पितृपक्ष में अजन्मी बेटियों का महातर्पण: कानुपर में गंगा तट पर कुरीतियों के खिलाफ शुरू हुए अनुष्ठान ने बदला रिवाज

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Published By Anjali Singh
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 गर्भ में जिनको मार दिया, उनके लिए लड़ेगा कौन, 
गूंज रही अब तक कानों में गूंगी चीखें सुनेगा कौन।
हृदय मिला है मानव का तो जागो फिर यह उत्तर दो,
गर्भपात में मृत बच्चों का आखिर तर्पण करेगा कौन।

यही वह पंक्तियां हैं, जिन्होंने हर किसी को झकझोर कर धार्मिक और सामाजिक रूढ़वादिता के खिलाफ आवाज बुलंद करने की ऐसी ताकत दी कि आज महिलाएं घरों से निकल कर अपनी न सिर्फ अपनी अजन्मी बेटियों, बल्कि दिवंगत देहदानियों और बलिदानियों को भी पितृपक्ष पर जल देकर शांति प्रदान कर रही हैं।   

युग दधीचि देहदान अभियान प्रमुख मनोज सेंगर और माधवी सेंगर लंबे समय से अजन्मी बेटियों के लिए महिलाओं द्वारा महातर्पण का अनूठा अभियान चला रहे हैं। वर्ष 2011 से महिला सशक्तिकरण के लिए लगातार संचालित इस अद्भुत कार्यक्रम में कानपुर की प्रतिष्ठित महिलाएं पितृ पक्ष में एक निर्धारित दिन गंगा किनारे स्थित सरसैया घाट पर एकत्र होकर विधिवत उन बेटियों के लिए तर्पण और पिंडदान करती हैं, जिन्हें पुत्र मोह के कारण समाज ने धरती पर आने ही नहीं दिया।

इस अभियान के बारे में मनोज सेंगर बताते हैं कि वर्ष 2010 के नवंबर माह में जेके कॉलोनी, जाजमऊ में आयोजित विराट गायत्री महायज्ञ में एक हजार लोगों को सामूहिक कन्या भ्रूण हत्या रोकने की शपथ दिलाई गई, इसी दौरान एक महिला रोते हुए आई और बड़े संकोच से बताया कि उसने दो बार गर्भपात कराया है और गर्भ में ही मार दी गई बेटियों के लिए वह कोई पूजा पाठ भी नहीं करा सकी है। क्या शास्त्रों में ऐसा कोई विधान है कि उसकी अजन्मी बच्चियों को मोक्ष मिल सके। इस प्रश्न ने वहां उपस्थित लोगों को बुरी तरह झकझोर दिया। 

सभी उस महिला को तुरंत कोई जवाब नहीं दे सके। रात भर महिला का सवाल यक्ष प्रश्न बनकर परेशान करता रहा। इसी के बाद आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित कर्मकांड भास्कर पुस्तक का अध्ययन किया तो  गर्भपात में मृत बच्चों के पिंडदान से संबंधित मंत्र मिला। उस समय तक समाज में मान्यता थी कि महिलाएं तर्पण नहीं करती हैं, लेकिन शास्त्रों में प्रमाण मिला कि माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान गया में फल्गु नदी के तट पर किया था। 

इसी के बाद हम लोगों ने तय किया कि महिलाएं ही अपनी अजन्मी बेटियों के लिए तर्पण करेंगी। रूढ़वादिता तोड़ने का यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन निर्भीक होकर सार्वजनिक रूप से शहर की प्रमुख महिलाओं से इस कार्य में भाग लेने का आह्वान किया। नियत दिन पर तर्पण की तैयारी की। जब बड़ी संख्या में महिलाएं और बेटियां इस अनूठे आयोजन में भाग लेने पहुंची, तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। 

अमर शहीदों को भी जल देने पहुंचते हैं लोग 

वर्ष 2011 से हर साल पितृ पक्ष में यह आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष कार्यक्रम 14 सितंबर, रविवार को प्रातः 10 बजे सरसैया घाट पर होगा। धीरे-धीरे तर्पण का दायरा और बढ़ चुका है। अब अजन्मी बेटियों के साथ दिवंगत देहदानियों और अमर बलिदानियों के लिए भी तर्पण किया जाता है। इस आयोजन के साक्षी सांसद, विधायक, व्यापारी, चिकित्सक, अधिवक्ता और समाजसेवी आदि भी बनते हैं।

शास्त्रों में वर्णित हैं महिलाओं को कर्मकांड के अधिकार

यह केवल एक भ्रांति है कि महिलाएं तर्पण और पिंडदान नहीं कर सकती हैं। शास्त्रों में महिलाओं को संपूर्ण कर्मकांड के अधिकार दिए गए हैं। गायत्री परिवार की कर्मकांड भास्कर पुस्तक में गर्भपात में मृत बच्चों को जलदान का मंत्र दिया गया है। कर्मकांड मंजूषा में भी इस बारे में विस्तार से लिखा गया है। गार्गी, घोषा, अपाला, सुलभा, कात्यायनी, मैत्रेई, आदि ऋ षिकाओं ने समस्त वैदिक कर्मकांड अधिकार पूर्वक किए और कराए हैं।  

माता सीता ने किया था राजा दशरथ का तर्पण और पिंडदान

महातर्पण का आयोजन करने वाले मनोज सेंगर और माधवी सेंगर का कहना है कि शास्त्रों में कहीं भी नहीं लिखा कि महिलाए तर्पण नहीं कर सकती हैं। माता सीता द्वारा अपने ससुर महाराज दशरथ का पिंडदान और तर्पण गया में फल्गु नदी के तट पर किया गया था, जिसे विद्वानों ने उचित ठहराया था। उस समय भारत में महिलाओं की बड़ी प्रतिष्ठा और मान्यता थी, लेकिन बीच में आए अंधकार पूर्ण युग में महिलाओं के तमाम सामाजिक और धार्मिक अधिकार विस्मृत कर दिए गए, गतिविधियां सीमित कर दी गईं, इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर हो गया। महिलाओं में आत्मविश्वास जगाकर अधिकारों के प्रति जागृत करके उन्हें सशक्त बनाने से ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण होगा।-मनोज त्रिपाठी