International Women's Day : हर हाल में शिक्षा हासिल कर जीवन में सफलता की डगर पर आगे बढ़ें बेटियां

प्रशासनिक सेवा में आकर साबित कर रहीं दक्षता, बेटियों को आत्मनिर्भर बनने को कर रहीं प्रेरित

International Women's Day : हर हाल में शिक्षा हासिल कर जीवन में सफलता की डगर पर आगे बढ़ें बेटियां

तृप्ति ने सहायक अध्यापक बनकर शिक्षण को ही जीवन का ध्येय बना लिया।

विनोद श्रीवास्तव,अमृत विचार। शिक्षा के बिना जीवन में सफलता मुश्किल से मिलती है। बात जब बेटियों की हो तो यह जिम्मेदारी और बड़ी हो जाती है। क्योंकि उनकी उच्च शिक्षा का लाभ एक नहीं दो परिवारों को मिलता है। शिक्षा के दम पर ही बेटियां अपने को आत्मनिर्भर बनाकर दूसरों की भी मददगार हो सकती हैं। इन बातों को आज की बेटियां बखूबी चरितार्थ कर रही हैं।

जिले में बेटियां प्रशासनिक सेवा की स्तंभ बनी हैं। एक नहीं कई पदों पर बैठी आधी आबादी अपनी दक्षता से खुद को साबित कर रही है। इन्हीं में से एक हैं ठाकुरद्वारा तहसील की उप जिलाधिकारी प्रीति सिंह। मूलरूप से गोरखपुर जिले के बांसगांव की रहने वाली प्रीति सिंह 2011 में प्रशासनिक सेवा में आईं। उनकी पहली तैनाती कुशीनगर जिले में हुई। वह कहती हैं आज का दौर बेटियों का है। आज बेटियां पढ़ लिखकर खुद को साबित कर रही हैं। उनका कहना है कि आज भी ग्रामीण परिवेश में बेटियों की शिक्षा पर गंभीरता नहीं है। लेकिन, अभिभावकों को चाहिए कि वह अपनी बेटियों को खूब पढ़ाएं। क्योंकि शिक्षित नारी ही समाज को नई व सही दिशा दे सकती है। वह मुरादाबाद में डिप्टी कलेक्टर के पद पर आईं।

बाद में जिला कार्यक्रम अधिकारी का दायित्व निभाया। फिर उन्हें उप जिलाधिकारी ठाकुरद्वारा की जिम्मेदारी मिली। जिसे वह बखूबी निभाकर अपनी प्रशासनिक दक्षता साबित कर रही हैं। वह आज भी बेटियों की शिक्षा पर जोर देती हैं। उनका कहना है कि बिना पढ़े जीवन में सही राह पर चलना काफी कठिन है। प्रशासनिक सेवा में आने की प्रेरणा के सवाल पर वह कहती हैं उनके परिवार ने प्रेरित किया जिसके बाद वह इस क्षेत्र में आईं। क्योंकि इसके माध्यम से न सिर्फ अपने को साबित कर सकते हैं बल्कि दूसरों की सेवा व सहायता कर उनको आगे बढ़ाने में अपने नागरिक कर्तव्य का बखूबी निर्वहन कर सकते हैं।


विशेष शिक्षण पद्धति से बच्चों को देकर ज्ञान, तृप्ति ने पाया सम्मान
पढ़ाई के दौरान समाज में लड़कियों की शिक्षा के प्रति उपेक्षा और सरकारी स्कूल के शिक्षकों की उपेक्षित छवि को बदलने की ठान कर तृप्ति ने सहायक अध्यापक बनकर शिक्षण को ही जीवन का ध्येय बना लिया। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल में तैनाती के बावजूद तृप्ति शर्मा अपनी अलग शैली में छात्र छात्राओं को पढ़ाकर उन्हें स्कूल में आने को प्रेरित कर रही हैं। शैक्षणिक नवाचार के दम पर उन्हें राज्य स्तर से लेकर कई अन्य पुरस्कार मिले हैं। वह विभाग की शान बनकर शिक्षा को रुचिकर बनाकर समाज को दिशा दे रही हैं।

तृप्ति शर्मा बताती हैं कि शादी के 8 साल बाद शिक्षक पति व स्व. ससुर महावीर प्रसाद शर्मा ने उन पर विश्वास जताया फिर उन्होंने बीएड किया। 9 नवंबर 2015 को उनकी नियुक्ति कुंदरकी विकास खंड के प्राथमिक विद्यालय मोहम्मदपुर बस्तौर में सहायक अध्यापक के पद पर हुई। वह बताती हैं कि वह अक्सर सुनती थीं कि बेसिक शिक्षा विभाग के टीचर कुछ काम नहीं करते तब से इस धारणा को गलत साबित करने की ठानी थी। खुद शिक्षक बनकर ऐसी सोच को निराधार साबित कर रही हूं। अपनी शिक्षण की रुचि व अंदर छिपी कला को काम से जोड़कर स्कूल में कुछ अलग माहौल दिया। जिसका प्रतिफल आज उनके स्कूल के बच्चों की पढ़ाई में रुचि बढ़ी है। न सिर्फ अपने स्कूल बल्कि विकास खंड के कई और गांवों की खासकर लड़कियां उनसे पढ़ने की इच्छा रखकर आती हैं। 

