कम उम्र में छोड़ा घर, क्यों लिया संन्यासी जीवन जीने का फैसला, जानिए कैसा रहा सत्येंद्र दास का जीवन?
अमृत विचार। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का लखनऊ में आज निधन हो गया। उन्हें 3 फरवरी को लखनऊ के SGPGI अस्पातल में न्यूरोलॉजी वार्ड HDU में भर्ती कराया गया था। बता दें कि उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आने के बाद यहां लाया गया था। उनके निधन से देश ने एक सच्चा भक्त खो दिया है। वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी दुःख जताते हुए अपने सोशल मीडिया पर लिखा कि "परम रामभक्त, श्री राम जन्मभूमि मंदिर, श्री अयोध्या धाम के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र कुमार दास जी महाराज का निधन अत्यंत दुःखद एवं आध्यात्मिक जगत की अपूरणीय क्षति है। विनम्र श्रद्धांजलि... प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे. तथा शोक संतप्त शिष्यों एवं अनुयायियों को यह अथाह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति"
कैसा रहा सत्येंद्र दास का जीवन
संत कबीर नगर में जन्मे सत्येंद्र दास को बचपन से ही राम से लगाव था। उन्होंने अपने गुरु से प्रभावित होकर संन्यास लेने और गृह जीवन त्यागने का फैसला लिया था। यहां तक की उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। आपको बता दें कि सत्येंद्र दास रामलला मदिंर के मुख्य पुजारी के रूप में पिछले 34 वर्षो से सेवाएं दे रहे थे, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे की वह इससे काफी समय पूर्व ही इस आंदोलन से जुड़ चुके थे। मात्र 20 वर्ष के बालक के रूप में वह पूजा-पाठ करने लगे थे।
सत्येंद्र दास को 1 मार्च 1992 को मात्र 100 रुपये के वेतन पर रामलला के मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था। जिसके बाद उन्हें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पर भी मुख्य पुजारी बनाया गया था। अभिराम दास के आश्रम में आने के बाद सत्येंद्र दास ने 12वी तक की पढ़ाई संस्कृत से ही पूरी की। संस्कृत से आचार्य किया, जिसके बाद अयोध्या में नौकरी की तलाश में संस्कृत महाविद्यालय जा पहुंचे। जहां उन्हें व्याकरण विभाग में बतौर सहायक शिक्षक के पद पर तैनात किया गया था और उन्होंने 75 रुपए तनख्वाह से अपना कार्य शुरू किया। इस दौरान उनका राम जन्मभूमि में आना जाना बना रहा।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
1992 के बाबरी विध्वंस के दौरान अयोध्या में तब मंदिर आंदोलन चरम पर था। अयोध्या में तब विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल ने मोर्चा संभाल रखा था। एक तरफ कारसेवकों ने बाबरी ढांचे में प्रवेश किया, तो वहीं दूसरी ओर सत्येंद्र दास राम की प्रतिमा को लेकर भागने में कामयाब रहे थे। बाबरी मस्जिद से लेकर टेंट तक और फिर साल 2023 का वो ऐतिहासिक फैसला, जब रामलला की दोबारा घर वापसी हुई। इन सभी में आचार्य सत्येंद्र दास की बहुत ही महत्वपूर्ण रही।
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