Special Story : अपराध में प्रयोग हुआ रामपुरी चाकू तो कानून से धार हुई धार कुंद  

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Published By Bhawna
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 दो दुकानों में सिमट गया मशहूर रामपुरी चाकू कारोबार, 5000 कारीगर से घटकर रह गए सिर्फ 12 

चाकू बाजार स्थित एक दुकान में सजे चाकू।

रामपुर, अमृत विचार। 100 साल पहले स्थापित रामपुरी चाकू उद्योग यहां के नवाब की देन बताया जाता है। लेकिन चाकू की धार में तेजी 60-70 दशक की फिल्मों से आई। अभिनेता राजकुमार का डायलॉग, यह संवाद जानी, यह रामपुरी है, बच्चों के खेलने की चीज नहीं खूब चर्चित हुआ था।

हिंदी फीचर फिल्म वक्त के इस संवाद से रामपुरी चाकू की पहचान शहर की सीमा पार कर गई। इसकी शोहरत ने चाकू को अपराधियों के हाथों में पहुंचा दिया। हथियार का सहारा लेकर जब अपराध बढ़ा तो कानून से इसकी धार कुंद हो गई। एक दौर में चाकू कारोबार में लगभग 5000 कारीगर मौजूद थे। आज यह कारोबार करीब 12 कारीगर और दो दुकान में सिमट गया है। हालांकि प्रशासन ने चाकू चौराहा की स्थापना कर उद्योग को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।  

चाकू कारोबारी शहजाद आलम बताते हैं कि नवाब हामिद अली खां के आदेश पर उस्ताद बेचा ने 100 साल पहले रामपुरी चाकू बनाया था। 60 और 70 के दशक की फिल्मों में खलनायक के हाथों में दिखने वाले चाकू को शोहरत मिली। इसके बाद गलत आदमी इसका इस्तेमाल कर जुर्म करने लगे। इसके चलते शासन ने 4.5 इंच ब्लेड की लंबाई से अधिक लंबे चाकू बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया। तभी से चाकू उद्योग में गिरावट आनी शुरू हो गई। इसके कारखाने नाला बाग, पुराना गंज, घेर बेचा खां, कटरा, रोडवेज, स्टेशन समेत अन्य मोहल्लों में हुआ करते थे। चाकू बाजार में 100 दुकानें थीं। लेकिन अब घटकर कुल दो दुकानें रह गई हैं। दुदर्शा को देखते हुए कारीगर अगली पीढ़ी को इसका हुनर देना नहीं चाहते।

कारीगरों ने दिल्ली-मुंबई में जाकर दूसरे धंधे अपना लिए। आज उद्योग अपने वजूद को कायम रखने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। हालांकि रामपुर में जिलाधिकारी रहते आन्जनेय कुमार सिंह ने चाकू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए थे। वर्ष 2021 में वह कारीगरों के कारखानों में पहुंचे थे। उन्होंने रामपुरी चाकू के बनने की तकनीक को भी जाना था। चाकू को शहनील कपड़े के बॉक्स में रखकर उपहार के रूप में दिए जाने की परम्परा भी पूर्व में रहे जिलाधिकारी, अब मंडलायुक्त आन्जनेय कुमार ने थी। उधर, विगत वर्ष मंडलायुक्त व जिलाधिकारी रविंद्र कुमार मांदड ने चाकू को गौरव वापस दिलाने का प्रयास किया है। इसके लिए नैनीताल रोड पर 20 फीट का चाकू बनाकर चौराहे को चाकू चौराहा का नाम दिया है।

किररीदार और बटनदार चाकू हैं दूर-दूर तक प्रसिद्ध
चाकू किररीदार और बटनदार दो मॉडल में मशहूर हैं। किररीदार चाकू बनाने वाले कारीगर खत्म हो गए हैं। बटन से खुलने वाले फोल्डिंग चाकू की कीमत 300 से 5000 हजार रुपये तक है। चाकू मूठ, फलक और बटन तीन हिस्सों में होता है। चाकू ब्लेड की लंबाई 9 से 12 इंच तक होती है। चाकू बटन दाबने पर झटके से खुलता है।

रामपुरी चाकू को सबसे पहले बनवाने का श्रेय रामपुर नवाब को है। शासन के प्रतिबंध लगाने के बाद से उद्योग चौपट होता गया। पहले देश भर में चाकू की आपूर्ति होती थी। तब 5000 कारीगर चाकू बनाते थे। लेकिन आज कारीगर ढूंढ़े नहीं मिलते। कारीगरों को अपना धंधा बदलने पर मजबूर कर दिया। 15 साल से इस उद्योग में ज्यादा गिरावट आई है। -कर्नल खुशनूद मियां, मोहल्ला शाहबाद गेट

दादा के जमाने से 90 साल पुरानी दुकान है। चाकू बनाने में पीतल, लोहा, स्टील धातु का इस्तेमाल होता है। अब कानूनन छह इंच से कम के चाकू रखने की इजाजत है। इसे पूरे प्रदेश में बेचने का लाइसेंस मिलना चाहिए। जबसे चाकू चौराहा का मंडलायुक्त  ने उद्घाटन किया, तबसे चाकू उद्योग को कुछ राहत मिली है।- शाहवेज मियां, दुकानदार, मोहल्ला नसरुल्ला खां

रामपुर नवाब ने उस्ताद बेचा को चाकू बनाने का आदेश दिया था। फिल्मों ने रामपुरी चाकू को प्रसिद्धि दिलाई। फिल्मों से मुत्तासिर होकर गलत लोगों ने इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया। जुर्म बढ़े तो शासन ने 90 दशक के बाद चाकू बेचने में कुछ नियम रख दिए। इससे बिक्री में बहुत फर्क आया।-शहजाद आलम, दुकानदार, मोहल्ला नसरुल्ला खां

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