नानी और आम का पेड़

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
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नानी शब्द सुनते ही मन में प्यार व अपनेपन की याद आ जाती है। हर किसी नानी को ऐसे ही देखा जाता है, जिसकी प्यार और ममता की छांव में हम बड़े हुए। नानी का घर यानी प्यार और परंपराओं की यादें। नानी की रसोई से आने वाली मसालों की सुखद महक, मिठाइयों की मिठास, चटपटे अचार और तरह-तरह के पापड़। उनकी हंसी की आवाज, उनकी ढेर सारी कहानियां, प्यार से जिद्द करके थोड़ा और  खिलाना।

नानी को हर कोई उनकी बाहरी सुंदरता से नहीं देखता, बल्कि  हम सभी अपनी-अपनी नानी को प्यार व ममता की मूर्ति के रूप में ही देखते हैं। उनके गुणों व उनके स्नेह और दुलार के लिए चाहते हैं। मेरी नानी बहुत ही प्यारी और गुणों की खान थीं। अभी कुछ समय पहले ही वो चल बसीं। सब कुछ कितना सूनाकर गई। अब नानी का घर वो घर न रहा। सब ओर उदासी व खालीपन था। रह गईं तो बस उनकी यादें। मैं नानी के बगीचे में खड़ी थीं। तभी मेरी नजर उनके रोपे हुए आम के पेड़ पर पड़ी। यादों का पिटारा सा खुल गया। पेड़ फलों से लदा था। नानी ने कैसे बताया था कि उन्होंने खुद से आम की एक गुठली बोई थी फिर कैसे उसमें कल्ला फूट गया था, तो उनकी खुशी का ठिकाना न था कैसे बच्चों की तरह खुशी से चहक उठी थीं। वो निश्छल और सरल। 

उन्होंने फिर उस पूरी तन्मयता से नन्हें पौधे की देखभाल की, बिल्कुल जैसे की एक मां अपने बच्चे की करती है। उनकी मेहनत रंग लाई और देखते ही देखते वो नन्हा पौधा बड़ा होने लगा। नानी उसको समय पर खाद-पानी देती। फिर कुछ ही वर्षों में वो एक पेड़ बन गया। फिर एक गर्मी उस पर बुआर आ गई। अब तो नानी बेसब्री के साथ आम के फलों के पनपने का इंतजार करने लगीं। उसमें नन्हीं-नन्हीं अमिया आते ही नानी ने हमको फोन करके बताया। उनकी आवाज में कितनी उमंग थी। कैसे खुशी से चहक रही थीं। उनके लिए तो जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि सी थी। कुछ ही दिनों में नानी का आम का पेड़ फलों से लद गया। 

नानी ने हमें पेटी भर कर अमिया भिजवाई, नन्हीं- नन्हीं हरी-हरी ताजी अमिया देखकर मन खुशी से खिलखिला उठा, उन छोटी-छोटी अमियों को हाथ में लेना कितना सुखद एहसास था। यह अमिया बाजार की खरीदी अमियों से कुछ अलग थीं। इनमें नानी का अपनापन छिपा था। मम्मी ने उन अमियों का आचार डाला, कुछ का मीठा मुरब्बा और बची हुई अमियों का वो रोज आम पन्ना बनाती थी, ज्येष्ठ की गर्मी में मानो अमृतपान।

नानी ने अपने सभी रिश्तेदारों व आस-पड़ोसियों को खूब अमिया बांटी। मुझे नानी की यह सबको अपना बना लेनी की आदत खास पसंद थी। फिर कुछ समय बाद पेड़ के आम पक गए। इतने मीठे और रसीले आम मैने पहले कभी न खाए थे। उनकी मिठास कुछ और ही थी। नानी अपने आम के पेड़ की खूब निगरानी करतीं। मोहल्ले के शैतान बच्चे जो पत्थर मार-मार कर उनके आम तोड़ना चाहते नानी उनकी खूब डांट लगातीं।

नानी ने इसके माध्यम से हमें एक दार्शनिक शिक्षा भी दे डाली। वह बोली “देखो एक गुठली के त्याग से इतना बड़ा वृक्ष बना और इतने सारे आम आए। इस वृक्ष ने सबको अपने आम खिलाए। उसी प्रकार हम भी अपने प्रेम व त्याग से सबका भला करें और प्रेम बांटे।”

अफसोस आज नानी नहीं हैं। रह गईं तो बस उनकी यादें, शिक्षाएं और यह आम का पेड़। आम के पेड़ को देखकर नानीं की यादे और भी प्रखर हो जाती हैं। नानी तो नहीं हैं, पर पेड़ के रूप में लगता है मानो नानी अब भी हमारे बीच हैं। अब तो यह “आम का पेड़” आम उनकी ‘स्मृति प्रतीक’ है।लेखिका-श्रुति सुकुमार