डेयरी क्रांति की कहानी, बीएल एग्रो की कामधेनु परियोजना

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Published By Pradeep Kumar
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प्रति पशु दूध उत्पादन 30 से 40 लीटर प्रतिदिन लाने का लक्ष्य

बीएल एग्रो कामधेनु परियोजना से गांवों और किसानों का समृद्ध करने की दिशा में काम कर रहा है। परियोजना का उद्देश्य डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यहां गिर और साहिवाल  गायों की नस्ल तैयार करना है, जो उच्च गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करेंगी। बीएल एग्रो ने इस परियोजना के लिए शुरुआत में ₹1,000 करोड़ का निवेश किया है, जिसके पूरी क्षमता से चालू होने पर कुल ₹3,000 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। 

बीएल एग्रो के प्रबंध निदेशक आशीष खंडेलवाल बताते हैं कि वर्तमान में 350 से अधिक साहिवाल, गिर, पुंगुर नस्ल की गाय डेयरी में हैं। ब्राजील से सीमेन और भ्रूण लाकर इस नस्ल की गायों में अनुवांशिक सुधार कर उनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। ब्राजील ने गिर नस्ल में अनुवांशिक सुधार करके प्रति पशु दूध उत्पादन 30 से 40 किलो प्रतिदिन प्राप्त किया है। भारत में प्रतिपशु दूध का उत्पादन उन देशों के मुकाबले काफी कम है। इसका कारण हमारे पास उच्च गुणवत्ता वाले गायों और सांडों की कमी है। जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता को ध्यान में रखकर बीएल कामधेनु परियोजना में सम्मिलित किया है। योजना के प्रयास से उच्च नस्ल वाली भारतीय साहिवाल और गिर गाय पैदा होने के बाद सीमेन और भ्रूण लाने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहने की भी आवश्यकता नहीं होगी।

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साहिवाल नस्ल की 5000 गायों को रखने की योजना
भविष्य में गिर, साहिवाल नस्ल की पांच हजार हजार देसी गायों को रखे जाने की योजना है। जो एक दिन में 30 से 35 लीटर तक दूध दे सके। इन गायों के माध्यम से बीएल एग्रो स्थानीय समुदाय को जहां उच्च दूध देने वाली गायों की उपलब्धता बढ़ाएगा, वहीं बेहतरीन गुणवत्ता वाला चारा-दाना के माध्यम से जुड़कर पशुधन का विकास करेगा। साथ ही किसानों के लिए दूध की मार्केटिंग में भी सहयोग करेंगे। इसके लिए एक फील्ड प्रोसेसिंग यूनिट भी होगी, जो किसानों से दूध जैसे कच्चे माल की प्राप्ति के लिए उनके साथ काम करेगी। आईसीएआर- सीआईआरजी के पूर्व निदेशक एवं बीएल कामधेनु योजना के उपाध्यक्ष डा. एसके अग्रवाल बताते हैं कि भ्रूण प्रत्यारोपण एक ऐसी विधि है, जिसके माध्यम से गाय की किसी भी नस्ल की एक गाय से साल भर में 40 से 50 भ्रूण विकसित करके दूसरी गायों में प्रत्यारोपित कर 15 से 16 बछिया को जन्म दिलाया जा सकता है, जबकि सामान्य तौर पर साल भर में एक गाय से एक ही बछिया प्राप्त की जा सकती है। 

उन्नत नस्ल के विकास से किसानों को होगा फायदा
आशीष खंडेलवाल के मुताबिक, अगर किसान या पशुपलाकों के पास उन्नत नस्ल का पशु है तो उसका भ्रूण लैब में तैयार करेंगे। जिसे उनके सेरोगेट मदर में ट्रांसफर करेंगे। वहीं, उनकी मांग पर लैब में संरक्षित भ्रूण को भी प्रत्यारोपित कर देंगे। इससे उन्नत नस्ल के पशु का जन्म होगा। टेस्ट ट्यूब बेबी (आईवीएफ) से जन्मे गाय के बच्चों में ज्यादा दूध देने की क्षमता होगी। 

