जेंडर चेंज सर्जरी मामला : एसआरएस के लिए नियम सुनिश्चित न करने पर जताई नाराजगी
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ (लिंग परिवर्तन सर्जरी) के लिये नियम बनाने में उदासीनता बरतने पर नाराजगी जाहिर करते हुए राज्य सरकार द्वारा 3 माह का समय मांगने पर कहा कि इस मामले में जिस तरह 3 महीने का अतिरिक्त समय मांगा गया है, उससे पता चलता है कि राज्य सरकार फिर से बेहद लापरवाही भरा रवैया अपना रही है। इस बात का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया कि राज्य सरकार हलफनामा दाखिल करने के लिए अतिरिक्त 3 महीने का समय क्यों चाहती है।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने उक्त मामले से संबंधित त्वरित कार्यवाही की थी जबकि राज्य सरकार अभी भी मूकदर्शक बनी हुई है। इसके साथ ही कोर्ट ने 18 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई पर यह बताने को कहा है कि एसआरएस पर नियम बनाने के लिए अभी तक क्या कार्रवाई की गई है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार की एकलपीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में एक अविवाहित महिला कांस्टेबल द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने महिला कांस्टेबल नेहा सिंह की याचिका पर लिंग परिवर्तन करने को संवैधानिक अधिकार बताते हुए पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को याची के प्रत्यावेदन पर त्वरित कार्यवाही का आदेश दिया था और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के अनुसार राज्य को सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के संदर्भ में नियम बनाने के लिए निर्देश दिया था।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इस बात पर जोर दिया था कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अस्पताल के भीतर चिकित्सा देखभाल के साथ ही अलग से सार्वजनिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। मौजूदा मामले के अनुसार महिला कांस्टेबल ने ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ (एसआरएस) कराने की अनुमति मांगी है। याची का दावा है कि वह ‘जेंडर डेस्फोरिया’ (वह स्थिति, जिसमें व्यक्ति को यह महसूस होता है कि उसका प्राकृतिक लिंग उसके लैंगिक पहचान से मेल नहीं खाता है) से पीड़ित है, इसलिए वह एसआरएस कराने की इच्छा रखती है।
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