इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याची को दी बड़ी राहत, निदेशक के आदेश को बताया गैरकानूनी, जानिए क्या है मामला?
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियमितिकरण के एक मामले में महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा कि लंबे समय के अंतराल के बाद जिस शिक्षक की सेवा नियमित कर दी गई हो उसे केवल प्रारंभिक नियुक्ति के समय योग्यता की कमी के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एकल पीठ ने राजेंद्र सिंह की याचिका को स्वीकार कर उन्हें सेवानिवृत्ति लाभों के साथ-साथ बकाया वेतन के भुगतान का निर्देश देते हुए पारित किया। दरअसल याची को वर्ष 1985 में गणित विषय के तत्कालीन व्याख्याता पवन वर्मा के वैधानिक अवकाश पर जाने के करण तदर्थ आधार पर नियुक्त किया गया। याची को बाद में रिक्त पद पर नियुक्त कर दिया गया। याची की सेवाओं को 1995 में उत्तर प्रदेश मध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग अधिनियम, 1982 की धारा 33 बी के तहत नियमित कर दिया गया।
हालांकि वर्ष 2020 में क्षेत्रीय संयुक्त शिक्षा निदेशक ने नियमितीकरण के आदेश को वापस ले लिया। इस पर याची ने तर्क दिया की नियुक्ति को क्षेत्रीय चयन समिति द्वारा नियमित किया गया है और निदेशक द्वारा उनकी नियुक्ति को वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है।
इसके अलावा उन्हें कारण बताओ नोटिस भी नहीं दिया गया। अंत में कोर्ट ने माना कि याची की नियुक्ति को बिना कारण बताओ नोटिस के रद्द करना नैसर्गिक न्याय के नियमों का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी कहा कि उक्त अधिनियम में तदर्थ शिक्षक के नियमितीकरण के लिए चयन समिति का प्रावधान है।
एक बार क्षेत्रीय चयन समिति द्वारा नियुक्ति कर दिए जाने के बाद क्षेत्रीय संयुक्त शिक्षा निदेशक को 15 वर्ष के नियमितीकरण के बाद क्षेत्रीय चयन समिति को संदर्भित किए बिना ऐसे आदेश को स्वयं वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है। अतः उसे सभी सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करने का निर्देश देने के साथ ही याचिका को स्वीकार कर लिया गया।
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