लखनऊ: दांतों के यह डॉक्टर कृत्रिम अंगों से एक हजार से अधिक लोगों को दे चुके हैं नई जिंदगी, दंत चिकित्सा पर दी विशेष जानकारी
लखनऊ, अमृत विचार। कई बार दुर्घटना, संक्रमण अथवा कैंसर की वजह से चेहरे पर विकृति आ जाती है। कई लोगों की आंखें नाक और कान खराब हो जाते हैं, ऐसे में जिनके आंख नाक और कान में से कोई भी एक अंग भंग होता है, उनमें आत्मविश्वास की कमी होना लाजमी है। इसके पीछे की वजह आज भी समाज मैं ऐसे बहुत से लोग हैं जो बिना आंख के व्यक्ति को यदि देख ले तो अपशगुन समझते हैं। जिससे उस व्यक्ति पर गंभीर मानसिक आघात लगता है, जिसके चेहरे के अंग खराब हो चुके होते हैं। हमें ऐसे लोगों की मदद करनी है, उनको कृत्रिम अंग लगाकर।
कृत्रिम अंग भी ऐसे होने चाहिए जो शरीर को नुकसान ना पहुंचाएं और हूबहू असली अंगों की तरह प्रतीत होते हों। यह कहना है किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थित प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग के एचओडी प्रोफेसर पूरन चंद का। वह शुक्रवार को मैक्सियोफेशियल प्रोस्थेटिक्स की अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में कृत्रिम अंगों को बनाने और लगाने की तकनीक सीखने के लिए पहुंचे डॉक्टरों को सम्बोधित कर रहे थे।
29 फरवरी से 2 मार्च तक चलने वाली इस कार्यशाला का आयोजन थाईलैंड के बैंकॉक स्थित माहिडोल यूनिवर्सिटी और केजीएमयू के सहयोग से किया गया है।
दंत चिकित्सा का है बड़ा दायरा
प्रो. पूरन चंद ने बताया कि दंत चिकित्सा केवल दांतों और मुख के संरचनाओं की समस्याओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आंख, नाक, कान आदि कृत्रिम अंग बनाने की विधा भी शामिल है। केजीएमयू में अब तक करीब 1000 से अधिक लोगों को कृत्रिम आंख कान और नाक लगाए गए हैं, आज भी ऐसे करीब 15 से 20 मरीज हर महीने यहां आते हैं। जिन्हें कृत्रिम अंगों की जरूरत होती है।
इस तीन दिवसीय कार्यशाला के आयोजन का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि नए डॉक्टरों को कृत्रिम अंगों को बनाने और लगाने की बारीकियां सिखाई जा सके।
मरीज को कम लागत में मिले विश्वस्तरीय चिकित्सा
आयोजन अध्यक्ष डॉ. पूरन चंद ने कहा कि भारत में अधिक रोगियों को इम्प्लांट रिटेन्ड आई प्रोस्थेसिस जैसे उन्नत उपचारों का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए हमें अधिक संख्या में प्रशिक्षित प्रोस्थोडोंटिस्ट की आवश्यकता है और इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
मरीजों को कम लागत और विश्वअस्तरीय चिकित्सा आम भारतीय नागरिकों तक उपलब्ध कराना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है।
डॉ. सुनीत जुरैल ने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ती प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल बिठाने और हमारे डॉक्टरों के वर्तमान ज्ञान को उच्चक्रित करने के लिए ऐसी कार्यशालाएं अक्सर आयोजित की जानी चाहिए। इस मौके पर डॉ. बलेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. रघुबर दयाल सिंह, डॉ. भास्कर अग्रवाल तथा डॉ. शुचि त्रिपाठी ने प्रतिभागी चिकित्सकों को प्रशिक्षित करने में सक्रिय योगदान दिया।
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— Amrit Vichar (@AmritVichar) March 1, 2024
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