बरेली: सनद रहे...कांग्रेस ने बनाया माहौल तो सपा ने गाड़े झंडे
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले तक बरेली में भारी उथलपुथल के दौर से गुजर रहा था सपा का संगठन
बरेली, अमृत विचार : भाजपा से आंवला की सीट छीन लेने और बरेली में भी पसीना-पसीना कर देने के श्रेय से सपा को वंचित तो नहीं किया जा सकता लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि जिले में अपने दम पर पार्टी की तैयारी इसके लिए काफी नहीं थी। केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ अलग-अलग मुद्दों पर जो हवा बनाई, उसका भी बड़ा लाभ सपा को मिला। ऐसा न होता तो संगठन में भारी टूटफूट, आपसी कलह और चुनाव से ऐन पहले कई नेताओं के भाजपा में चले जाने से जूझ रही सपा इस कदर जबर्दस्त कामयाबी नहीं हासिल कर पाती।
जिले में सपा संगठन भी कई साल से दुर्दशा की उसी दिशा में लगातार बढ़ रहा था, कांग्रेस और बसपा के संगठन जिसके पहले से ही शिकार हो चुके हैं। विधानसभा चुनाव 2022 में भी सपा ने इसका खामियाजा भुगता था।
पार्टी के पक्ष में हवा होने का दावा करने के बावजूद बरेली संसदीय क्षेत्र की एकमात्र भोजीपुरा सीट ही पार्टी जीत पाई थी। इसके बाद हुए निकाय चुनाव में हालत और खराब हो गई। प्रदर्शन खराब रहने के साथ संगठन के नेताओं पर तमाम आरोप लगे। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले तक ये आरोप पार्टी का माहौल गरमाते रहे। शीर्ष नेतृत्व की तमाम कोशिशों के बावजूद संगठन में चल रही उथलपुथल ने खत्म होने का नाम नहीं लिया।
लोकसभा चुनाव से पहले जिले में जो सियासी माहौल था, वह भी सपा के माफिक कम और भाजपा के खिलाफ ज्यादा था। यह माहौल कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के साथ राहुल गांधी की ओर से भाजपा के खिलाफ आक्रामक ढंग से लगातार उठाए जा रहे बेरोजगारी, अग्निवीर, कॉरपोरेट भ्रष्टाचार, महंगाई जैसे उन तमाम मुद्दों की वजह से था जिन पर सपा उतने प्रबल ढंग से मोर्चा नहीं संभाल पाई। हालांकि प्रदेश में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त चुनावी जनसभाएं शुरू होने के बाद जब प्रदेश में कुछ हवा बननी शुरू हुई तो उसका काफी असर यहां भी हुआ।
दिल्ली से चली हवा जो आंधी बन गई स्थानीय मुद्दों पर पार्टी का कोई आंदोलन नहीं
सपा ने बरेली में जनता में पैंठ बनाने के लिए काफी समय से कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया न ही स्थानीय मुद्दों पर अपने रुख से कोई विश्वास पैदा कर पाई। कोई आंदोलन हुआ भी तो उसमें पार्टी नेताओं और संगठन में एकजुटता नहीं दिखी। ज्यादा रोल एंटी इनकंबेंसी का ही रहा।
भविष्य अंधकारमय बता चले गए कई नेता
हवा बदलने से पहले जनता क्या पार्टी के नेता भी इस परिणाम की उम्मीद नहीं कर रहे थे। चुनाव से ऐन पहले सपा के कई नेता पार्टी में अपना भविष्य अंधकारमय बताकर भाजपा में चले गए। यह भी आरोप लगे कि सपा में रहते हुए कई नेता भाजपा के साथ नजदीकी बनाए हुए हैं।
मुस्लिमों ने केंद्र सरकार बदलने को लगाया जोर
मुसलमान काफी समय से सपा से उखड़ा हुआ था। बरेली में मौलाना तौकीर और शहाबुद्दीन जैसे लोग लगातार चुनाव में सपा की मुखालफत कर मुसलमानों का रुख बदलने की कोशिश कर रहे थे। इसके बावजूद केंद्र में सरकार बदलने को मुसलमानों ने सपा को जिताने के लिए पूरा जोर लगाया।
बूथों के लिए भी नहीं बन पाई मजबूत रणनीति
मतदाताओं की चुप्पी की वजह से मतदान से कुछ दिन पहले तक बरेली-आंवला के बारे में कोई सटीक अनुमान नहीं था कि क्या होने जा रहा है। सपा का संगठन कुछ पटरी पर तो आया था लेकिन फिर भी कई रणनीतिक निर्णय लेने में चूक करता रहा। बूथों के लिए भी कोई मजबूत रणनीति नहीं बन पाई।
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