जवान न बन सके सर्वेश, बन गए प्रगतिशील किसान

Amrit Vichar Network
Published By Pradeep Kumar
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जब दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। हाफिजगंज के ग्रेम गांव के सर्वेश की कहानी कुछ इसी तरह की है। सर्वेश का सपना था कि फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करना। चार बार फौज की भर्ती में शामिल हुए। शारीरिक परीक्षा उत्तीर्ण की, पर सफल नहीं हुए। निराश होने के बजाय उन्होंने गांव में खेती को रोजगार का जरिया बनाने की ठानी। जैविक खेती का तरीका सीखा। फसल लहलहाई तो उनकी किस्मत चमक गई।

28 साल की आयु में सर्वेश को कृषि विज्ञान केंद्र ने प्रगतिशील किसान का दर्जा प्रदान किया है। सर्वेश गन्ने के साथ मेंथा, सरसों, मेंथा आदि कि वर्तमान में वह करीब 15 बीघे में जैविक खेती कर रहे हैं। सालाना आय करीब पांच लाख रुपये से ज्यादा है। सर्वेश बताते हैं कि उन्होंने एक फर्म भी बनाई है। इसके जरिए वह जैविक खेती को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी फर्म से अब तक एक, दो बीघे वाले 300 से अधिक किसान जुड़ चुके हैं। उनका उद्देश्य खेती को सिंथेटिक रसायन से मुक्त करना है। इसके अलावा वह कृषि कॉलेजों, केंद्र और प्रदेश सरकार के कार्यक्रमों में व्याख्यान देने भी पहुंचते हैं। सर्वेश बताते हैं कि उत्पादित फसलों की गुणवत्ता के आधार पर बिक्री अधिक होने की वजह से अब व्यापारियों की मांग के अनुसार माल की कमी हो जाती है।  

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अमेरिका-जर्मनी तक बरेली का मेंथा पहुंचा रहे निहाल
जैविक खेती के फायदे जानने हैं तो बरेली के उन्नतशील कृषक निहाल सिंह के बारे में जानिए, जो ऑर्गेनिक मेंथा, सगंध फसलों और जड़ी-बूटियों की खेती करते हैं। वर्तमान में उनसे पांच हजार किसान जुड़े हैं। निहाल का दो एकड़ से शुरू हुआ खेती का सफर आज दस हजार एकड़ में फैल चुका है। वह कहते हैं वर्ष 2002 में बेहद छोटे पैमाने पर ऑर्गेनिक मेंथा की खेती शुरू की थी।

आज उनकी कंपनी ऑर्गेनिक सर्टिफाइड मेंथा उत्पादन करती है। यहां उपजा जैविक मेंथा जर्मनी और यूएसए (अमेरिका) तक भेजा जा रहा है। इसकी बहुत मांग है। तुलसी की सूखी पत्ती की भी अमेरिका में खूब मांग है। जैविक खाद से पैदा हुए धान, गेंहू और आलू की सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मांग होती है। वह अपनी सफलता का सीक्रेट शुद्धता, प्रतिबद्धता और किसानों के साथ मजबूत रिश्ते बताते हैं। वह कहते हैं कि 2003 में कॉलेज के एक ‘लेक्चर’ में सुना था कि रसायनिक खाद जमीन को कितना नुकसान पहुंचा रही हैं। शरीर में बीमारियां बढ़ रही हैं। इसके बाद जैविक खाद से उड़द की खेती से शुरुआत की थी। पांच साल तक व्यवसायिक फायदा नहीं मिला। इन्हीं चुनौतियों से सीखते हुए 2008 में जैविक उत्पाद के लिए बाजार खड़ा कर लिया। आज पांच हजार किसानों के साथ मिलकर जैविक खेती कर रहे हैं। ऑर्गेनिक मेंथा ही नहीं वह जड़ी-बूटियों और लेमनग्रास व कैमोमाइल जैसी दस से अधिक सगंध फसलें उगाते हैं। राइस मिल और गुड़ बनाने की यूनिट भी लगाई जो किसानों की आय बढ़ाने में मदद करती है। उनका कहना है कि युवा खेती को व्यवसाय के रूप में अपनाएं, क्योंकि यही भारत को अग्रणी बना सकती है।

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खेत से आसमान तक ’ड्रोन दीदी’ की सफलता की उड़ान
नवाबगंज की रहने वाली किरन गंगवार ने अपनी मेहनत और आत्मविश्वास से एक नई ऊंचाई हासिल की है। एमए की पढ़ाई करने वाली किरन ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर ड्रोन पायलट बनने का फैसला किया और आज वह ’ड्रोन दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं। किरन बताती हैं कि उन्होंने नवंबर 2023 में खुद को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने का फैसला लिया। इसके बाद, उन्हें इफको की ओर से फ्री में ड्रोन दिए जाने के साथ चलाने की ट्रेनिंग दी गई। दिसंबर 2023 में प्रयागराज के फूलपुर स्थित इफको कोरडेट में ट्रेनिंग मिली और मार्च 2024 को उन्हें ’नमो ड्रोन दीदी योजना’ के तहत कृषि ड्रोन मिला। आज किरन 500 हेक्टेयर में ‘स्प्रे’कर चुकी हैं और अच्छी कमाई भी कर रही हैं। वह बताती हैं कि पहली बार जब गांव में ड्रोन उड़ाया, तो लोग देखने के लिए आए। तब लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ था कि ड्रोन से फसलों पर कीटनाशक और पानी का छिड़काव भी संभव है। किरन कहती हैं, अगर महिलाएं ठान लें, तो कुछ भी असंभव नहीं है। 

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