कानपुर : डीटू गैंग का आतंक फिर चर्चा में, सबलू की गिरफ्तारी के बाद पनप रहे शातिर
कानपुर, अमृत विचार : चमनगंज में शातिर एजाजुद्दीन उर्फ सबलू की गिरफ्तारी के बाद डीटू गैंग एक बार फिर सुर्खियों में है। 1985 से 2008 के बीच अपने आपराधिक साम्राज्य के लिए कुख्यात इस गैंग ने कई शूटर और शातिर तैयार किए। भाड़े पर हत्या, पिस्टल और मादक पदार्थों की तस्करी, रंगदारी व विवादित जमीन का अवैध कारोबार इसके प्रमुख धंधों में शामिल थे।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार गैंग का पहला सरगना अतीक था। इसके भाई शफीक, रफीक, इकबाल उर्फ बाले, अफजाल उर्फ राजू और तौफीक उर्फ बिल्लू भी गैंग में शामिल थे। गैंग का नाम इंटरस्टेट गैंग के तौर पर दर्ज था। शफीक ने एक समय राजनीतिक दल में भी कदम रखा, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के बाद पार्टी से निष्कासित होकर दाऊद के संपर्क में गया। डीटू गैंग ने 2004 में डीएवी लॉ कालेज के पास अधिवक्ता खुर्शीद की हत्या की थी। इसी क्रम में तौफीक बिल्लू और रफीक मुठभेड़ में ढेर हुए। सरगना अतीक की आगरा जेल में मौत हो गई, जिसके बाद गैंग की कमर टूट गई।
हालांकि, डीटू गैंग की पाठशाला से निकले प्रशिक्षित बदमाश आज भी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। सबलू और शाहिद पिच्चा जैसे शातिर अब आपस में दुश्मन हैं। बीते सोमवार को सबलू को रंगदारी के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इससे पहले हर्षनगर के पास उस पर हमला हुआ था। डीटू गैंग के शागिर्दों में सलीम दुर्गा, संजय गुप्ता, शानू बॉस, हसीन टुंडा, मोनू पहाड़ी, रईस बनारसी, अमजद बच्चा, शाहिद पिच्चा, नफीस चौड़ा जैसे कई शातिर शामिल हैं। इस गैंग का नेटवर्क मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली और बंगाल तक फैला हुआ था।
गैंग का संपर्क दाऊद, फज़लू और अन्य अंतरराष्ट्रीय अपराधियों से भी रहा। पुलिस और खुफिया एजेंसियां डीटू गैंग से जुड़े अपराधियों की जड़ों को काटने के लिए लगातार नजर बनाए हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गैंग के प्रशिक्षित लोग नए गैंग बनाकर अपराध को बढ़ावा दे सकते हैं, इसलिए सतर्कता जरूरी है।
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