उन्होंने टीएलएम से संबंधित लगभग 400 वीडियो बनाये हैं। विद्यालय में आईसीटी के प्रयोग के लिए उन्हें राज्य स्तर पर अवार्ड भी मिला है। दीक्षा एप के ई कंटेंट से कक्षा 6 के कृषि विज्ञान विषय में दो पाठ की 8 वीडियो का निर्माण किया गया। जिनको दीक्षा एप पर अपलोड किया गया। लॉकडाउन से अब तक ऑनलाइन भी कक्षाओं का संचालन करती हैं। उन्होंने 75 टीएलएम निर्माण की एक पुस्तक बनाई। जिसका तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी योगेंद्र कुमार ने विमोचन किया था। वह बताती हैं कि उनके पति मुकेश चंद शर्मा जनपद अमरोहा में किसान इंटर कॉलेज ताहरपुर में गणित के सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। वह हर कदम पर उनका संबल बढ़ाते हैं। जिसके चलते बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूल को नया स्वरूप देने में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।

गीताजंलि गरीबों को शिक्षित कर दे रहीं आर्थिक संबल
गरीबों की जरूरत पर जो संभव हो मदद के लिए हर पल तत्पर रहने की पर्याय हैं गीतांजली पांडेय। मलिन बस्तियों में जाकर गरीब बच्चों को शिक्षित कर खुद के पैरों पर खड़ा कर अपनी पहचान बनाने और गरीब बेटियों के सिर पर ममता का हाथ लगकर उनकी शादियां कराकर जीवन की नई शुरुआत कराना उनकी जिंदगी बन गई है। कोरोना संक्रमण काल में दूसरों को लाचार देखकर उनकी जीवन की दिशा बदल गई। आज गीतांजली ‘आओ हाथ बढ़ाएं-एक पहल मदद की’ नाम से चैरिटेबल ट्रस्ट का संचालन वर्ष 2022 से अध्यक्ष के रूप में कर रही हैं। लगभग एक साल पहले उन्होंने व्हाट्सएप ग्रुप बनाया जिसका नाम था ‘साथी हाथ बढ़ाना’। वह लखीमपुर खीरी में चल रहे एक ग्रुप से इंस्पायर हुईं और ग्रुप के जरिए जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे बढ़ीं। तब से सेवा का यह सफर अनवरत जारी है। वह बतातीं हैं कि शुरू में यह ग्रुप दो-तीन लोगों का ही था जो बाद में सैकड़ा पार कर गया।

कोरोना संक्रमण काल में बनीं दूसरों का सहारा
मूल रूप से गोरखपुर की रहने वाली गीतांजली 2005 से ही मुरादाबाद के बुद्धि विहार फेज टू में रहती हैं। कोरोना संक्रमण काल में अपने ग्रुप के माध्यम से उन्होंने गरीबों की बस्तियों में भोजन और अन्य सामग्री का इंतजाम कराया था। इसके बाद ग्रुप को ट्रस्ट में तब्दील कर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की बेटियों की शादी धूमधाम से कराने के लिए सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन करने में जुट गईं। ट्रस्ट के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई कढ़ाई केंद्र खोला।

 नि:शुल्क प्रशिक्षण के बाद सिलाई मशीनें देती हैं। उनके ट्रस्ट के द्वारा संचालित निशुल्क कोचिंग सेंटर में गरीब परिवार की लड़कियों को शिक्षित कर उन्हें सशक्त बनने को प्रेरित किया जा रहा है। लीक से हटकर समाज में पहचान स्थापित करने वाली महिलाओं, लड़कियों को वीरांगना सम्मान देकर प्रेरणा की पहल भी की है। कोरोना संक्रमण काल में काल कवलित हो गए अभिभावकों के बच्चों को पब्लिक स्कूलों में न सिर्फ प्रवेश दिलाया बल्कि उनके ड्रेस से लेकर किताब-कॉपियों की व्यवस्था करने में मददगार हैं। न सिर्फ मुरादाबाद बल्कि गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक जरूरतमंद महिलाओं और गंभीर रूप से बीमार लोगों को मदद पहुंचाई है।

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