इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: अमान्य विवाह में पत्नी को नहीं मिलेगा भरण-पोषण
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाह-विच्छेद से जुड़े एक मामले में भरण-पोषण के प्रश्न पर विचार करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत एक बार विवाह को अमान्य घोषित करने का आदेश पारित हो जाने पर वह विवाह की तिथि से ही मान्य होता है। ऐसे मामले में पत्नी को भरण- पोषण देने के लिए पति उत्तरदायी नहीं है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की एकलपीठ ने राजीव सचदेवा की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार वर्ष 2015 में पक्षकारों का विवाह हुआ, लेकिन मतभेद और मनमुटाव के कारण पत्नी ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन कौशांबी, गाजियाबाद में प्राथमिकी दर्ज कराई। इसके बाद पति और उसके परिवार वालों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान पत्नी की पहली शादी का तथ्य सामने आया। इसके बाद पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 और 23 के तहत मामला दर्ज कराया। मामले के लंबित रहने के दौरान पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा के तहत विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए एक आवेदन दाखिल किया।
इस पर पत्नी ने भरण-पोषण और मुकदमे के खर्च के लिए धारा 24 के तहत आवेदन किया। धारा 11 के तहत आवेदन स्वीकार होने के बाद पत्नी ने अपील दाखिल की, जिसे अंततः वापस लेते हुए खारिज कर दिया गया। हालांकि निचली अदालत ने विवाह-विच्छेद का निष्कर्ष दर्ज होने के बावजूद घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 23 के तहत कार्यवाही में पत्नी को 10 हजार रुपए प्रतिमाह का भुगतान करने का आदेश दिया, जिसके विरुद्ध पति द्वारा दाखिल अपील को निचली अदालत ने खारिज कर दिया।
तत्पश्चात पति ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिस पर विचार करते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि कानून बहु विवाह की अनुमति नहीं देता है। पक्षकारों का विवाह घोषणात्मक डिक्री के माध्यम से शून्य और अमान्य घोषित किया गया है और एक बार विवाह के शून्य-प्रारंभ घोषित हो जाने के बाद परवर्ती संबंध का कोई महत्व नहीं रह जाता है। अतः घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा के तहत पति पर कोई मामला नहीं बनता है, इसलिए इस मामले में भरण-पोषण देने संबंधी आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया गया।
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