आखिर क्रूरता में क्यों बदल रही स्त्री की कोमलता? जानें क्या बोले एक्सपर्ट
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अमृत विचार ने मनोविशेषज्ञों से समझने का प्रयास किया कि रिश्तों की वह डोर क्यों टूट रही है जो नाजुक तो कहलाती है लेकिन सात जन्मों तक अटूट रहती है?
पद्माकर पाण्डेय, लखनऊ, अमृत विचार: ‘स्त्रीत्व’ इस शब्द के साथ कोमलता, सहानुभूति, रचनात्मकता, सुंदरता, सौम्यता, और विनम्रता जैसी शब्दावलियां मन-मस्तिष्क में समाती हैं। इसके विपरीत ताजा घटित घटनाएं चौंकाने वालीं हैं। इन घटनाओं से जुड़ीं स्त्रियों में क्रूरता, धोखेबाजी, कठोरता, असंवेदनशीलता नजर आती हैं। हाल में हुई कुछ घटनाओं ने समाज को झकझोर दिया। सवाल उठता है कि भारतीय परिवारों में जहां महिला को घर की लक्ष्मी मानकर सम्मान मिलता है, उनको लेकर धारणाएं तो नहीं बदल जाएंगी। पति-पत्नी के विश्वास की डोर कमजोर क्यों हो रही है। कोमल चित्त वाली महिलाओं की सोच और कर्म में अचानक परिवर्तन क्यों। इन्हें घटनाओं का आधार बनाकर ‘अमृत विचार’ ने मनोविशेषज्ञों से समझने का प्रयास किया कि सात जन्मों के लिए अटूट कही जाने वाले रिश्तों की वह डोर क्यों टूट रही है।
1- हनीमून कांड: इस कांड को नवविवाहिता सोनम ने अंजाम दिया। पूर्व प्रेमी के साथ मिलकर शिलांग में अपने पति राजा रघुवंशी की भाड़े के हत्यारों से नृशंस हत्या करवा दी। उसने राजा को अपनी आंखों के सामने मरवाया फिर गहरी खाई धकेल दिया।
2- नीला ड्रम कांड: नाम भले मुस्कान हो लेकिन उसने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर विदेश से लौटे पति सौरभ की बोटी-बोटी कटवा डाली। शरीर के अंगों को एक नीले ड्रम में डाला और उसमें सीमेंट का घोल डालकर जाम कर दिया। इसके बाद प्रेमी के साथ हिमाचल घूमने चली गई।
3-सास-दामाद कांड: प्रकरण अलीगढ़ का है। बेटी की शादी से महज 10 दिन पहले 25 वर्षीय सास दामाद के साथ भाग गई। दोनों की बाद में नाटकीय ढ़ंग से वापसी तो हुई लेकिन खून के रिश्ते अब भी सामान्य न हो सके।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी का तर्क है कि ऐसे अपराध तो हमेशा से होते आए हैं, अंतर यह है कि इस तरह के अपराध महिलाओं द्वारा किए जाने लगे हैं, जो कि आश्चर्य का विषय है। पूर्व में महिलाओं को पुरुषों के साथ सहभागिता करने के मौके कम मिलते थे, जबकि वर्तमान में सब सामान्य है, इसलिए कृत्य भी एक जैसे होते जा रहे हैं। इसके अलावा सामाजिक स्तर और कानूनी संरचना बदलने से महिलाओं में भी मनोदशा बदल रही है। डॉ. आदर्श के मुताबिक, पहले लड़कियों को घर में रहने व पारिवारिक काम की जिम्मेदारी संभालने के मां द्वारा प्रेरित किया जाता था, पिछले कुछ दशकों से बराबरी की भावना और स्टेटस की प्रतिस्पर्धा में महिलाओं की सोच में बदलाव आया है। उन्हें तमाम सामाजिक-व्यवहारिक परेशानियों से निपटने के लिए लड़कियों को अभिभावक द्वारा खुद प्रशिक्षित किया जा रहा है। जिससे उनमें आत्मबल तो बढ़ा लेकिन कुछ स्तर पर सोच आक्रामक भी हो गई।
बलरामपुर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ल का कहना है कि समाज में नशे की लत बढ़ने के साथ ही परिवार के साथ भावनात्मक लगाव कम होना और उपभोक्तावाद हावी होना प्रमुख है। महिलाएं तेजी से हर क्षेत्र में बढ़ रही हैं। इस प्रतिस्पर्धा में परिवार के साथ बिताने को उनके पास समय नहीं है, जिससे लगाव कम हो रहा है। इश्क व प्यार रोमांस वासनात्मक हो सकता हैं, थोडे समय के लिए ही गंभीर निर्णय कर ले रहीं हैं, भविष्य नहीं सोच रहीं। इन सभी कारणों के पीछे हमारे समाज की भी मुख्य भूमिका है। डॉ. देवाशीष का कहना है कि परिवारजनों को अपने बच्चों को समय देना चाहिए, विभिन्न विषयों पर काउंसिलिंग भी करनी चाहिए।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ.दीप्ती सिंह का विचार है कि अब 10 घटनाओं में एक घटना महिला द्वारा भी हो रही है, इसलिए चर्चा ज्यादा हो रही है। इसके पीछे उनका शिक्षित और सेल्फ डिपेंड होना है। साथ ही पुरुषों के मुकाबले खुद को कमतर न समझने की भावना। इन्हीं वजहों से अब महिलाओं में तलाक का भय नही है। वह पहले शादी के पहले पिता पर और बाद में पति पर निर्भर थीं, अब स्थितियां बदल चुकीं हैं। लड़कियां घर के दबाव से बाहर आ चुकी हैं, महत्वाकांक्षा बढ़ गयी है, किसी स्तर पर समझौता नहीं करतीं हैं, उन्हें खुद से जीने का तरीका पता है। सोशल मीडिया का भी दोष कम नहीं, अनजाने लोंग फ्रेंड बन रहे हैं, स्टेटस देख ही प्रभावित हो रही हैं लड़कियां। वे अपना लक्ष्य पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, इसलिए घटनाएं भी घटित हो रही हैं।
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