बरेली: यहां तो विपक्षी दलों से नहीं, अपनों से मिल रही चुनौती

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महिपाल गंगवार, बरेली, अमृत विचार। सियासत की जंग में जीत के लिए किसी भी पार्टी के लिए एकजुटता और समर्पित कार्यकर्ता की भूमिका सबसे अहम होती है। खासतौर पर जब पार्टी विपक्ष में होती है तो कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। लेकिन यहां स्थिति उलट दिख रही है। सपा, भाजपा, बसपा और …

महिपाल गंगवार, बरेली, अमृत विचार। सियासत की जंग में जीत के लिए किसी भी पार्टी के लिए एकजुटता और समर्पित कार्यकर्ता की भूमिका सबसे अहम होती है। खासतौर पर जब पार्टी विपक्ष में होती है तो कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। लेकिन यहां स्थिति उलट दिख रही है। सपा, भाजपा, बसपा और कांग्रेस से लड़ने के बजाय अपनों से ही लड़ रही है। यहां की 9 विधानसभा सीट पर सपा के 100 से अधिक दावेदार सामने आ चुके हैं। सभी एक-दूसरे पर ही हमलावर हैं। ऐसे में दावेदारों की गुटबाजी पार्टी के लिए भी चुनौती बन चुकीं है तो वहीं संगठन भी गुटबाजी में फंस चुका है।

बात अगर समाजवादी पार्टी के इतिहास की करें तो अपनी स्थापना के एक साल बाद ही बरेली में जीत का रिकॉर्ड बनाया था। जिल की 9 सीटों में से 7 सीट पर सपा ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद जीत का यह रिकॉर्ड अभी तक नहीं दोहरा पाई। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार पुराना रिकॉर्ड तोड़ने का लक्ष्य रखा था। मगर, यहां विपक्षी दलों से अधिक अपने ही चुनौती बन गए हैं। पार्टी के बड़े नेता से लेकर मजबूत प्रत्याशी को हर सीट पर अपनों से चुनौती मिल रही है।

इस वक्त सबसे अधिक दावेदारों की संख्या फरीदपुर में हैं। यहां पूर्व विधायक विजयपाल सिंह को 15 दावेदारों से चुनौती मिल रही है। इन दावेदारों ने पिछले दिनों हुए ब्लॉक प्रमुख चुनाव में सपा प्रत्याशी का नुकसान किया था, ताकि पूर्व विधायक का कद न बढ़ जाए. इसमें संगठन पदाधिकारी भी शामिल थे। पूर्व मंत्री शहजिल इस्लाम के लिए भोजीपुरा में 5 दावेदार चुनौती बने हैं। भोजीपुरा कुर्मी बाहुल्य सीट है। यहां से जदयू छोड़कर सपा में शामिल हुए मनोहर पटेल की दावेदार भी मजबूत मानी जा रही है।

इसके अलावा बिथरी चैनपुर और कैंट में अभी तक 15-15 दावेदार आ चुके हैं। बिथरी में पूर्व ब्लाक प्रमुख देवेंद्र सिंह को चुनौती मिल रही है। ‘प्रदेश में अखिलेख और बिथरी में कमलेश’ के नाम से मशूहर हुए कमलेश पटेल भी यहां कई दिग्गजों का खेल बिगाड़ सकते हैं। हालाकि गठबंधन होने की वजह से यह प्रसपा के खाते में जाना तय बताई जाती है। बहेड़ी में पूर्व मंत्री अताउर्रहमान को पिछली बार बसपा से चुनाव लड़ने वाले नसीम अहमद चुनौती दे रहे हैं। नवाबगंज में पूर्व मंत्री भगवत शरण गंगवार को पूर्व विधायक मास्टर छोटे लाल गंगवार और उनका पुत्र चुनौती दे रहे हैं।

इससे सपा की यह मजबूत सीट भी गुटबाजी में फंस गई है। आंवला में 11 और मीरगंज में 10 दावेदार सामने आ चुके हैं। इसके साथ ही तमाम दावेदार गोपनीय रूप से लखनऊ में दावा ठोंक चुके हैं तो वहीं बिना आवेदन के भी दर्जन भर से अधिक पार्टी के लोग चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं। आलम यह है कि पार्टी के पूर्व मंत्री-विधायक और मजबूत दावेदार विपक्षी दलों से लड़ने के बजाय अपनी पार्टी के ही दावेदारों की लड़ाई में उलझे हैं।

संगठन पदाधिकारी भी अपने-अपने नजदीकी और माल खर्च करने वाले दावेदारों की पैरवी कर कर रहे हैं जिसके चलते भी गुटबाजी बढ़ती दिखाई दे रही है। हालाकि बात यह भी सच है कि टिकट हाईकमान स्तर से तय हो चुके हैं। अब सिर्फ प्रत्याशियों के नाम की घोषणा बाकी है।

जिपं चुनाव में भी हावी गुटबाजी पड़ी थी महंगी
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी सपा को अपनों ने ही दगा दिया था। 60 सदस्यों में 13 सदस्य होने पर भी भाजपा को 40 वोट मिले। जबकि 26 सीटकर जीतकर सबसे बड़ा दल बनकर उभरी सपा 19 वोट ही ले पाई थी। चुनावी परिणाम आने के बाद जब हार-जीत को लेकर मंथन चलता रहा तो इसमें पता चला कि चुनाव से कुछ दिन पहले बीमारी का बहाना बताकर चुप्पी साधे एक दिग्गज ने पार्टी का बेड़ा गर्ग करने में कसर नहीं छोड़ी। अपने दो जिला पंचायत सदस्‍यों को भाजपा के हाथों बेच दिया।

इसके अलावा भी दिन रात जिलाध्यक्ष के यहां डेरा डाले रहने वाले कुछ नेताओं ने जमकर खेल खेला। सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर खासी चर्चा रही। फेसबुक पर कमेंट में कोई सदस्यों को गद्दार बता रहा तो कुछ पार्टी के कुछ नेताओं पर विश्‍वासघात का आरोप लगाते दिखे।

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