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देसी गाय के दूध का बड़ा बाजार
यूं तो राज्य सरकार की योजनाओं के बल पर गोवंश का संरक्षण करने के लिए हर जिले में गौशालाएं खोली जा रही हैं। विभिन्न योजनाओं के जरिये सरकार खूब रकम सब्सिडी के रूप में लोगों को उपलब्ध करा रही है और योजनाओं से पोषित गौशालाएं खुल भी रही हैं, पर बिना सरकारी सहयोग के ही बरेली में गुजरात की देसी गाय गिर अपने दूध व दुग्ध उत्पाद से नई पहचान बना रही है। इसके दूध की इतनी मांग है कि पूरी नहीं पड़ रही है। इससे संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में अगर बरेली में और गौशालाएं खुलेंगी, तो दुग्ध व इसके उत्पाद के बाजार में छा जाएंगी।

बरेली के भैरपुरा खजुरिया निवासी ज्ञानेंद्र सिंह ने गिर गाय का गौशाला का संचालन कर यह सिद्ध कर दिया है कि यहां के अन्य लोग खासकर युवा भी इस क्षेत्र में अपना अच्छा कॅरियर बना सकते हैं। मर्चेंट नैवी में चीफ ऑफीसर की 48 लाख सालाना वेतन की नौकरी छोड़कर वर्ष 2023 में गांव में गौशाला संचालन व प्राकृतिक खेती कर रहे ज्ञानेंद्र के पास छोटी-बड़ी मिलाकर कुल 65 गाय हो गई हैं।  अपने अनुभव को साझा करते हुए ज्ञानेंद्र कहते हैं कि बरेली में शुद्ध दूध की बहुत मांग है। मांग के अनुसार अभी आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है। देसी गिर पर ही विशेष जोर देने के सवाल पर उनका कहना है कि वैसे तो साहिवाल समेत अन्य गायों का दूध भी विदेशी गायों से अच्छा रहता है, पर गिर नस्ल की गाय का दूध मां के दूध के समान होता है। इसमें प्रोटीन ए टू होता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है। गिर गाय मौसम के अनुकूल होती हैं, इसलिए बीमार भी बहुत कम पड़ती हैं। यह गाय 7-8 लीटर प्रतिदिन दूध देती हैं। ऐसे में इस गाय के दूध के बाजार में बहुत संभावनाएं हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में गांव के अन्य किसान व युवा अपना कैरियर बना सकते हैं।

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अन्य राज्यों को भा रहा बरेली का दुग्ध उत्पाद
गिर गाय का दुग्ध उत्पाद बरेली के साथ ही अन्य राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब के साथ ही राजधानी लखनऊ, रामपुर, पीलीभीत, रुद्रपुर आदि के लोगों को भा रहा है। तीन एकड़ पुश्तैनी जमीन पर में प्राकृतिक खेती व गांव में मकान के सामने गौशाला चला रहे ज्ञानेंद्र का कहना है कि वह 250 परिवारों को दूध व अन्य कृषि उत्पाद उपलब्ध करा रहे हैं। इनमें केवल दूध के 50 ग्राहक बरेली के हैं। दूध की आपूर्ति केवल जिले में है, जबकि दुग्ध उत्पाद मुम्बई, पंजाब, दिल्ली, लखनऊ, रामपुर, पीलीभीत, रुद्रपुर आदि में आपूर्ति हो रहा है। मिलावटी दूध से परेशान लोग अब शुद्ध दूध की मांग कर रहे हैं। ऐसे में बरेली में और गौशालाएं खोली जाएं, तो इसका लाभ किसानों के साथ यहां के लोगों को मिल सकेगा।

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शुद्ध देसी घी बनाने में प्राचीन ज्ञान जरूरी
दूध से शुद्ध घी बनाने में प्राचीन ज्ञान जरूरी है। घी बनाने में बिलौना विधि का प्रयोग होता है, जो पूरी तरह मैनुअल होता है। ज्ञानेंद्र की गौशाला में इस विधि का ज्ञान रखने वाली उनकी 80 वर्षीय बुजुर्ग मां शकुंतला देवी घी बनाने का कार्य करती हैं। वजह यह है कि इस विधि से बनने वाला घी अधिक स्वादिष्ट होता है। शाहजहांपुर में आबकारी निरीक्षक पद पर तैनात सविता चौधरी भी घर आने के दौरान गौशाला व प्राकृतिक खेती में सहयोग करती हैं। यानी सफलता के लिए खुद के साथ ही अगर पारिवारिक सहयोग मिल जाय, तो यह सोने पर सुहागा साबित होगा।

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