयोगी है। खेतों में इसका इस्तेमाल कर फसलों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जरूरत पूरी तरह टाली जा सकती है। यही जीरो बजट और प्राकृतिक खेती का मूलमंत्र है। लेकिन इसका कोई परिणाम इसलिए नहीं निकल पा रहा है क्योंकि मंडल भर में देसी गायों की उपलब्धता बेहद कम है। दूसरे, गायों को पालने में जोखिम भी ज्यादा है। इसी वजह से किसानों ने इस योजना से दूरी बना रखी है और जीरो बजट खेती की योजना एक शगूफा भर बनकर रह गई है।

देसी गायों से ऐसे हो सकती है जीरो बजट खेती
जीरो बजट खेती रसायनमुक्त खेती है। इसमें फसलों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसके बजाय प्राकृतिक खाद का उपयोग किया जाता है जो खुद किसान गाय के गोबर, मूत्र, नीम, चने के बेसन, गुड़, मिट्टी और पानी से बना सकते हैं। इस विधि से खेती करने पर ज्यादा सिंचाई की भी जरूरत नहीं पड़ती। लिहाजा फसलों के उत्पादन की लागत काफी कम रह जाती है। कृषि विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्र कुमार के मुताबिक एक देसी गाय रोज औसतन 11 किलो गोबर करती है, जिससे एक एकड़ जमीन में जीरो बजट की खेती करना संभव है। इस तरह 30 दिन के गोबर से 30 एकड़ में खेती हो सकती है। देसी गाय के गोबर और मूत्र से किसान भू-पोषक द्रव्य ‘जीवामृत’ भी बना सकते हैं। जीव अमृत जीरो बजट प्राकतिक खेती का आधार है जो देसी गाय के गोबर, मूत्र और पत्तियों से तैयार कीटनाशक मिश्रण है |

ये हैं सबसे ज्यादा दूध देने वाली देसी गायें
साहिवाल गाय मुख्य रूप से हरियाणा और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय मूत्र और गोबर के साथ दूध भी ज्यादा देती है। लाल सिंधी गाय भी देश में ज्यादा दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती है। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लाल होने के कारण इसका नाम लाल सिंधी पड़ा। यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडू, केरल और ओडिशा में पाई जाती हैं। इस इलाके में इक्का-दुक्का पशुपालकों के पास ही यह गाय है। राठी गाय राजस्थान समेत कुछ राज्यों में पाई जाती हैं। इसका वजन लगभग 300 किलो तक होता है।

मंडल के किसी भी जिले में देसी गायों की खरीद-फरोख्त के लिए एक भी फार्म नहीं है। इस पर प्रदेश सरकार काफी समय सेमंथन कर रही है। भारतीय देसी नस्ल की गाय हरियाणा और पंजाब में मिल रही हैं। वहीं से लोग खरीद भी रहे हैं- ललित कुमार वर्मा, एडी पशुपालान विभाग।

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