हाईकोर्ट : मामूली वैवाहिक विवादों में आपराधिक मामले दर्ज करना विवाह संस्था के लिए नुकसानदेह

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाह संस्था के नैतिक, सामाजिक और कानूनी महत्व को रेखांकित कर विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि विवाह एक अत्यंत सामाजिक प्रासंगिकता वाली संस्था है, और आवेश में मामूली वैवाहिक विवादों को आपराधिक मुकदमों का रूप देना इस संस्था को गंभीर क्षति पहुंचा सकता है।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की एकलपीठ ने शारिक मियां और तीन अन्य द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिस पर पत्नी ने दहेज मांगने और मारपीट के आरोप लगाए हैं। याचिका में याची ने अपने विरुद्ध चल रही आपराधिक कार्यवाही को लेकर केवल दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 205 के तहत अधिवक्ता के माध्यम से पेशी की अनुमति मांगी थी। याचियों पर आईपीसी, दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 और मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 3/4 के तहत पुलिस स्टेशन महिला थाना, सहारनपुर में मामला दर्ज किया गया है।

 कोर्ट ने कहा कि कई बार पक्षकार आवेश में आकर ऐसे आरोप लगाते हैं, जिनके परिणामों का ठीक से अनुमान नहीं होता, जिससे विवाह संस्था, आरोपी व उनके परिवार को अनावश्यक पीड़ा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि यदि याची धारा 205 के अंतर्गत आवेदन करते हैं, तो ट्रायल कोर्ट उन्हें व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देते हुए अधिवक्ता के माध्यम से पेशी की अनुमति दे सकता है, बशर्ते वे प्रत्येक तिथि पर अधिवक्ता की उपस्थिति सुनिश्चित करें और कार्यवाही में सहयोग करें।

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