नैनीताल: बांज वृक्ष को बाना से बचाने के लिए वन विभाग के हाथ खाली

प्रभावित वनों को समय से नहीं बचाया गया तो उत्पन्न हो सकती भीषण समस्या

नैनीताल: बांज वृक्ष को बाना से बचाने के लिए वन विभाग के हाथ खाली

चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल, अमृत विचार। पर्वतीय क्षेत्र में कल्पतरू माने जाने वाला बांज वन संकट में है। पर्वतीय क्षेत्र में अधिकांश बांज यानि ओक वनों में वृक्षों के लिए कैंसर रोग का काम करने वाला बाना बेल तेजी से फैल रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक वन विभाग द्वारा बाना उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जाता था लेकिन अब विभाग ने बजट नहीं होने पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। वन विभाग ने भवाली व नैनी रैंज में फिलहाल 21 हजार बाना ग्रस्त बांज के वृक्षों को चिन्हित किया है।

नैना रैंज के नैनीताल शहर व अन्य वन क्षेत्र के अलावा भवाली रैंज के गागर, रामगढ़ निंगलाट, भवाली के आसपास के जंगलों में फिलहाल 21 हजार बांज के वृक्ष बाना से ग्रसित पाये गये है। बाना निकालने के लिए प्रति पेड़ 50 रूपये की लागत आती है। बाना अब बांज ही नही बल्कि चैड़ी पत्ती के वनों में भी संक्रमण कर रहा है।

नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्रों के अलावा अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत के पर्वतीय क्षेत्र व पिथौरागढ़ में इसके वन बहुतायत पाये जाते है। नैनीताल मंे नैनी झील, खुर्पाताल झील, सातताल झील का सीधा संबंध बांज के वनों से है। वनविभाग ने बाना उन्मूलन को शासन को योजना भेजी है यदि समय पर बजट मिल जाता हैतो इससे वनों को राहत मिल सकती है।

डीएसबी परिसर नैनीताल के वनस्पति विज्ञान विभाग केप्राचार्य प्रो. ललित तिवारी ने बताया कि बाना का वैज्ञानिक नाम लोरंथस है। यह परजीवी बेल होती है। यह बेल वृक्ष के तनों में ही उग आती है। अपना भोजन उसी वृक्ष लेता है। लिहाजा बाना से ग्रस्त वृक्ष सूखने लगता है। बांज प्रजाति के वृक्षों में इसका प्रभाव अधिक होता है। यह हरे वृक्षों से ही अपना भोजन प्राप्त करने के कारण वृक्षों के लिए यह कैंसर साबित होता है। जिस वृक्ष से बाना नहीं हटाया गया अन्ततः वह सूख जाता है। कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र में बांज प्रजाति बहुउपयोगी वृक्ष है। जल संरक्षण व जैव विविधता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोरथंस प्रभावित वनों को समय से नहीं बचाया गया तो भविष्य में भीषण समस्या उत्पन्न हो सकती है।

बांज के जंगलों से नैनीताल जिले के झीलों का गहरा संबंध नैनीताल

बता दें कि कुमाऊं भर केबांज जंगल बाना से प्रभावित है। लेकिन सबसे बुरी हालत मंडल मुख्यालय नैनीताल शहरकी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बांज के जंगलों से नैनीताल जिले के झीलों का गहरा संबंध भी हैं। बांज के जंगलों से आच्छादित झीलों का संबंध नैनी झील,सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल, खुर्पाताल, सूखाताल से जुड़ा है। बांज के जंगलों में पानी संग्रहण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है। इन जंगलों के कारण ही झीलव तालाबों का अस्तित्व बना रहता है। कुमाऊं में कई अहिमानी नदियों का निर्माण हीओक प्रजाति के जंगलों से हुआ है। लेकिन दुर्भाग्य से इन जंगलों में बाना तेजी से संक्रमण कर रहा है। वर्ष 2018 में नैनीताल शहर के 10 प्रतिशत बाना से प्रभावित वृक्षों से बाना हटाया गया था। इसके बाद बजट नही होंने से कार्य नही हो पाया है। शहर के 20 प्रतिशत वृक्ष बाना से प्रभावित है। 


वर्ष 2018 में नैनीताल शहर के 10 प्रतिशत बाना से प्रभावित वृक्षों से बाना हटाया गया था। शासन से बागान योजना के तहत मात्र 1.50 लाख रूपये का बजट मिला था। जिससे 1500 वृक्षों से बाना हटाया गया। इसके बाद बजट नही होंने से कार्य नही हो पाया है। जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में बांज वन लोरथंस परजीवी वनस्पति से दस प्रतिशत तक प्रभावित है। नैना रैंज के नैनीताल शहर व अन्य वन क्षेत्र के अलावा भवाली रैंज के गागर, रामगढ़ निंगलाट, भवाली के आसपास के जंगलों में बांज के वृक्ष बाना से ग्रसित पाये गये है। बाना निकालने के लिए प्रति पेड़ 50 रूपये की लागत आती है। इस वर्ष अभी तक विभाग को कोई बजट नही मिलाहै। शासन से बजट मिलने के बाद बाना उन्मूलन का कार्य किया जायेगा।

- राज कुमार, एसडीओ वन प्रभाग नैनीताल। 



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