बरेली: सिस्टम की मार...बर्बादी की ओर शहर का होटल उद्योग, कई होटल जल्द ही हो सकते हैं बंद
चार होटल मालिक अपनी इमारत किराए पर देने के लिए कर रहे हैं जोड़तोड़
सुरेश पांडेय/बरेली, अमृत विचार। अवैध होटलों पर सरकारी सिस्टम की मेहरबानी और बाकी पर नियमों के बोझ के साथ लगातार बढ़ते दबाव ने शहर में होटल उद्योग की कमर तोड़नी शुरू कर दी है। कई बड़े होटलों के मालिक इतने दबाव में आ गए हैं कि उन्होंने यह इंडस्ट्री ही छोड़ने का फैसला कर लिया है। स्टेशन रोड और पीलीभीत बाईपास पर चल रहे दो बड़े होटल भी इनमें शामिल हैं। चार और होटल कारोबारी हैं जो अपने होटलों की इमारतें किराए पर देने की फिराक में हैं। दो की नागपुर के एक नामचीन कोचिंग संस्थान से बातचीत भी चल रही है।
शहर में पांच से 50 कमरों तक के तीन सौ से ज्यादा होटल हैं। इनमें 50 से ज्यादा की गिनती शहर के प्रमुख होटलों में होती है। इन्हीं की बदौलत बरेली की गिनती भी होटल उद्योग की दृष्टि दिल्ली और लखनऊ के बीच प्रमुख शहरों में होती है लेकिन काफी समय से शहर के होटल कारोबारी शासन से लेकर स्थानीय प्रशासन स्तर की समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। होटल कारोबारियों का सबसे बड़ा मुद्दा शासन और स्थानीय प्रशासन के बीच वह विरोधाभास है जिसमें एक उसे उद्योग का दर्जा देता है और दूसरा इसे मानने को तैयार नहीं है। इस वजह से होटलों पर उद्योगों की तुलना में टैक्स की काफी ज्यादा मार पड़ती है। इसके अलावा सरकारी विभागों की बदनीयती भरी नजर को भी वे अपनी सबसे बड़ी मुश्किल करार दे रहे हैं।
लगातार समस्याएं बढ़ते जाने की वजह से शहर में फिलहाल छह होटल कारोबारियों के इस व्यवसाय से किनारा करने की बात सामने आई है। इनमें एक स्टेशन रोड का करीब 20 पुराना होटल है। पीलीभीत बाईपास पर भी कुछ ही साल पहले शुरू हुए एक होटल को बेचने की तैयारी है। चार होटल वालों ने अपना कारोबार बंद कर अपनी इमारत को किराए पर देने की जोड़तोड़ शुरू कर दी है। इनमें से दो की इस बारे में नागपुर के एक नामी कोचिंग संस्थान से बात चल रही है।
बोले- सुविधाएं मिलती नहीं, अजीबोगरीब सरकारी नियमों ने कर रखा है परेशान
होटल कारोबारी कहते हैं कि यह व्यवसाय रोज-रोज लागू किए जा रहे नए और अजीबोगरीब नियमों से बुरी तरह जूझ रहा है। भूगर्भ विभाग कहता है पानी बचाओ, वर्ना बर्बादी पर दंड लगेगा। अग्निशमन विभाग की शर्त है कि हर होटल में पांच हजार लीटर पानी का टैंक रखा जाएगा। वे किस विभाग की मानें। हर विभाग होटलों से टैक्स लेता है लेकिन सुविधाओं के नाम पर उनके पास कुछ नहीं है। नौबत यहां तक आ गई है कि होटल कारोबारी महसूस करने लगे हैं कि जैसे उन्हें लूटा जा रहा है। होटल कारोबारी साफ कहते हैं कि इस इंडस्ट्री में अब बहुत गंदगी हो गई है। सरकारी मशीनरी इसे साफ करने के बजाय सही काम करने वालों पर और दबाव बना रही है। इस मनमानी से उनकी कमर टूटने लगी है। तमाम होटल कारोबारी यह इंडस्ट्री छोड़ने का मन बना रहे हैं।
सरकारी विभागों का सारा जोर वैध होटलों पर गलियों में बने होटलों पर कोई नियम लागू नहीं
होटल कारोबारियों का यह भी कहना है कि होटल चलाने के लिए वे बीडीए, नगर निगम, अग्निशमन, भूगर्भ जल विभाग, बिजली, पर्यावरण, जीएसटी समेत कई विभागों के नियमों का पालन करते आ रहे हैं। उनसे सारे नियमों का हिसाब लेने वाले इन विभागों के नियमों का छोटी जगहों और गलियों में बने होटलों, गेस्ट हाउसों पर कोई जोर नहीं चलता। इन होटलों ने रेट इतने कम करा दिए हैं कि बड़े होटल चल नहीं पा रहे हैं। चूंकि उनके खर्च बड़े होटलों जैसे नहीं है इसलिए उन्हें कोई चिंता नहीं है। तंग जगहों पर बने होटल सात सौ रुपये घंटे पर भी कमरा बुक कर लेते हैं।
दिन में चार लोग भी आ जाते हैं तो उन्हें 25 सौ से तीन हजार रुपये तक की कमाई हो जाती है। बड़े होटलों में एक हजार से 12 सौ तक में भी कमरा बुक नहीं होता। मालगोदाम रोड, शहामतगंज, पीलीभीत बाईपास समेत तमाम कारोबारी इलाकों में तंग जगहों और गलियों में खुले होटलों की तरफ अग्निशमन विभाग कभी रुख नहीं करता, बीडीए कभी उनसे नक्शा नहीं मांगता।
ऐसी भी मनमानी...
होटल कारोबारियों ने बताया कि अग्निशमन विभाग में तैनात एक पुराने अफसर कई होटलों को वर्ष 2025 तक के लिए एनओसी दे गए थे। अब कहा जा रहा है कि पुरानी एनओसी रद कर दी गई है, वे नई एनओसी लें। इसी मनमानी ने उनका हौसला तोड़ दिया है।
विडंबना है कि सरकार ने होटल को उद्योग का दर्जा दिया है लेकिन अफसर इसे नहीं मानते। नगर निगम होटलों से पांच गुना प्रॉपर्टी शुल्क लेता है जो उद्योग के रूप में तीन गुना ही लिया जाना चाहिए। इंडस्ट्रियल रेट पर बिजली का बिल लेने का प्रावधान है लेकिन कामर्शियल रेट पर लिया जाता है। पहले सरकार एक हजार या इससे ज्यादा रेट के कमरों से पांच प्रतिशत लग्जरी टैक्स लेती थी। अब 12 प्रतिशत जीएसटी का भुगतान लिया जा रहा है। - डॉ. अनुराग सक्सेना,अध्यक्ष होटेलियर्स वेलफेयर एसोसिएशन
बरेली में नाथ नगरी सर्किट विकसित हो रहा है। अनुमान है कि पर्यटन बढ़ेगा तो लोगों को ठहरने के लिए होटलों की जरूरत होगी लेकिन होटल ही बंद हो जाएंगे तो इसका असर पर्यटन पर पड़ना लाजमी है। होटल कारोबारियों को सिर्फ दोहन का जरिया नहीं समझना चाहिए। उन्हें रियायतें भी दी जानी चाहिए- शुजा खान, सचिव , होटेलियर्स वेलफेयर एसोसिएशन।
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